शिव शिव शक्तिनाथं संहारं शं स्वरूपम्
नव नव नित्यनृत्यं ताण्डवं तं तन्नादम्
घन घन घूर्णिमेघं घंघोरं घंन्निनादम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ॥1॥
जो सर्वमंगलकारी हैं, शक्ति के स्वामी और संहार के प्रतीक हैं, जो अनादि, शाश्वत तांडव नृत्य में लीन रहते हैं और उस नृत्य के दौरान अविचल ध्यान में स्थित रहते हैं तथा जिनसे उत्पन्न होने वाली नाद ध्वनि प्रचंड तूफान के घने, काले और तीव्रता से घुमड़ते बादलों के समान है, मैं उन भस्म विभूषित, समस्त भूतों के अधिपति, भगवान शिव को बार-बार प्रणाम करता/करती हूँ।
कलकलकालरूपं कल्लोलंकंकरालम्
डम डम डमनादं डम्बुरुं डंकनादम्
सम सम शक्तग्रिवं सर्वभूतं सुरेशम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ॥2॥
जो लहरों की तरह प्रवाहित होने वाले समय का स्वरूप हैं, जो सभी भय को नष्ट करने वाले हैं, जिनका वाद्य यंत्र डमरू “डम-डम” की गूंज से पूरे ब्रह्मांड में प्रतिध्वनित होता है, जिनका गला इतना सुदृढ़ और सौम्य है कि वह विशाल सर्प वासुकी का भार सहन कर सके तथा जो समस्त जीवों के लिए इन्द्र के समान हैं, मैं उन भस्म-विभूषित, समस्त भूतों के अधिपति, भगवान शिव को बार-बार प्रणाम करता/करती हूँ।
रम रम रामभक्तं रमेशं रां रारावम्
मम मम मुक्तहस्तं महेशं मं मधुरम्
बम बम ब्रह्मरूपं बामेशं बं विनाशम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ॥3॥
जिनके आराध्य श्रीराम हैं, जो सदैव श्रीराम के ध्यान में लीन रहते हैं और निरंतर उनके नाम का जप करते हैं, जो अत्यंत मधुर, सौम्य, अत्यधिक उदार और मुक्तहस्त से अपने भक्तों को वरदान प्रदान करने वाले महान ईश्वर हैं, जो स्वयं ब्रह्मस्वरूप हैं, नकारात्मकता का विनाश करते हैं तथा जिनके पूरे शरीर पर भस्म का लेप है, मैं उन समस्त भूतों के अधिपति, भगवान शिव को बार-बार प्रणाम करता/करती हूँ।
हर हर हरिप्रियं त्रितापं हं संहारम्
खमखम क्षमाशीलं सपापं खं क्षमणम्
द्दग द्दग ध्यानमूर्त्तिं सगुणं धं धारणम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ॥4॥
जो श्रीहरि को प्रिय हैं, जो तीनों प्रकार के कष्टों और दुखों (आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक) के नाशक हैं, जो सदा क्षमाशील और दयालु हैं, जो सभी पापों को क्षमा कर देते हैं, जो ध्यान का स्वरूप हैं, सभी शुभ गुणों के धारक हैं तथा जिनके पूरे शरीर पर भस्म लिपटी हुई है, मैं उन समस्त भूतों के अधिपति, भगवान शिव को बार-बार प्रणाम करता/करती हूँ।
पम पम पापनाशं प्रज्वलं पं प्रकाशम्
गम गम गुह्यतत्त्वं गिरीशं गं गणानाम्
दम दम दानहस्तं धुन्दरं दं दारुणम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ॥5॥
