Achyutashtakam | अच्युताष्टकम्

अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।

श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे ॥ 1 ॥

हे अच्युत,केशव ,राम, नारायण, कृष्ण, दामोदर, वासुदेव, हरि, श्रीधर, माधव, गोपिकावल्लभ तथा जानकी नायक रामचन्द्रजी, मैं आपको भजता हूँ।

O Achyuta (the infallible One), Keshava, Rama, Narayana, Krishna, Damodara, Vasudeva, Hari, Shridhara, Madhava (Lakshmi’s consort), Gopikavallabha (the most beloved of the cowherd girls), and Janki ji’s lord Shri Ramchandra, I sing your praise.

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।

इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे ॥ 2 ॥

हे अच्युत, केशव, सत्यभामापति, माधव (लक्ष्मीपति), श्रीधर, राधिकाजी द्वारा आराधित, लक्ष्मीनिवास, सुन्दर, देवकीनन्दन और जो नंद को दिये जाने के फलस्वरूप उनके पुत्र हुए, आपको नमस्कार है।।

O Achyuta, Keshava, Satyabhama’s consort, Madhava, Shridhara, the One worshipped by Radha, Lakshmi’s abode, attractive, Devaki’s son and who became Nanda’s son as a result of being given to him, salutations to you.

विष्णवे जिष्णवे शङ्खिने चक्रिणे रुक्मिणीरागिणे जानकीजानये ।

वल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥ 3 ॥

जो विष्णु अर्थात् सर्वव्यापक हैं, जिष्णु अर्थात् सदा विजयी हैं, शंख-चक्रधारी हैं, रुक्मणीजी के परम प्रेमी हैं (कृष्ण रूप), जानकीजी जिनकी धर्मपत्नी हैं (राम रूप) तथा जो गोपिकाओं द्वारा ह्रदय में पूजे जाते हैं, उन कंसविनाशक, मुरलीधर को मैं नमस्कार करता हूँ।

O Vishnu (the all-pervading one), Jishnu (the ever victorious one), the holder of the conch-shell and the discus, extremely dear to Rukmini (as Sri Krishna), having Devi Janaki as His wife (as Sri Rama), worshipped by the beloved cowherd girls in their hearts, destroyer of Kansa, and holder of the flute! My salutations to you.

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।

अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥ 4 ॥

हे कृष्ण! हे गोविन्द! हे राम! हे नारायण! हे लक्ष्मीपति! हे वासुदेव! हे अजेय! हे श्रीनिधि! हे अच्युत! हे अनन्त! हे माधव! हे अधोक्षज! हे द्वारिकानाथ! हे द्रौपदीरक्षक!

O Krishna! O Govinda! O Rama! O Narayana! O Shripati (Devi Lakshmi’s husband)! O Vasudeva! O Ajit (the Unconquerable One)! O Shrinidhi (the treasure-house of riches)! O Achyut (the Infallible One)! O Anant (Endless)! O Madhava! O Adhokshaja (Vishnu’s name)! O the Lord of Dwaraka! O Draupadi’s protector!

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो दण्डकारण्य भूपुन्यताकारणः ।

लक्ष्मणेनान्वितो वानरैः सेवितोऽगस्त्यसम्पूजितो राघवः पातु माम् ॥ 5 ॥

राक्षसों पर अति कुपित, श्री सीताजी से सुशोभित, दण्डकारण्य की भूमि को पवित्र करने वाले, श्री लक्ष्मणजी द्वारा अनुगत, वानरों से सेवित, श्री अगस्त्यजी से पूजित, राघव (श्रीराम) मेरी रक्षा करें।

O the One who got furious at the demons, who was adorned by Sita ji at his side, who purified the forest Dandaka, who was accompanied by Lakshman ji, who was served by monkeys, who was worshipped by sage Agastya! O Raghava (Lord Rama)! Please protect me.

धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा केशिहा कंसहृद्वंशिकावादक: ।

पूतनाकोपक:  सूरजाखेलनो बालगोपालक:  पातु मां सर्वदा ॥ 6 ॥

अनिष्ट करने आए धेनुक और अरिष्टक असुरों का ध्वंस करने वाले, केशी और कंस का वध करने वाले, वंशी बजाने वाले, पूतना पर कोप करने वाले और यमुनातट पर खेलने वाले बालगोपाल मेरी सदा रक्षा करें।

May Balagopal, the One who destroyed the evil-intended demons Dhenuk and Arishtak, the One who killed Keshi and Kansa, the One who played the flute, the One who got angry on Pootna, and the One who played on the banks of Yamuna, always protect me.

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फ़ुरद्वाससं प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।

वन्यया मालया शोभितरःस्थलं लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥ 7 ॥

(विद्युद्-उद्योत-वत्-प्रस्फुरद्-वाससं, प्रावृड्-अम्भोद-वत्-प्रोल्लसद्-विग्रहम्, लोहित-अङ्घ्रि-द्वयं)

विद्युत्प्रकाश के सदृश जिनका पीताम्बर विभासित हो रहा है, वर्षाकालीन मेघों के समान जिनका अति शोभायमान शरीर है, जिनका वक्ष:स्थल वनमाला से विभूषित है और चरणयुगल अरुणवर्ण हैं, उन कमलनयन प्रभु को मैं भजता हूँ।

I sing praise of that lotus-eyed Lord whose yellow robe is shining like electric light, whose body is very beautiful like the rainy clouds, whose chest is decorated with a garland of forest flowers, and whose feet are reddish.

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।

हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥ 8 ॥

(कुन्तलैर्-भ्राजमान-आननं)

जिनका मुख घुंघराली अलकों से सुशोभित हो रहा है, जिनका मस्तक मणि से सुशोभित है, जिनके गालों पर चमकदार कुण्डल (बालियाँ) हैं, जो सुन्दर बाजूबन्द और उज्जवल कंकण से सुशोभित हैं और जिनके पास मधुर ध्वनि वाले पायल हैं, उन श्रीश्यामसुन्दर को मैं भजता हूँ।

I sing praise of that Shyam whose face is adorned with beautiful locks of curly hairs, whose forehead is adorned with gem, who has shiny earrings on the cheeks, who is adorned with a beautiful bracelets and shining bangles, and who has a melodious anklet.

अच्युतस्याष्टकं यः पथेदिष्टदं प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् ।

वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥

जो व्यक्ति इस सुन्दर छन्दयुक्त तथा मनोवांछित फलप्रदायक अच्युताष्टक का प्रतिदिन प्रेम तथा भक्तिपूर्वक पाठ करता है, उस पर जगत् के सर्वव्यापी रचयिता श्रीहरि शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं।

The person who reads this beautifully rhymed and desired fruit-bearing Achyutashtak daily with love and devotion, soon gets the grace of Shri Hari, the universal creator of the world.

॥ इति श्रीशङ्कराचार्यविरचितमच्युताष्टकं संपूर्णम् ॥

इस प्रकार श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचित अच्युताष्टकं पूरा होता है।

Thus ends the Achyutashtakam composed by Sri Shankaracharya.

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