The Essence of the Mahabharata | महाभारत-सार

जैसा कि आप जानते हैं, महाभारत सनातन धर्म का एक श्रेष्ठ ग्रन्थ है। यह मानव-धर्म की गुह्यता को सरल प्रसंगों के माध्यम से समझने में सहायता करता है। परन्तु इसकी विशालता के कारण इसके सम्पूर्ण अध्ययन में समय लगता है। इसी कारण से इस लेख में महाभारत-सार प्रस्तुत है, जिसे प्रतिदिन पढ़कर आप वैसा ही लाभ उठा सकते हैं। यह ‘भारत-सावित्री’ के नाम से भी प्रसिद्ध है।

मातापितृसहस्राणि पुत्रदारशतानि च।

संसारेष्वनुभूतानि यान्ति यास्यन्ति चापरे॥

(भगवान् वेदव्यास महाभारत के सारभूत उपदेश का इस प्रकार वर्णन करते हैं -) मनुष्य इस जगत में हजारों माता-पिताओं तथा सैकड़ों स्त्री-पुत्रों के संयोग-वियोग का अनुभव कर चुके हैं, करते हैं और करते रहेंगे।

हर्षस्थानसहस्राणि भयस्थानशतानि च।

दिवसे दिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डितम्॥

हर्ष के हजारों और भय के सैकड़ों स्थान हैं। वे मूढ़ मनुष्य पर प्रतिदिन अपना प्रभाव डालते हैं; परन्तु ज्ञानी पुरुष पर वे प्रभाव नहीं डाल सकते।

ऊर्ध्वबाहुर्विरौम्येष न च कश्चिच्छ्रणोति मे।

धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थं न सेव्यते॥

मैं दोनों हाथ ऊपर उठाकर पुकार-पुकार कर कह रहा हूँ, पर मेरी बात कोई नहीं सुनता। धर्म से मोक्ष तो सिद्ध होता ही है, अर्थ और काम भी सिद्ध होते हैं तो भी लोग उसका सेवन क्यों नहीं करते!

न जातु कामान्न भयान्न लोभाद्।

    धर्मं त्यजेज्जीवितस्यापि हेतोः॥

नित्यो धर्मः सुखदुःखे त्वनित्ये।

    जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः॥ 

कामना से, भय से, लोभ से अथवा प्राण बचाने के लिए भी धर्म का त्याग न करे। धर्म नित्य है और सुख-दुःख अनित्य। इसी प्रकार जीवात्मा नित्य है और उसके बंधन का हेतु अनित्य।

इमां भारतसावित्रीं प्रातरुत्थाय यः पठेत्।

स भारतफलं प्राप्य परं ब्रह्माधिगच्छति॥

यह महाभारत का सारभूत उपदेश ‘भारत-सावित्री’ के नाम से प्रसिद्ध है। जो प्रतिदिन सबेरे उठकर इसका पाठ करता है, वह सम्पूर्ण महाभारत के अध्ययन का फल पाकर परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त कर लेता है।

Author

  • Deep Ranjan Singh - Simplesanskrit.com Founder

    Deep is a Sanskrit learner and teacher. He has done his Engineering graduation from IIT Kanpur. He worked in the Information Technology sector serving Investment banks for ten years. He served as a Counsellor, Life Coach and Teacher, post his corporate career. Deep pursued the study of scriptures in search of the hidden treasures of valuable knowledge shared by the Rishis. In the process, he realized the need to learn Sanskrit. He, therefore, learned Sanskrit through self-study and Certification courses. Presently he spends a good chunk of his time sharing useful Sanskrit resources with all the Sanskrit lovers. You can reach him at deep@iitkalumni.org.

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