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ToggleSalutaions to Lord Shiva | भगवान् शिव को नमस्कार
नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च
मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ॥
कल्याण एवं सुख के मूल स्रोत भगवान् शिव को नमस्कार है। कल्याण तथा सुख का विस्तार करने वाले भगवान् शिव को नमस्कार है। मंगलस्वरूप और मंगलमयता की सीमा भगवान् शिव को नमस्कार है।
ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रह्माधि-
पतिर्ब्रह्मणोऽधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम् ॥
जो सम्पूर्ण विद्याओं के ईश्वर, समस्त भूतों के अधीश्वर, ब्रह्म-वेद के अधिपति, ब्रह्म-बल-वीर्य प्रतिपालक तथा साक्षात् ब्रह्मा एवं परमात्मा हैं, वे सच्चिदानंद शिव मेरे लिए नित्य कल्याणस्वरूप बने रहें।
तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
तत्पदार्थ – परमेश्वर रूप अन्तर्यामी पुरुष को हम जानें, उन महादेव का चिंतन करें, वे भगवान् रुद्र हमें सद्धर्म के लिए प्रेरित करते रहें।
अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः
सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रुद्ररूपेभ्यः ॥
जो अघोर हैं, घोर हैं, घोर से भी घोरतर हैं और जो सर्वसंहारी रुद्ररूप हैं, आपके उन सभी स्वरूपों को मेरा नमस्कार हो।
वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः
कालाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय
नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो
मनोन्मनाय नमः ॥
प्रभो ! आप ही वामदेव, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, रुद्र, काल, कलविकरण, बलविकरण, बल, बलप्रमथन, सर्वभूतदमन तथा मनोन्मन आदि नामों से प्रतिपादित होते हैं, इन सभी नाम-रूपों में आपके लिए मेरा बारम्बार नमस्कार है।
सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः।
भवे भवे नातिभवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः ॥
मैं सद्योजात (शिव) की शरण लेता/लेती हूँ। सद्योजात को मेरा नमस्कार है। किसी जन्म या जगत में मेरा अतिभव (पराभव/हार) न करें। आप भवोद्भव को मेरा नमस्कार है।
नमः सायं नमः प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा।
भवाय च शर्वाय चोभाभ्यामकरं नमः ॥
हे रुद्र ! आपको सायंकाल, प्रातःकाल, रात्रि और दिन में भी नमस्कार है। मैं भवदेव तथा रुद्रदेव दोनों को नमस्कार करता/करती हूँ।
यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिलं जगत्।
निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थं महेश्वरम् ॥
वेद जिनके निःश्वास हैं, जिन्होंने वेदों से सारी सृष्टि की रचना की और जो विद्याओं के तीर्थ हैं, ऐसे शिव की मैं वंदना करता/करती हूँ।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
ध्यान दें: इस श्लोक के आरंभ में ॐ लगाकर इसे मृत्युञ्जय मंत्र के रूप में जपा जाता है।
तीनों नेत्रों वाले, सुगन्धयुक्त एवं पुष्टि के वर्धक शंकर का हम पूजन करते हैं। वे शंकर दुःखों से हमको ऐसे छुड़ायें जैसे खरबूजा पककर बंधन से अपने-आप छूट जाता है। किन्तु वे शंकर हमें मोक्ष से न छुड़ायें।
सर्वो वै रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु। पुरुषो वै रुद्रः सन्महो नमो नमः। विश्वं भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायमानं च यत्। सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु।
जो रुद्र उमापति हैं वही सब शरीरों में जीव रूप से प्रविष्ट हैं, उनके निमित्त हमारा प्रणाम हो। प्रसिद्ध एक अद्वितीय रुद्र ही पुरुष है, वह ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप से, प्रजापतिलोक में प्रजापति रूप से, सूर्यमण्डल में वैराट रूप से तथा देह में जीव रूप से स्थित हुआ है; उस महान सच्चिदानन्द स्वरूप रुद्र को बारम्बार प्रणाम हो। समस्त चराचर जगत जो विद्यमान है, हो गया है तथा होगा, वह सब प्रपंच रुद्र की सत्ता से भिन्न नहीं हो सकता, यह सब कुछ रुद्र ही है, उन रुद्र के प्रति प्रणाम हो।
Morning Prayer for Lord Shiva | श्री शिवस्य प्रातःस्मरणम्
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥1॥
जो सांसारिक रोग को हरने वाले और देवताओं के स्वामी हैं, जो गंगाजी को धारण करते हैं, जिनका वृषभ वाहन है, जो अम्बिका के ईश हैं तथा जिनके हाथ में खट्वाङ्ग, त्रिशूल और वरद तथा अभय मुद्रा है, उन संसार रोग को हरने के निमित्त अद्वितीय औषध रूप ‘ईश’ (महादेव जी) को मैं प्रातःसमय में स्मरण करता/करती हूँ।
