गो-माहात्म्य का वर्णन हमारे धर्मशास्त्रों में प्रचुर मात्रा में विद्यमान है।
गौ तंत्र में भगवान् शिव माता पार्वती से कहते हैं –
गुरौ मनुष्यबुद्धिं तु मन्त्रे वर्णमतिं तथा।
पशुबुद्धिं गवां कृत्वा मनुष्यो नरकं व्रजेत्॥
गुरु को मनुष्य मानने से, मंत्र को अक्षर मानने से और गाय को पशु मानने से मनुष्य नरकों में जाता है।
गोपूजा परमा पूजा गोसेवा परमं तपः।
गोमन्त्रः परमो मन्त्रः यो जानाति स मुच्यते॥
गौ की पूजा परम पूजा है। गौ की सेवा उत्तम तप है। गौ मंत्र का जप श्रेष्ठ मंत्र है। जो ऐसा जानता है, वह मुक्त हो जाता है।
गोरुपां जगद्धात्रीं सृष्टिस्थित्यन्त कारिणीम्।
हृदि ध्यात्वा प्रवर्ते यः जीवनमुक्तः सः जायते॥
उत्पत्ति, पालना एवं संहार करने वाली जगदम्बा रूपिणी गाय का ह्रदय में जो ध्यान करते हुए संसार के काम करता है, वह जीते जी मुक्त हो जाता है।
गवां तु दर्शनं देवि महामाङ्गल्यदायकम्।
प्रातःकाले समुत्थाय यात्रारम्भे तथैव च।
प्रथमं गोदर्शनं कृत्वा नरो विघ्नैर्नबाध्यते॥
स्वल्पायासेन लभते कार्यसिद्धिं न संशयः।
सर्वकालेऽपि देवि दर्शनं मङ्गलप्रदम्॥
हे देवि! गाय का दर्शन करना महान मंगलदायक है। प्रातःकाल उठते ही तथा यात्रा आरम्भ करने से पूर्व गाय को प्रणाम करने से कोई विघ्न उपस्थित नहीं होता और थोड़े प्रयास से ही उसके काम बन जाते हैं। किसी भी समय गाय का दर्शन करने से शुभ-मंगल की प्राप्ति होती है।
गां सदा रक्षेत् देवि प्राणैरपि धनैरपि।
अस्मात् परतरं पुण्यो नास्ति नास्ति महीतले॥
हे देवी! गौ की सदा धन अथवा प्राण देकर भी रक्षा करनी चाहिए। समस्त पृथ्वी पर इससे बढ़कर कोई दूसरा पुण्य नहीं है।
गवां तु प्राणरक्षार्थे प्राणत्यागं करोति यः।
सोऽपि मयि विलीयते न पुनर्जायते भुवि॥
जो कोई अपने प्राण त्याग कर भी गौ की प्राण-रक्षा करता है, वह इस धरा पर पुनर्जन्म नहीं लेता; मरणोपरांत वह मुझमें ही विलीन (अर्थात् मुक्त) हो जाता है।
सर्वेषां चैव देवानां पूजनेन तु यत् फलम्।
तत्फलं सर्वं लभते देवि गवां पूजनमात्रतः॥
हे देवी! सभी देवताओं की पूजा करने का जो फल प्राप्त होता है, वह समस्त फल एक गौ की पूजा से ही प्राप्त हो जाता है।
किं तीर्थयात्रया देवि किं च देवप्रपूजनात्।
सर्वे देवाश्च तीर्थश्च गवे इव प्रतिष्ठिता॥
गोपूजां भक्तितः कृत्वा प्रदक्षिणं अनुव्रजन्।
सर्वतीर्थफलं देवि लभते नात्र संशयः॥
हे देवी! तीर्थयात्रा से क्या और देवपूजा से क्या (लाभ)? समस्त तीर्थ और सभी देवताएँ तो गौ में ही प्रतिष्ठित हैं। भक्तिपूर्वक गोपूजा करके गौ की प्रदक्षिणा करने से समस्त तीर्थों की यात्रा का फल प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
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सम्यक् आत्मशुद्धि के लिए गोमूत्र, गोमय, क्षीर, दधि तथा घृत का पाँच दिन तक आहार करने का विधान वशिष्ठस्मृति में किया गया है –
गोमूत्रं गोमयं चैव क्षीरं दधि घृतं तथा।
पञ्चरात्रं तदाहारः पञ्चगव्येन शुध्यति॥ वशिष्ठस्मृति (३७०)
गायें पवित्र एवं मंगलकारक होती हैं; इनमें समस्त लोक प्रतिष्ठित हैं। गायें यज्ञ का विस्तार करती हैं। वे समस्त पापों का विनाश करती हैं।
गावः पवित्रं माङ्गल्यं गोषु लोकाः प्रतिष्ठिताः।
गावो वितन्वते यज्ञं गावः सर्वाघसूदनाः॥ (विष्णुस्मृति)
गोमूत्र, गोबर, गोघृत, गोदुग्ध, गोदधि और गोरोचन – ये गाय के छः पदार्थ सर्वदा मांगलिक होते हैं।
गोमूत्रं गोमयं सर्पिः क्षीरं दधि च रोचना।
षडङ्गमेतत् परमं मङ्गल्यं सर्वदा गवाम् ॥ (विष्णुस्मृति)
गायों को नियमित ग्रास (भोजन) मात्र देने से भी मनुष्य स्वर्गलोक में सम्मानित होता है।
गवां ग्रास प्रदानेन स्वर्गलोके महीयते ॥ (विष्णुस्मृति)
यमस्मृति में भी गाय को रंग-भेद पूर्वक गो-पदार्थ-भेद से समस्त पापों का नाश करने वाली बताया गया है –
शुक्लाया मूत्रं गृह्णीयात् कृष्णाया गोशकृत् तथा।
ताम्रायाश्च पयो ग्राह्यं श्वेताया दधि चोच्यते ॥ यमस्मृति (७१-७२)
