Cows praised in Padma Purana | पद्मपुराण में गोमहिमा

सृष्टिखण्ड ५७/१५१-१५६)

घृतक्षीरप्रदा गाव घृतयोन्यो घृतोद्भवाः।

घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥

घृतं मे सर्व गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्।

गौएँ दूध और घी प्रदान करने वाली हैं। वे घृत की उत्पत्ति स्थान और घी की उत्पत्ति में कारण हैं। वे घी की नदियाँ हैं, उनमें घी की भवँरे उठती हैं। ऐसी गौएँ सदा मेरे घर पर उपस्थित रहें। घी मेरे सम्पूर्ण शरीर और मन में स्थित हो।

गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठतः एव च।

गावश्च सर्वगात्रेषु गवां मध्ये वसाम्यहम्॥

‘गौएँ सदा मेरे आगे रहें, वे ही मेरे पीछे रहें। मेरे सब अंगों को गौओं का स्पर्श प्राप्त हो। मैं गौओं के बीच में निवास करूँ।‘

इत्याचम्य जपेन्मन्त्रं सायं प्रातरिदं शुचिः।

सर्वपापक्षयस्तस्य स्वर्लोके पूजितो भवेत्॥

इस मन्त्र को प्रतिदिन संध्या और प्रातःकाल में शुद्ध भाव से आचमन करके जपना चाहिए। ऐसा करने से उसके सब पापों का क्षय हो जाता है तथा वह स्वर्गलोक में पूजित होता है।

यथा गौश्च तथा विप्रो यथा विप्रस्तथा हरिः।

हरिर्यथा तथा गङ्गा एते न ह्यवृषाः स्मृताः॥

जैसे गौ आदरणीय है वैसे ब्राह्मण, जैसे ब्राह्मण हैं, वैसे ही भगवान् श्रीहरि हैं और जैसे हरि हैं, वैसे ही श्रीगंगाजी भी हैं। ये सभी धर्म के साक्षात् स्वरूप माने गए हैं।

गावो बन्धुर्मनुष्याणाम् मनुष्या बान्धवा गवाम्।

गौश्च यस्मिन् गृहे नास्ति तद् बन्धुरहितं गृहम् ॥

गौएँ मनुष्य की बन्धु हैं और मनुष्य गौओं के बन्धु हैं। जिस घर में गौ नहीं है, वह घर बन्धुशून्य है।

सृष्टिखण्ड ५७/ १६४-१६५)

गां च स्पृशति यो नित्यं स्नातो भवति नित्यशः।

अतो मर्त्यः प्रपुष्टैस्तु सर्वपापैः प्रमुच्यते॥

गवां रजः खुरोद्भूतं शिरसा यस्तु धारयेत्।

स च तीर्थजले स्नातः सर्वपापैः प्रमुच्यते॥

जो मनुष्य प्रतिदिन गौ का स्पर्श करता है, वह प्रतिदिन तीर्थजल में स्नान करने का फल प्राप्त करता है। गौ के द्वारा मनुष्य सर्वविध घोर पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य गौ के खुर से उड़ी हुई धूलि को अपने मस्तक पर धारण करता है, वह समस्त तीर्थों के जल में स्नान करने का फल प्राप्त करता है और समस्त पापों से छुटकारा पा जाता है।