प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्द्धदेहं सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम्।
विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोऽभिरामं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥2॥
भगवती पार्वती जिनका आधा अंग हैं, जो संसार की सृष्टि, स्थिति और प्रलय के कारण हैं, आदिदेव हैं, विश्वनाथ हैं, विश्व-विजयी और मनोहर हैं, सांसारिक रोग को नष्ट करने के लिए अद्वितीय औषध रूप उन गिरीश (शिव) को मैं प्रातःकाल नमस्कार करता/करती हूँ।
प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम्।
नामादिभेदरहितं षड्भावशून्यं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥3॥
जो अन्त से रहित आदिदेव हैं, वेदान्त से जानने योग्य, पापरहित एवं महान पुरुष हैं तथा जो नाम आदि भेदों से रहित, छः भाव-विकारों (जन्म, वृद्धि, स्थिरता, परिणमन, अपक्षय और विनाश) से शून्य, संसार रोग को हरने के निमित्त अद्वितीय औषध हैं, उन एक शिवजी को मैं प्रातःकाल भजता/भजती हूँ।
प्रातः समुत्थाय शिवं विचिन्त्य श्लोकत्रयं येऽनुदिनं पठन्ति।
ते दुःखजातं बहुजन्मसञ्चितं हित्वा पदं यान्ति तदेव शम्भोः ॥4॥
जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर शिव का ध्यान कर प्रतिदिन इन तीनों श्लोकों का पाठ करते हैं, वे अनेक जन्मों के संचित दुःखसमूह से मुक्त होकर शिवजी के उसी कल्याणमय पद को पाते हैं।
॥ इति श्रीशिवस्य प्रातःस्मरणम् ॥
Shri Shiva Panchaakshara Stotram | श्री शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’ काराय नमः शिवाय ॥1॥
जिनके कण्ठ में साँपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग (अनुलेपन) है, दिशाएँ ही जिनका वस्त्र हैं (अर्थात् जो नग्न हैं), उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर ‘न’ कार स्वरुप शिव को नमस्कार है।
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै ‘म’ काराय नमः शिवाय ॥2॥
गंगाजल और चन्दन से जिनकी अर्चा हुई है, मन्दा-पुष्प तथा अन्यान्य कुसुमों से जिनकी सुन्दर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति प्रमथ गणों के स्वामी महेश्वर ‘म’ कार स्वरुप शिव को नमस्कार है
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’ काराय नमः शिवाय ॥3॥
जो कल्याणस्वरूप हैं, पार्वती जी के मुखकमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिए जो सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिह्न है, उन शोभाशाली नीलकण्ठ ‘शि’ कार स्वरुप शिव को नमस्कार है।
वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य-मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’ काराय नमः शिवाय ॥4॥
वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि श्रेष्ठ मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन ‘व’ कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’ काराय नमः शिवाय ॥5॥
जिन्होंने यक्ष स्वरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगंबर देव ‘य’ कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥6॥
जो शिव के समीप इस पवित्र पंचाक्षर का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता और वहाँ शिवजी के साथ आनंदित होता है।
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
Dvaadash Jyotirlingaani | द्वादशज्योतिर्लिङ्गानि
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम् ॥1॥
सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर।
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥
परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर, सेतुबन्ध पर श्रीरामेश्वर, दारूकावन में श्रीनागेश्वर।
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ॥3॥
वाराणसी (काशी) में श्रीविश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्रीत्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखण्ड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्री घुश्मेश्वर को स्मरण करे।
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥4॥
जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।
इति द्वादशज्योतिर्लिङ्गस्मरणं सम्पूर्णम्।
Shri Rudrashtakam | श्री रुद्राष्टकम्
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ॥1॥