श्वेत रंग की गाय का मूत्र, श्यामा रंग की गाय का गोबर, ताम्र-वर्ण की गाय का दूध, सफेद गाय का दही और कपिला गाय का घृत – ये सभी ग्राह्य हैं तथा समस्त पापों का नाश करने वाले हैं।
स्मृतिकारों का कथन है कि गाय यदि बछड़े को पिला रही हो तो न उसे रोके और न यह बात उसके मालिक को बताये –
गां धयन्तीं परस्मै नाचक्षीत न चैनां वारयेत्। (गौतमस्मृति); नाचक्षीत धयन्तीं गाम्। (याज्ञ. १/१४०)
मार्ग में गौ, ब्राह्मण, राजा और अन्धों को निकल जाने के लिए रास्ता स्वयं छोड़ देना चाहिए।
पन्था देयो ब्राह्मणाय गवे राज्ञे ह्यचक्षुषे। (बौधायनस्मृति, स्नातकव्रतानि ३०)
जिस घर में गाय नहीं है, जहाँ वेद-ध्वनि नहीं होती और जो घर बालकों से भरा-पूरा न हो, वह घर घर नहीं है, अपितु श्मशान है।
यत्र वेदध्वनिध्वान्तं न च गोभिरलंकृतम्।
यत्र बालैः परिवृतं श्मशानमिव तद् गृहम् ॥ (अत्रिसंहिता ३१०)
गाय ‘अघ्न्या’ है। इसका वध सर्वथा अनुचित है।
अघ्न्या इति गवां नाम क एता हन्तुमर्हति।
महच्चकाराकुशलं वृषं गां वाऽऽलभेत् तु यः॥ (महाभारत, शान्ति पर्व २६२/४७)
श्रुति में गौओं को अघ्न्या (अवध्य) कहा गया है। ऐसी स्थिति में कौन उन्हें मारने का विचार करेगा? जो पुरुष गाय और बैलों को मारता है, वह महान पाप करता है।
लक्ष्मीश्च गोमये नित्यं पवित्रा सर्वमङ्गला।
गोमयालेपनं तस्मात् कर्तव्यं पाण्डुनन्दन॥ (स्कन्द., अव., रेवा. ८३/१०८)
गोबर में परम पवित्र सर्वमंगलमयी श्रीलक्ष्मीजी नित्य निवास करती हैं, इसलिए गोबर से लेपन करना चाहिए।
गवां हि तीर्थे वसतीह गङ्गा
पुष्टिस्तथा तद्रजसि प्रवृद्धा।
लक्ष्मीः करीषे प्रणतौ च धर्म-
स्तासां प्रणामं सततं च कुर्यात्॥ (विष्णुधर्मो २/४२/५८)
गौ-रूपी तीर्थ में गंगा आदि सभी नदियों तथा तीर्थों का आवास है, उसकी परम पावन धूलि में पुष्टि विद्यमान है, उसके गोमय में साक्षात् लक्ष्मी है तथा इन्हें प्रणाम करने में धर्म संपन्न हो जाता है। अतः गोमाता सदा सर्वदा प्रणाम करने योग्य है।
भगवान् मनु ने गोदान का फल कितना उत्कृष्ट बताया है –
अनडुहः श्रियं पुष्टां गोदो ब्रध्नस्य विष्टपम्।
अर्थात् बैल को देने वाला अतुल संपत्ति तथा गाय को देनेवाला दिव्यातिदिव्य सूर्यलोक को प्राप्त करता है।
गवां सेवा तु कर्तव्या गृहस्थैः पुण्यलिप्सुभिः।
गवां सेवापरो यस्तु तस्य श्रीवर्धतेऽचिरात्॥
अर्थात् प्रत्येक पुण्य की इच्छा रखने वाले सद्गृहस्थ को गायों की सेवा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि जो नित्य श्रद्धा-भक्ति से गायों की प्रयत्नपूर्वक सेवा करता है, उसकी संपत्ति शीघ्र ही वृद्धि को प्राप्त होती है और नित्य वर्धमान रहती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि धर्मशास्त्रों में गाय का अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण स्थान है।
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TogglePraise of Kamadhenu by Lord Brahma, Vishnu and Shiva | ब्रह्मा-विष्णु-महेश द्वारा कामधेनु की स्तुति
त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्। त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे॥
शशिसूर्यारुणा यस्या ललाटे वृषभध्वजः। सरस्वती च हुङ्कारे सर्वे नागाश्च कम्बले॥
क्षुरपृष्ठे च गन्धर्वा वेदाश्चत्वार एव च। मुखाग्रे सर्वतीर्थानि स्थावराणि चराणि च॥
(स्कन्द. ब्रह्म. धर्मारण्य. १०/१८-२०)
हे निष्पापे! तुम सब देवताओं की माता, यज्ञ की कारणरूपा और सम्पूर्ण तीर्थों की तीर्थरूपा हो। हम तुम्हें सदा नमस्कार करते हैं। तुम्हारे ललाट में चन्द्रमा, सूर्य, अरुण और वृषभध्वज शंकर हैं, हुंकार में सरस्वती, गलकम्बल में नागगण, खुरों में गन्धर्व और चारों वेद तथा मुख के अग्रभाग में चर एवं अचर सम्पूर्ण तीर्थ विराजमान हैं।
Prayer to Mother Cow | गौ-प्रार्थना - सा धेनुर्वरदास्तु मे
या लक्ष्मीः सर्वभूतानां या च देवेषु संस्थिता। धेनुरूपेण सा देवी मम शान्तिं प्रयच्छतु॥
देहस्था या च रुद्राणी शङ्करस्य सदा प्रिया। धेनुरूपेण सा देवी मम पापं व्यपोहतु॥
विष्णोर्वक्षसि या लक्ष्मीः स्वाहा या च विभावसोः। चन्द्रार्कशक्रशक्तिर्या धेनुरुपास्तु सा श्रिये॥