जो जीवों के समस्त पापों का नाश करने वाले हैं, प्रकाश से प्रज्ज्वलित हैं, जो गुह्य तत्त्व ज्ञान को जानने और प्रकाशित करने वाले हैं, पर्वत और गणों के स्वामी हैं तथा जो उदार एवं दयालु होते हुए भी अत्यंत प्रचंड स्वरूपधारी हैं, मैं उन भस्म-विभूषित, समस्त भूतों के अधिपति, भगवान शिव को बार-बार प्रणाम करता/करती हूँ।
गम गम गीतनाथं दूर्गमं गं गंतव्यम्
टम टम रूंडमालं टंकारं टंकनादम्
भम भम भ्रम् भ्रमरं भैरवं क्षेत्रपाळम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ॥6॥
जो संगीत के स्वामी हैं, ‘दुर्लभ’ गंतव्य (लक्ष्य) हैं, जिनकी माला में लगी कपाल तांडव के समय आपस में टकराकर भयंकर गर्जना करते हैं, जो भ्रमर के समान भ्रमण करते हैं तथा जो भैरव के रूप में पवित्र क्षेत्रों की रक्षा करते हैं, उन भस्म विभूषित, समस्त भूतों के अधिपति, भगवान शिव को मैं बार-बार प्रणाम करता/करती हूँ।
त्रिशूलधारी संहारकारी गिरिजानाथं ईश्वरम्
पार्वतीपति त्वं मायापति शुभ्रवर्णं महेश्वरम्
कैलाशनाथ सतीप्राणनाथ महाकालं कालेश्वरम्
अर्धचंद्रं शिरकिरीटं भूतनाथं शिवं भजे ॥7॥
जो त्रिशूल धारण करते हैं, संहार करते हैं, गिरिजा के स्वामी हैं, जो माता पार्वती के पति हैं, माया के स्वामी हैं, गौर वर्ण वाले हैं, महान ईश्वर हैं, जो कैलाशपति हैं, माता सती के प्राणनाथ हैं, जो महाकाल हैं, काल के स्वामी हैं तथा जिनके सिर पर अर्ध चंद्रमा मुकुट जैसा सुशोभित है, उन समस्त भूतों के अधिपति, भगवान शिव की मैं बारम्बार पूजा करता/करती हूँ।
नीलकंठाय सत्स्वरूपाय सदाशिवाय नमो नमः
यक्षरूपाय जटाधराय नागदेवाय नमो नमः
इंद्रहाराय त्रिलोचनाय गंगाधराय नमो नमः
अर्धचंद्रं शिरकिरीटं भूतनाथं शिवं भजे ॥8॥
जिनका कंठ नीला है, जो सत्य के स्वरूप हैं एवं जो सदा कल्याणकारी हैं, उन सदाशिव को मैं बारम्बार नमस्कार करता/करती हूँ। जो यक्ष स्वरूप हैं एवं केशों की जटा धारण करते हैं, उन नागों के स्वामी नागदेव शिव को बारम्बार नमन करता/करती हूँ। जो सर्वश्रेष्ठ माला (सर्प वासुकी) धारण करते हैं, जो त्रिनेत्रधारी हैं तथा जो अपनी जटाओं में माँ गंगा को धारण करते हैं, उन्हें मैं नमन करता/करती हूँ। जो अपने मुकुट में अर्ध चंद्रमा का मुकुट धारण करते हैं, उन समस्त भूतों के स्वामी भूतनाथ की मैं उपासना करता/करती हूँ।
तव कृपा कृष्णदासः भजति भूतनाथम्
तव कृपा कृष्णदासः स्मरति भूतनाथम्
तव कृपा कृष्णदासः पश्यति भूतनाथम्
तव कृपा कृष्णदासः पिबति भूतनाथम् ॥
आपकी कृपा से कृष्णदास आपका पावन नाम जप रहे हैं। आपकी कृपा से कृष्णदास आपका स्मरण कर रहे हैं। आपकी कृपा से कृष्णदास आपका दर्शन कर रहे हैं तथा आपके दर्शन का अमृत पान कर रहे हैं।
भूतनाथाष्टकं यः पठति निष्कामभावेन सः शिवलोकं सगच्छति।
जो निष्काम भाव से भूतनाथाष्टकं का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है।
॥ इति श्री कृष्णदासविरचितं भूतनाथाष्टकम् सम्पूर्णम् ॥
इस प्रकार श्रीकृष्णदास द्वारा विरचित भूतनाथाष्टकं संपूर्ण होता है।