हे ईशान ! मैं मुक्ति स्वरूप, समर्थ, सर्वव्यापक, ब्रह्म, वेदस्वरूप, निजस्वरूप में स्थित, निर्गुण, निर्विकल्प, निरीह, अनन्त ज्ञानमय और आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त प्रभु को प्रणाम करता/करती हूँ।
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहं ॥2॥
जो निराकार हैं, ओंकार रूप आदिकारण हैं, तुरीय हैं, वाणी, बुद्धि और इन्द्रियों के पथ से परे हैं, कैलासनाथ हैं, विकराल और महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के आगार और संसार से तारने वाले हैं, उन भगवान् को मैं नमस्कार करता/करती हूँ।
तुषाराद्रि संकाशं गौरं गभीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा ॥3॥
जो हिमालय के समान श्वेतवर्ण, गम्भीर और करोड़ों कामदेव के समान कान्तिमान शरीर वाले हैं, जिनके मस्तक पर मनोहर गंगाजी लहरा रही हैं, भालदेश में बालचन्द्रमा सुशोभित होते हैं और गले में सर्पों की माला शोभा देती है।
चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुंडमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥4॥
जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, जिनके नेत्र और भृकुटी सुन्दर और विशाल हैं, जिनका मुख प्रसन्न और कण्ठ नीला है, जो बड़े ही दयालु हैं, जो बाघ की खाल का वस्त्र और मुण्डों की माला पहनते हैं, उन सर्वाधीश्वर प्रियतम शिव का मैं भजन करता/करती हूँ।
प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ॥5॥
जो प्रचण्ड, सर्वश्रैष्ठ, प्रगल्भ, परमेश्वर, पूर्ण, अजन्मा, करोड़ों सूर्य के समान प्रकाशमान, त्रिभुवन के शूलनाशक और हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले हैं, उन भावगम्य भवानीपति का मैं भजन करता/करती हूँ।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानंद संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥
आप कलाओं से परे, कल्याणकारी और कल्प का अंत करने वाले हैं। आप सदा सत्पुरुषों को आनंद देते हैं, आपने त्रिपुरासुर का नाश किया था, आप मोहनाशक और ज्ञानानन्दघन परमेश्वर हैं, आप कामदेव के शत्रु हैं, आप मुझ पर प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं भजंतीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥
मनुष्य जब तक उमानाथ महादेव जी के चरणारविन्दों का भजन नहीं करते, उन्हें इस लोक या परलोक में कभी सुख और शान्ति की प्राप्ति नहीं होती और न उनका संताप ही दूर होता है। हे समस्त भूतों के निवास स्थान भगवान् शिव ! आप मुझ पर प्रसन्न हों।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥
हे प्रभो ! हे शम्भो ! हे ईश ! मैं योग, जप और पूजा कुछ भी नहीं जानता, हे शम्भो ! मैं सदा सर्वदा आपको नमस्कार करता/ करती हूँ। जरा, जन्म और दुःखसमूह से सन्तप्त होते हुए मुझ दुःखी की दुःख से आप रक्षा कीजिये।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥
जो मनुष्य भगवान् शंकर की तुष्टि के लिए ब्राह्मण द्वारा कहे हुए इस रुद्राष्टक का भक्तिपूर्वक पाठ करते हैं, उन पर शंकरजी प्रसन्न होते हैं।
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥
Shambhu Stuti by Shri Ram | शम्भुस्तुतिः (श्रीराम द्वारा)
श्रीराम उवाच –
नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञमपारभावम्।
नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥1॥
श्रीराम बोले – मैं पुराणपुरुष शम्भु को नमस्कार करता हूँ। जिनकी असीम सत्ता का कहीं पार या अंत नहीं है, उन सर्वज्ञ शिव को मैं प्रणाम करता हूँ। अविनाशी प्रभु रुद्र को नमस्कार करता हूँ। सबका संहार करने वाले शर्व को मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। … शेष पढ़ें … Read more …
Meditation on various forms of Sadashiva | सदाशिव के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान
भगवान् सदाशिव, परमात्म प्रभु शिव, मंगलस्वरूप भगवान् शिव, भगवान् अर्धनारीश्वर, भगवान् शंकर, गौरीपति भगवान् शिव, महामहेश्वर, पञ्चमुख सदाशिव, अम्बिकेश्वर, पार्वतीनाथ भगवान् पञ्चानन, भगवान् महाकाल, श्री नीलकण्ठ, पशुपति, भगवान् दक्षिणामूर्ति, महामृत्युञ्जय
Shiva Stotram by Himalaya | हिमालयकृतं शिवस्तोत्रम्
हिमालय उवाच –
त्वं ब्रह्मा सृष्टिकर्ता च त्वं विष्णुः परिपालकः।
त्वं शिवः शिवदोऽनन्तः सर्वसंहारकारकः ॥1॥
(हे परम शिव!) आप ही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं, आप ही जगत के पालक विष्णु हैं, आप ही सबका संहार करने वाले अनन्त हैं और आप ही कल्याणकारी शिव हैं।