चतुर्मुखस्य या लक्ष्मीर्या लक्ष्मीर्धनदस्य च। लक्ष्मीर्या लोकपालानां सा धेनुर्वरदास्तु मे॥
स्वधा या पितृमुख्यानां स्वाहा यज्ञभुजां च या। सर्वपापहरा धेनुस्तस्माच्छान्तिं प्रयच्छ मे॥
जो समस्त प्राणियों की तत्त्वतः वास्तविक लक्ष्मी है और जो सभी देवताओं में हविष्य रूप से स्थित है, वह धेनुरूपा देवी मुझे सुख-शान्ति प्रदान करे। भगवान् शंकर के आधे अंग में विराजने वाली जो मूल रुद्राणी नाम की प्रियतमा शक्ति है, वह गौरूपा देवी मेरे पाप-ताप को दूर करे। जो भगवान् विष्णु के ह्रदय में विराजने वाली भगवती लक्ष्मी है, जो अग्नि के साथ नित्यस्थित रहने वाली स्वाहा नाम की शक्ति है और जो चन्द्रमा, सूर्य और इन्द्र की साक्षात् इष्ट शक्ति है, वह गौरूपा देवी मेरे लिए कल्याणदायिनी लक्ष्मी बने। जो चतुर्मुख ब्रह्मा जी की आत्मशक्ति रूपा विद्या की अधिष्ठात्री सरस्वती देवी है और जो धनाधीश कुबेर की लक्ष्मीरूपा शक्ति है तथा जो समस्त लोकपालों की ऐश्वर्यरूपा लक्ष्मी है, वह गौरूपा धेनु मेरे लिए वरदायिनी हो। जो श्रेष्ठ पितरों की स्वधा नाम की शक्ति है और जो यज्ञभुक् देवताओं के लिए स्वाहा नाम की सहायिका शक्ति है, वह सब पाप-तापों को नष्ट करने वाली कल्याणस्वरूपा गौ मुझे परम शान्ति प्रदान करे।
Salutations to Cows | गौओं के लिए नमस्कार
नमस्ते जायमानायै जाताया उत ते नमः। बालेभ्यः शफेभ्यो रुपायाघ्न्ये ते नमः॥
हे अवध्य गौ! उत्पन्न होते समय तुम्हें नमस्कार और उत्पन्न होने पर भी तुम्हें प्रणाम। तुम्हारे रूप (शरीर), रोम और खुरों को भी प्रणाम।
नमो गोभ्यः श्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य एव च। नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नमः॥
श्रीमती गौओं को नमस्कार। कामधेनु की संतानों को नमस्कार। ब्रह्माजी की पुत्रियों को नमस्कार। पावन करने वाली गौओं को नमस्कार।
पञ्च गावः समुत्पन्ना मथ्यमाने महोदधौ। तासां मध्ये तु या नन्दा तस्यै देव्यै नमो नमः॥
सर्वकामदुघे देवि सर्वतीर्थाभिषेचिनि। पावनि सुरभिश्रेष्ठे देवि तुभ्यं नमो नमः॥
क्षीरसमुद्र के मथे जाने पर उनमें से पाँच गौएँ प्रकट हुईं, उनमें से जो नन्दा नाम की श्रेष्ठ गौ है, उस देवी को बारम्बार नमस्कार है। हे श्रेष्ठ सुरभिदेवी! तुम समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली तथा समस्त तीर्थों में स्नान करने वाली हो। अतः हे पवित्र करने वाली देवी! तुम्हें बार-बार नमस्कार है।
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्। तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम् ॥
जिस गौ से यह स्थावर-जंगम अखिल विश्व व्याप्त है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ।
असिपत्रादिकं घोरं नदीं वैतरणीं तथा।
प्रसादात् ते तरिष्यामि गोमातस्ते नमो नमः॥
हे गोमाता! तुम्हारी कृपा से मैं असिपत्रवन आदि घोर नरकों को तथा वैतरणी नदी को पार कर जाऊँगा, मैं तुम्हें बार-बार नमन-वन्दन करता हूँ।
त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।
त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे॥
हे निष्पापे गौ! तुम सभी देवताओं की माता हो, यज्ञ की आधारभूता हो और तुम्हीं सभी तीर्थों की तीर्थरूपा हो, अतः तुम्हें बार-बार नमस्कार है।
नमो देव्यै महादेव्यै सुरभ्यै च नमो नमः। गवां बीजस्वरूपायै नमस्ते जगदम्बिके॥
नमो राधाप्रियायै च पद्मान्शायै नमो नमः। नमः कृष्णप्रियायै च गवां मात्रे नमो नमः॥
कल्पवृक्षस्वरूपायै सर्वेषां सततं परे। क्षीरदायै धनदायै बुद्धिदायै नमो नमः॥
शुभायै च सुभद्रायै गोप्रदायै नमो नमः। यशोदायै कीर्तिदायै धर्मदायै नमो नमः॥ (देवी भागवत ९/४९/२४-२७, ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखण्ड, अध्याय ४७)
