भजे विशेषसुन्दरं समस्तपापखण्डनम् ।
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव राममद्वयम् ॥ 1 ॥
(राममद्वयम् = रामम् + अद्वयम् = अद्वितीय राम को)
जो विशेष रूप से सुन्दर हैं, जो हमारे सारे पापों को नष्ट कर देते हैं, जो अपने भक्तों के चित्त को आनंदित करते हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं सदा भजता/भजती हूँ।
I worship that Rama who is exceptionally charming, who annihilates all sins, who makes the mind of his devotees happy, and who is second to none.
जटाकलापशोभितं समस्तपापनाशकम् ।
स्वभक्तभीतिभञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ 2 ॥
जो जटाओं के समूह से सुशोभित हैं, जो समस्त पापों का विनाश करने वाले हैं, जो अपने भक्तों के भय को दूर कर देते हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।
I worship that Rama who shines with his matted hair, who destroys all sins, who dispels the fear of his devotees, and who is second to none.
निजस्वरूपबोधकं कृपाकरं भवापहम् ।
समं शिवं निरञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ 3 ॥
जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप की अनुभूति कराते हैं, जो कृपालु हैं, जो जीवन के दुखों को नष्ट करते हैं, जो सभी को समान मानते हैं, जो शुभ और माया से मुक्त हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।
I worship that Rama who makes us realize our real self, who is compassionate, who destroys sorrows of life, who considers everyone equal, who is auspicious and pure, and who is second to none.
सहप्रपञ्चकल्पितं ह्यनामरूपवास्तवम् ।
निराकृतिं निरामयं भजे ह राममद्वयम् ॥ 4 ॥
जिनमें संसार अवस्थित है, जो नाम से परे सत्य हैं, जो निराकार हैं तथा जो निष्कलंक हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।
I worship that Rama who shows the world in himself, who is the truth without names, who is formless, who is free from blemishes, and who is second to none.
निष्प्रपञ्चनिर्विकल्पनिर्मलं निरामयम् ।
चिदेकरूपसन्ततं भजे ह राममद्वयम् ॥ 5 ॥
जो संसार से परे हैं, जो भेदबुद्धि नहीं रखते, जो बेदाग और निष्कलंक हैं तथा जो सदा सत्य स्वरुप में स्थित रहते हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।
I worship that Rama who is beyond this world, who does not see differences, who is unsullied and untainted, who always stays as the real form of truth, and who is second to none.
भवाब्धिपोतरूपकं ह्यशेषदेहकल्पितम् ।
गुणाकरं कृपाकरं भजे ह राममद्वयम् ॥ 6 ॥
जो इस भवसागर को पार कराने वाली नौका हैं, जो सारे शरीरों में स्थित हैं और जो गुणों एवं कृपा की खान हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।
I worship that Rama who is the ship to cross the ocean of worldly life, who shines through all bodies, who is the mine (treasure-house) of virtues and grace, and who is second to none.
महावाक्यबोधकैर्विराजमानवाक्पदैः ।
परब्रह्म व्यापकं भजे ह राममद्वयम् ॥ 7 ॥
जो वेद के महावाक्यों द्वारा वन्दित और प्रकाशित हैं तथा जो सर्वव्यापक परब्रह्म हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।
I worship that Rama who is irradiated through great Vedic aphorisms, who is Supreme Brahman present everywhere, and who is second to none.
शिवप्रदं सुखप्रदं भवच्छिदं भ्रमापहम् ।
विराजमानदेशिकं भजे ह राममद्वयम् ॥ 8 ॥
जो कल्याण एवं सुख प्रदान करने वाले हैं, जो संसार के बंधनों को काटने वाले हैं, भ्रम/मोह का नाश करते हैं और जो श्रेष्ठ गुरु हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।
I worship that Rama who grants well-being and happiness, who cuts the bonds of worldly life, who dispels delusion, who is the splendid Guru, and who is second to none.
रामाष्टकं पठति यस्सुखदं सुपुण्यं
व्यासेन भाषितमिदं शृणुते मनुष्यः।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं
संप्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥
ऋषि व्यास द्वारा रचित आनंद और पुण्य प्रदान करने वाले इस रामाष्टक को जो कोई पढ़ता या सुनता है, उसे ज्ञान, धन, अपार सुख और अनंत यश मिलता है। शरीर छोड़ने के बाद उसे मोक्ष मिल जाता है।
He who reads or hears this octet on Rama providing joy and merits (punya), which sage Vyasa has written, receives knowledge, wealth, ample happiness and limitless fame. He also gets salvation after leaving his body.
॥ इति श्रीव्यासविरचितं रामाष्टकं संपूर्णम् ॥
इस प्रकार महर्षि व्यास द्वारा रचित रामाष्टकं समाप्त होता है।
Thus ends the Rama Ashtakam composed by Sri Vyasa Maharshi.