…… (Read the complete shloka here … शेष श्लोक यहाँ पढ़ें …)
अपुत्रो लभते पुत्रं मासमेकं पठेद् यदि ।
भार्याहीनो लभेद् भार्यां सुशीलां सुमनोहराम् ॥11॥
पुत्रहीन मनुष्य यदि एक मास तक इसका पाठ करे तो संतान पाता है। भार्याहीन को सुशीला तथा परम मनोहारिणी पत्नी प्राप्त होती है।
चिरकालगतं वस्तु लभते सहसा ध्रुवम् ।
राज्यभ्रष्टो लभेद् राज्यं शङ्करस्य प्रसादतः ॥12॥
वह चिरकाल से खोयी हुई वस्तु को सहसा तथा अवश्य पा लेता है। राज्यभ्रष्ट पुरुष भगवान् शंकर के प्रसाद से पुनः राज्य को प्राप्त कर लेता है।
कारागारे श्मशाने च शत्रुग्रस्तेऽतिसङ्कटे ।
गभीरेऽतिजलाकीर्णे भग्नपोते विषादने ॥13॥
रणमध्ये महाभीते हिंस्रजन्तुसमन्विते ।
सर्वतो मुच्यते स्तुत्वा शङ्करस्य प्रसादतः ॥14॥
कारागार, श्मशान और शत्रु-संकट में पड़ने पर तथा अत्यन्त जल से भरे गम्भीर जलाशय में नाव टूट जाने पर, विष खा लेने पर, महाभयंकर संग्राम के बीच फँस जाने पर तथा हिंसक जंतुओं से घिर जाने पर इस स्तुति का पाठ करके मनुष्य भगवान् शंकर की कृपा से समस्त भयों से मुक्त हो जाता है।
Bhootnath Ashtakam | भूतनाथाष्टकम्
शिव शिव शक्तिनाथं संहारं शं स्वरूपम्
नव नव नित्यनृत्यं ताण्डवं तं तन्नादम्
घन घन घूर्णिमेघं घंघोरं घंन्निनादम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ॥1॥
जो सर्वमंगलकारी हैं, शक्ति के स्वामी और संहार के प्रतीक हैं, जो अनादि, शाश्वत तांडव नृत्य में लीन रहते हैं और उस नृत्य के दौरान अविचल ध्यान में स्थित रहते हैं तथा जिनसे उत्पन्न होने वाली नाद ध्वनि प्रचंड तूफान के घने, काले और तीव्रता से घुमड़ते बादलों के समान है, मैं उन भस्म विभूषित, समस्त भूतों के अधिपति, भगवान शिव को बार-बार प्रणाम करता/करती हूँ।
Veda-saara-Shiva-stavah | वेदसारशिवस्तवः
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृतिं वसानं वरेण्यम्।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ॥1॥
जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पाप का ध्वंस करने वाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराज का चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूट में श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता/करती हूँ। …
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Shiva Tandav Stotram | शिवताण्डव स्तोत्रम्
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥
जिन्होंने जटा रुपी अटवी (वन) से निकलती हुई गंगाजी के गिरते हुए प्रवाहों से पवित्र किये गये गले में सर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारण कर, डमरू के डम-डम शब्दों से मण्डित प्रचण्ड ताण्डव नृत्य किया, वे शिवजी हमारे कल्याण का विस्तार करें । …
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Shri Vishvanatha Ashtakam | श्रीविश्वनाथाष्टकम्
गङ्गातरङ्गरमणीयजटाकलापं
गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम्।
नारायणप्रियमनङ्गमदापहारं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥1॥
जिनकी जटाएँ गंगाजी की लहरों से सुन्दर प्रतीत होती हैं, जिनका वामभाग सदा पार्वतीजी से सुशोभित रहता है, जो नारायण के प्रिय और कामदेव के मद का नाश करने वाले हैं, उन काशीपति विश्वनाथ को भज। …
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Shivashtakam | शिवाष्टकम्
तस्मै नमः परमकारणकारणाय
दीप्तोज्ज्वलज्ज्वलितपिङ्गललोचनाय ।
नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय
ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नमः शिवाय ॥1॥
जो कारण के भी परम कारण हैं, अति देदीप्यमान उज्ज्वल और पिंगल नेत्र वाले हैं, सर्पराजों के हार-कुण्डलादि से भूषित हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्रादि को भी वर देने वाले हैं, उन श्रीशंकर को नमस्कार है। …
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Bilvashtakam | बिल्वाष्टकम्
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम् ।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ॥1॥
तीन दलवाला, सत्त्व, रज एवं तमः स्वरूप, सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि – त्रिनेत्र स्वरूप और आयुधत्रय स्वरूप तथा तीनों जन्मों के पाप नष्ट करने वाला बिल्वपत्र मैं भगवान् शिव के लिए समर्पित करता/करती हूँ। …
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