देवी को नमस्कार है। महादेवी सुरभी को बार-बार नमस्कार है। जगदम्बिके! तुम गौओं की आदिकारण हो; तुम्हें नमस्कार है। श्री राधा-प्रिया को नमस्कार है। देवी पद्मांशा को बार-बार नमस्कार है। श्रीकृष्ण-प्रिया को नमस्कार है। गौओं को उत्पन्न करने वाली देवी को बार-बार नमस्कार है। सबके लिए जो कल्पवृक्ष स्वरूपा हैं तथा क्षीर, धन और बुद्धि प्रदान करने के लिए सदा तत्पर रहती हैं, उन भगवती सुरभी को बार-बार नमस्कार है। शुभा, सुभद्रा और गोप्रदा नाम से शोभा पाने वाली देवी को बार-बार नमस्कार है। यश, कीर्ति और धर्म प्रदान करने वाली देवी को बार-बार नमस्कार है।
Mother Cow, an embodiment of all the Teerthas (pilgrimages) and the Liberator | सर्वतीर्थमयी मुक्तिदायिनी गोमाता
सर्वे देवा गवामङ्गे तीर्थानि तत्पदेषु च। तद्गुह्येषु स्वयं लक्ष्मीस्तिष्ठित्येव सदा पितः ॥
गोष्पदाक्तमृदा यो हि तिलकं कुरुते नरः। तीर्थस्नातो भवेत् सद्यो जयस्तस्य पदे पदे ॥
गावस्तिष्ठन्ति यत्रैव तत्तीर्थं परिकीर्तितम्। प्राणांस्त्यक्त्वा नरस्तत्र सद्यो मुक्तो भवेद् ध्रुवम् ॥ (ब्रह्मवैवर्तपुराण, श्रीकृष्णज. २१/९१-९३)
गौ के शरीर में समस्त देवगण निवास करते हैं और गौ के पैरों में समस्त तीर्थ निवास करते हैं। गौ के गुह्य भाग में लक्ष्मी सदा रहती हैं। गौ के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक जो मनुष्य अपने मस्तक में लगाता है, वह तत्काल तीर्थजल में स्नान करने का पुण्य प्राप्त करता है और उसकी हर पद (कदम) पर विजय होती है। जहाँ पर गौएँ रहती हैं उस स्थान को तीर्थभूमि कहा गया है। ऐसी भूमि में जिस मनुष्य की मृत्यु होती है वह तत्काल मुक्त हो जाता है, यह निश्चित है।
गवां हि तीर्थे वसतीह गङ्गा
पुष्टिस्तथा तद्रजसि प्रवृद्धा।
लक्ष्मीः करीषे प्रणतौ च धर्म-
स्तासां प्रणामं सततं च कुर्यात्॥ (विष्णुधर्मो २/४२/५८)
गौ-रूपी तीर्थ में गंगा आदि सभी नदियों तथा तीर्थों का आवास है, उसकी परम पावन धूलि में पुष्टि विद्यमान है, उसके गोमय में साक्षात् लक्ष्मी है तथा इन्हें प्रणाम करने में धर्म संपन्न हो जाता है। अतः गोमाता सदा सर्वदा प्रणाम करने योग्य है।
गोमाता की सेवा से, पंचगव्य-प्राशन से तथा चरणोदक मार्जन से तीर्थ-स्नान का फल प्राप्त होता है।
यत्र तीर्थे सदा गावः पिबन्ति तृषिता जलम्।
उत्तरयन्त्यथवा येन स्थिता तत्र सरस्वती॥
गाय जहाँ पर पानी पीती है अथवा जिस जल से पार होती है, वह स्थान तीर्थ है और वहाँ सरस्वतीजी विद्यमान होती हैं।
Serving Cows | गोशुश्रूषा (गोसेवा)
गाश्च शुश्रूषते यश्च समन्वेति च सर्वशः तस्मै तुष्टाः प्रयच्छन्ति वरानपि सुदुर्लभान्॥
द्रुह्येन्न मनसा वापि गोषु नित्यं सुखप्रदः अचर्येत सदा चैव नमस्कारैश्च पूजयेत्॥
दान्तः प्रीतमना नित्यं गवां व्युष्टिं तथाश्नुते॥
जो व्यक्ति गौओं की सेवा करता है और सब प्रकार से उसका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौएँ उसे अत्यन्त दुर्लभ वर प्रदान करती हैं। गौओं के साथ कभी मन से द्वेष न करे, उन्हें सदा सुख पहुँचाये, उनका यथोचित सत्कार करे और नमस्कार आदि के द्वारा उनका पूजन करता रहे। जो मनुष्य जितेन्द्रिय और प्रसन्नचित होकर नित्य गौओं की सेवा करता है, वह समृद्धि का भागी होता है।
गोसेवा की अनेक विधियों में गोग्रास का मुख्य स्थान है। गाय के निमित्त श्रद्धा-भक्तिपूर्वक दिया गया खाद्य-पदार्थ गोग्रास कहलाता है। गोग्रास ग्रहण करने के लिए गौ माता से इस प्रकार प्रार्थना की जाती है –
सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः।
प्रतिगृह्णन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातरः॥
सुरभी वैष्णवी माता नित्यं विष्णुपदे स्थिता।
प्रतिगृह्णातु मे ग्रासं सुरभी मे प्रसीदतु॥
Go-Pradakshina | गो-प्रदक्षिणा
गवां दृष्ट्वा नमस्कृत्य कुर्याच्चैव प्रदक्षिणम्। प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुन्धरा॥
मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः। वृद्धिमाकांक्षता नित्यं गावः कार्याः प्रदक्षिणाः॥
गोमाता का दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा करे। ऐसा करने से सातों द्वीपों सहित भूमण्डल की प्रदक्षिणा हो जाती है। गौएँ समस्त प्राणियों की माताएँ एवं सारे सुख देने वाली हैं। वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को नित्य गौओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
Mantra for chanting while doing Pradakshina | गोप्रदक्षिणा मंत्र
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि नाशय धेनो त्वं प्रदक्षिणपदेपदे ॥
हे धेनो! जन्म-जन्मान्तरों में जो भी पाप मेरे द्वारा हुए हों, उन सभी को प्रदक्षिणा के पद-पद पर नष्ट कर दें।
Mantra for donating a cow | गोदान मंत्र
ॐ यज्ञसाधनभूता या विश्वपापौघनाशिनी।
विश्वरूपधरो देवः प्रीयतामनया गवा॥
जो गौ यज्ञ की साधनभूता है और संसार के समस्त पापसमूहों का नाश करने वाली है, उस गौ के दानकर्म से संसार में सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मणदेव प्रसन्न हों।
Gomati Vidya (from Vishnu Dharmottar Purana) | गोमती-विद्या (विष्णुधर्मोत्तर पुराण)
समस्त पापों का समूल उन्मूलन करने वाली गोमती विद्या …
गावः सुरभयो नित्यं गावो गुग्गुलगन्धिकाः। गावः प्रतिष्ठा भूतानां गावः स्वस्त्ययनं परम्॥
गौएँ नित्य सुरभि रूपिणी हैं (सुरभि गौओं की प्रथम माता एवं कल्याणमयी, पुण्यमयी, सुन्दर श्रेष्ठ गंधवाली हैं)। वे गुग्गुल के समान गंध से संयुक्त हैं। गायों पर ही समस्त जीवों का समुदाय प्रतिष्ठित है। वे सभी प्रकार के परम कल्याण (धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष) की सम्पादिका हैं।
अन्नमेव परं गावो देवानां हविरुत्तमम्। पावनं सर्वभूतानां क्षरन्ति च वहन्ति च॥
गायें समस्त उत्कृष्ट अन्नों के उत्पादन की मूलभूता शक्ति हैं और वे ही सभी देवताओं के भक्ष्यभूत हविष्यान्न आदि की सर्वोत्कृष्ट मूल उत्पादिका शक्ति हैं। वे सम्पूर्ण प्राणियों को पवित्र करने वाले दुग्ध और गोमूत्र का वहन और क्षरण करती हैं।
Cows praised in the Vedas | वेद में गौ की महिमा
ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिर्द्यौः समुद्रसमं सरः।
इन्द्रः पृथिव्यै वर्षीयान् गोस्तु मात्रा न विद्यते॥ (यजुर्वेद २३/४८)
जिस ब्रह्मविद्या द्वारा मनुष्य परम सुख को प्राप्त करता है, उसकी सूर्य से उपमा दी जा सकती है। उसी प्रकार द्युलोक की समुद्र से तथा विस्तीर्ण पृथ्वी की इन्द्र से उपमा दी जा सकती है, किन्तु प्राणिमात्र के अनन्त उपकारों को अकेली सम्पन्न करने वाली गौ की किसी से उपमा नहीं दी जा सकती। गौ निरुपमा है, गौ के समान उपकारी जीव मनुष्य के लिए दूसरा कोई भी नहीं है।
वेद ने गौ को विश्वरूप और सर्वरूप भी कहा है –
एतद्वै विश्वरूपं सर्वरूपं गोरूपम्। (अथर्ववेद ९/७/२५)
गौ और पृथ्वी – ये दोनों गौ के ही स्वरूप हैं। ये दोनों ही एक-दूसरी की सहायिका और सहचरी हैं। मृत्युलोक की आधारशक्ति ‘पृथ्वी’ है और देवलोक की आधारशक्ति ‘गौ’ है। संसार में पृथ्वी और गौ से अधिक क्षमावान और कोई नहीं है। अतः ये दोनों ही महान हैं।
‘गोरिति पृथिव्या नामधेयम्‘ (निरुक्त २/१/१) अर्थात् गौ यह पृथ्वी का वाचक है। …
Cows praised in Brihat Parashara Smriti | बृहत्पराशरस्मृति में गोमहिमा
अनादेयतृणान्यत्त्वा स्रवन्त्युदिनं पयः।
तुष्टिदा देवतादीनां पूज्या गावः कथं न ताः॥
मनुष्यों के व्यवहार के अयोग्य सामान्य तृण-पत्तों-घास आदि को चरकर जो गौ निरंतर प्रतिदिन दूध का प्रस्रवण करती हैं तथा उस दूध से घी-दही आदि का निर्माण होकर देवता भी (आहुतियों से) संतुष्ट होते हैं, भला ऐसी वे गायें पूज्य कैसे नहीं हैं? अर्थात् वे सब प्रकार से पूज्य हैं।
स्पृष्टाश्च गावः शमयन्ति पापं
संसेविताश्चोपयन्ति वित्तम्।
ता एव दत्तास्त्रिदिवं नयन्ति
गोभिर्न तुल्यं धनमस्ति किञ्चित्॥
स्पर्श कर लेने मात्र से ही गौएँ मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट कर देती हैं और आदरपूर्वक सेवन किये जाने पर अपार संपत्ति प्रदान करती हैं। वे ही गायें दान दिए जाने पर सीधे स्वर्ग ले जाती हैं, ऐसी गौओं के समान और कोई भी धन नहीं है।
Cows praised in Padma Purana | पद्मपुराण में गोमहिमा
सृष्टिखण्ड ५७/१५१-१५६)
घृतक्षीरप्रदा गाव घृतयोन्यो घृतोद्भवाः।
घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥
घृतं मे सर्व गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्।
गौएँ दूध और घी प्रदान करने वाली हैं। वे घृत की उत्पत्ति स्थान और घी की उत्पत्ति में कारण हैं। वे घी की नदियाँ हैं, उनमें घी की भवँरे उठती हैं। ऐसी गौएँ सदा मेरे घर पर उपस्थित रहें। घी मेरे सम्पूर्ण शरीर और मन में स्थित हो।
गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठतः एव च।
गावश्च सर्वगात्रेषु गवां मध्ये वसाम्यहम्॥
‘गौएँ सदा मेरे आगे रहें, वे ही मेरे पीछे रहें। मेरे सब अंगों को गौओं का स्पर्श प्राप्त हो। मैं गौओं के बीच में निवास करूँ।’
Cows praised in Agni Purana | अग्निपुराण में गोमहिमा
(अग्निपुराण २९२/१-६)
गावः पवित्रा माङ्गल्या गोषु लोकाः प्रतिष्ठिताः॥
(भगवान् धन्वन्तरि आचार्य सुश्रुत से कहते हैं – हे सुश्रुत!) – गौएँ पवित्र और मंगलदायिनी हैं। गौओं में समस्त लोक प्रतिष्ठित हैं।
शकृन्मूत्रं परं तासामलक्ष्मीनाशनं परम्।
गवां कण्डूयनं वारि शृङ्गस्याघौघमर्दनम् ॥
गौओं का गोबर और मूत्र अलक्ष्मी (दरिद्रता) के नाश का सर्वोत्तम साधन है। उनके शरीर को खुजलाना तथा उन्हें श्रृंगोदक से स्नान कराना समस्त पापों का मर्दन करने वाला है।
Cows praised in Bhavishya Purana | भविष्यपुराण में गोमहिमा
(उत्तरपर्व, अ० ६९)
क्षीरोदतोयसम्भूता याः पुरामृतमन्थने।
पञ्च गावः शुभाः पार्थ पञ्चलोकस्य मातरः॥
नन्दा सुभद्रा सुरभिः सुशीला बहुला इति।
एता लोकोपकाराय देवानां तर्पणाय च॥
(भगवान् श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा – पार्थ !) समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से पाँच लोकों की मातृस्वरूपा कल्याणकारिणी जो पाँच गौएँ उत्पन्न हुई थीं, उनके नाम थे – नन्दा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला। ये सभी गौएँ समस्त लोकों के कल्याण तथा देवताओं की हविष्य के द्वारा परितृप्त करने के लिए आविर्भूत हुई थीं।
जमदग्निभरद्वाजवसिष्ठासितगौतमाः।
जगृहुः कामदाः पञ्च गावो दत्ताः सुरैस्ततः॥
फिर देवताओं ने इन्हें महर्षि जमदग्नि, भरद्वाज, वशिष्ठ, असित और गौतम मुनि को समर्पित किया और उन्होंने इन्हें प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण किया। ये सभी गौएँ सम्पूर्ण कामनाओं को प्रदान करने वाली कामधेनु कही गयी हैं।
Cow-service mentioned in Shrimad Bhagvat Mahapurana | श्रीमद्भागवत महापुराण में गोसेवा
यदा देवेषु वेदेषु गोषु विप्रेषु साधुषु।
धर्मे मयि च विद्वेषः स वा आशु विनश्यति॥ (७/४/२७)
कोई भी जीव जब देवता, वेद, गाय, ब्राह्मण, साधु, धर्म एवं मुझसे (भगवान् से) द्वेष करने लगता है तब शीघ्र ही उसका विनाश हो जाता है।
गोब्राह्मणार्थे हिंसायां नानृतं स्याज्जुगुप्सितम्॥ (८/१९/४३)
गौ और ब्राह्मण के हित के लिए एवं किसी को मृत्यु से बचाने के लिए असत्य भाषण भी निन्दनीय नहीं है।
श्रीभगवान् सनकादि ऋषियों से कह रहे हैं –
ये मे तनूर्द्विजवरान् दुहतीर्मदीया
भूतान्यलब्धशरणानि च भेदबुद्धया।
द्रक्ष्यन्तघक्षतदृषो ह्यहिमन्यवस्तान्
गृध्रा रूपा मम कुपन्त्यधिदण्डनेतुः ॥
अर्थात् ब्राह्मण, मेरी गायें एवं आश्रयहीन अनाथ प्राणी – ये तीनों मेरे ही शरीर हैं। पापों के कारण विवेकहीन हुए जो लोग उन्हें भेददृष्टि से देखते हैं, उन्हें मेरे द्वारा नियुक्त यमराज के गृध्र रुपी दूत – जो सर्पों के समान क्रोधी हैं – अत्यन्त क्रोधयुक्त होकर चोंचों से नोचते हैं।
Cows praised in the Mahabharata | महाभारत में गोमहिमा
(अनुशासन पर्व, दानधर्मपर्व, ५१/२६-३४)
गोभिस्तुल्यं न पश्यामि धनं किञ्चिदिहाच्युत॥
कीर्तनं श्रवणं दानं दर्शनं चापि पार्थिव।
गवां प्रशस्यते वीर सर्वपापहरं शिवम् ॥
(महर्षि च्यवन ने राजा नहुष से कहा -) अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होनेवाले हे राजेन्द्र ! मैं इस संसार में गौओं के समान दूसरा कोई धन नहीं देखता हूँ। वीर भूपाल ! गौओं के नाम और गुणों का कीर्तन तथा श्रवण करना, गौओं का दान देना और उनका दर्शन करना – इनकी शास्त्रों में बड़ी प्रशंसा की गयी है। ये सब कार्य सम्पूर्ण पापों को दूर करके परम कल्याण की प्राप्ति कराने वाले हैं।
गावो लक्ष्म्याहाः सदा मूलं गोषु पाप्मा न विद्यते।
अन्नमेव सदा गावो देवानां परमं हविः ॥
गौएँ सदा लक्ष्मी की मूल हैं। गौओं में पाप की स्थिति नहीं होती है। गौएँ ही मनुष्यों को सर्वदा अन्न और देवताओं को हविष्य देने वाली हैं।
Praise of Cows in Gau Tantra (Shiv-Parvati) | गौ तंत्र में गोमहिमा (शिव-पार्वती संवाद)
गौ तंत्र में भगवान् शिव माता पार्वती से कहते हैं –
गुरौ मनुष्यबुद्धिं तु मन्त्रे वर्णमतिं तथा।
पशुबुद्धिं गवां कृत्वा मनुष्यो नरकं व्रजेत्॥
गुरु को मनुष्य मानने से, मंत्र को अक्षर मानने से और गाय को पशु मानने से मनुष्य नरकों में जाता है।
गोपूजा परमा पूजा गोसेवा परमं तपः।
गोमन्त्रः परमो मन्त्रः यो जानाति स मुच्यते॥
गौ की पूजा परम पूजा है। गौ की सेवा उत्तम तप है। गौ मंत्र का जप श्रेष्ठ मंत्र है। जो ऐसा जानता है, वह मुक्त हो जाता है।
Cow-service by Maharshi Vashishtha | महर्षि वशिष्ठ की गोसेवा
महर्षि वशिष्ठ स्वयं अपने हाथों नित्य गौ की सेवा करते थे। अपने आश्रम में देवी अरुन्धती एवं स्वयं वे नित्य गौ की पूजा करते थे। गौ की कितनी अनन्त महिमा है तथा गोसेवा क्या है, उसका क्या फल है, वे भली-भाँति जानते थे। इसलिए नित्य वे गायों का सानिध्य चाहते थे। गोतत्त्व वेत्ताओं के तो महर्षि वशिष्ठ आद्या आचार्य ही हैं। महर्षि गोमहिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं –
गावः प्रतिष्ठा भूतानां गावः स्वस्त्ययनं महत्।
गावो भूतं च भव्यं च गावः पुष्टिः सनातनी॥ (महाभारत, अनुशासन पर्व ७८/५-६)
गौएँ ही समस्त प्राणियों के जीवन का अवलम्ब हैं, गौएँ कल्याण-मंगल का परम निधान हैं। पहले के लोगों का ऐश्वर्य गौ पर आधारित था और आगे की उन्नति भी गौ पर ही अवलंबित है। गौएँ ही सब पुष्टि का साधन हैं।
नाकीर्तयित्वा गाः सुप्यात् तासां संस्मृत्य चोत्पतेत्।
सायंप्रातर्नमस्येच्च गास्ततः पुष्टिमाप्नुयात्॥
गाश्च संकीर्तयेन्नित्यं नावमन्येत तास्तथा।
अनिष्टं स्वप्नमालक्ष्य गां नरः सम्प्रकीर्तयेत्॥ (महाभारत, अनुशासन पर्व ७८/१६,१८)
अर्थात् गौओं का नामकीर्तन किये बिना न सोये। उनका स्मरण करके ही उठे और सबेरे-शाम उन्हें नमस्कार करे। इससे मनुष्य को बल और पुष्टि प्राप्त होती है। प्रतिदिन गौओं का नाम ले, उनका कभी अपमान न करे। यदि बुरे स्वप्न दिखाई दें तो मनुष्य गोमाता का नाम ले।
महर्षि वशिष्ठ कहते हैं कि जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक रात-दिन निम्न मंत्र का बराबर कीर्तन करता है वह सम अथवा विषम किसी भी स्थिति में भय से सर्वथा मुक्त हो जाता है और सर्वदेवमयी गोमाता का कृपा-पात्र बन जाता है। मंत्र इस प्रकार है –
गा वै पश्याम्यहं नित्यं गावः पश्यन्तु मां सदा।
गावोऽस्माकं वयं तासां यतो गावस्ततो वयम्॥ (महाभारत, अनुशासन पर्व ७८/२४)
अर्थात् मैं सदा गौओं का दर्शन करूँ और गौएँ मुझपर कृपा-दृष्टि करें। गौएँ हमारी हैं और हम गौओं के हैं। जहाँ गौएँ रहें, वहीं हम रहें। चूँकि गौएँ हैं, इसी से हमलोग भी हैं।
Go Savitri Stotram | गो सावित्री स्तोत्रम्
(महाभारत, भीष्म पितामह – युधिष्ठिर संवाद)
नारायणं नमस्कृत्य देवीं त्रिभुवनेश्वरीम्।
गोसावित्रीं प्रवक्ष्यामि व्यासेनोक्तं सनातनीम् यस्य श्रवणमात्रेण सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ १॥
नारायण एवं त्रिलोक-स्वामिनी देवी को नमस्कार करके महर्षि व्यास द्वारा रचित शाश्वत गोसावित्री स्तोत्रं मैं सुनाने जा रहा हूँ। स्तोत्र के सुनने मात्र से ही व्यक्ति समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
Prostrations to Narayana & Goddess Devi, the Controller of all the three worlds. Gosavitri Stotram is rendered here. This stotram is eternal and it has been composed by Maharshi Vyasa. Just by hearing this stotram, a person gets relieved of sins.
Importance of Cow’s milk and Panch Gavya | गोदुग्ध तथा पंचगव्य का माहात्म्य
गौ से प्राप्त होने वाले पञ्चगव्य (दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर) की अनन्त महिमा गायी गयी है –
गव्यं पवित्रं च रसायनं च पथ्यं च हृद्यं बलबुद्धिदं स्यात्।
आयुःप्रदं रक्तविकारहारि त्रिदोषहृद्रोगविषापहं स्यात्॥
अर्थात् पंचगव्य परम पवित्र रसायन है, पथ्य है, ह्रदय को आनंद देनेवाला है और बल तथा बुद्धि प्रदान करने वाला है। यह आयु प्रदान करने वाला, रक्त के समस्त विकारों को दूर करने वाला, कफ, वात तथा पित्त जन्य तीनों दोषों, ह्रदय के रोगों और तीक्ष्ण विष के प्रभाव को भी दूर करने वाला है।
यत्त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके।
प्राशनात् पञ्चगव्यस्य दहत्वग्निरिवेन्धनम्॥
पंचगव्य पान से कायिक, वाचिक, मानसिक पाप-संताप दूर हो जाते हैं। इसके प्राशन मात्र से ही शरीर के चर्म एवं अस्थिगत सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
विश्व में गोदुग्ध के सदृश पौष्टिक आहार अन्य कोई है ही नहीं, इसे अमृत कहा गया है। स्वास्थ्य की दृष्टि से गोदुग्ध को पूर्णाहार माना गया है। शरीर संवर्धन हेतु इसमें प्रत्येक तत्त्व विद्यमान है। मानव की शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाने वाला गोदुग्ध ही है। चरक संहिता में गोदुग्ध को जीवनी-शक्तियों में सर्वश्रेष्ठ रसायन कहा गया है –
प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्तं रसायनम्।
सुश्रुत ने भी गोदुग्ध को जीवनीय कहा है। (सुश्रुत, अ. ४५)
लक्ष्मीश्च गोमये नित्यं पवित्रा सर्वमङ्गला।
गोमयालेपनं तस्मात् कर्तव्यं पाण्डुनन्दन॥ (स्कन्द., अव., रेवा. ८३/१०८)
गोबर में परम पवित्र सर्वमंगलमयी श्रीलक्ष्मीजी नित्य निवास करती हैं, इसलिए गोबर से लेपन करना चाहिए।
Mantra for invocation of Mother Cow | गौमाता का आह्वान मंत्र
आवाहयाम्यहं देवीं गां त्वां त्रैलोक्यमातरम्।
यस्याः स्मरणमात्रेण सर्वपापप्रणाशनम्॥
त्वं देवी त्वं जगन्माता त्वमेवासि वसुन्धरा।
गायत्री त्वं च सावित्री गङ्गा त्वं च सरस्वती॥
आगच्छ देवि कल्याणि शुभां पूजां गृहाण च।
वत्सेन सहितां त्वाहं देवीमावाहयाम्यहम्॥
ॐ सुरभ्यै नमः, सुरभीमावाहयामि। आवाहनार्थे अक्षतान् समर्पयामि।
जिस गौमाता के स्मरण करने मात्र से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है, ऐसी तीनों लोकों की माता हे गौ देवी! मैं तुम्हारा आवाहन करता हूँ। हे देवी! तुम संसार की माता हो, तुम्हीं वसुन्धरा, गायत्री, सावित्री, गंगा तथा सरस्वती हो। हे कल्याणमयी देवी! तुम आकर मेरी शुभ पूजा को ग्रहण करो। बछड़े के सहित देवीस्वरूपा तुम्हारा मैं आवाहन करता हूँ।
‘ॐ सुरभ्यै नमः, सुरभीमावाहयामि। आवाहनार्थे अक्षतान् समर्पयामि।’ ऐसा उच्चारण करते हुए अक्षत छोड़ें।