(उत्तरपर्व, अ० ६९)
क्षीरोदतोयसम्भूता याः पुरामृतमन्थने।
पञ्च गावः शुभाः पार्थ पञ्चलोकस्य मातरः॥
नन्दा सुभद्रा सुरभिः सुशीला बहुला इति।
एता लोकोपकाराय देवानां तर्पणाय च॥
(भगवान् श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा – पार्थ !) समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से पाँच लोकों की मातृस्वरूपा कल्याणकारिणी जो पाँच गौएँ उत्पन्न हुई थीं, उनके नाम थे – नन्दा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला। ये सभी गौएँ समस्त लोकों के कल्याण तथा देवताओं की हविष्य के द्वारा परितृप्त करने के लिए आविर्भूत हुई थीं।
जमदग्निभरद्वाजवसिष्ठासितगौतमाः।
जगृहुः कामदाः पञ्च गावो दत्ताः सुरैस्ततः॥
फिर देवताओं ने इन्हें महर्षि जमदग्नि, भरद्वाज, वशिष्ठ, असित और गौतम मुनि को समर्पित किया और उन्होंने इन्हें प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण किया। ये सभी गौएँ सम्पूर्ण कामनाओं को प्रदान करने वाली कामधेनु कही गयी हैं।
गोमयं रोचना मूत्रं क्षीरं दधि घृतं गवाम्।
षडङ्गानि पवित्राणि संशुद्धिकरणानि च॥
गौओं से उत्पन्न दूध, दही, घी, गोबर, मूत्र और रोचना – ये छः अंग (गोषडङ्ग) अत्यन्त पवित्र हैं और प्राणियों के सभी पापों को नष्ट कर उन्हें शुद्ध करने वाले हैं।
गोमयादुत्थितः श्रीमान् बिल्ववृक्षः शिवप्रियः।
तत्रास्ते पद्महस्ता श्रीः श्रीवृक्षस्तेन स स्मृतः।
बीजान्युत्पलपद्मानां पुनर्जातानि गोमयात्॥
श्री संपन्न बिल्व-वृक्ष गौओं के उत्पन्न हुआ है। यह भगवान् शिव जी को अत्यन्त प्रिय है। चूँकि उस वृक्ष में पद्महस्ता भगवती लक्ष्मी साक्षात् निवास करती हैं, इसलिए इसे श्रीवृक्ष भी कहा गया है। बाद में नीलकमल एवं रक्तकमल के बीज भी गोबर से ही उत्पन्न हुए थे।
गोरोचना च माङ्गल्या पवित्रा सर्वसाधिका।
गोमूत्राद् गुग्गुलुर्जातः सुगन्धिः प्रियदर्शनः॥
आहारः सर्वदेवानां शिवस्य च विशेषतः।
यद्बीजं जगतः किञ्चित्तज्ज्ञेयं क्षीरसंभवम्॥
गौओं के मस्तक से उत्पन्न परम पवित्र ‘गोरोचना’ समस्त अभीष्टों की सिद्धि करने वाली तथा परम मंगलदायिनी है। अत्यन्त सुगन्धित गुग्गुल नाम का पदार्थ गौओं के मूत्र से ही उत्पन्न हुआ है। यह देखने से भी कल्याण करता है। यह गुग्गुल सभी देवताओं का आहार है, विशेष रूप से भगवान् शंकर का प्रिय आहार है।
दधिजातानि सर्वाणि मङ्गलान्यर्थसिद्धये।
घृतादमृतमुत्पन्नं देवानां तृप्तिकारणम्॥
संसार के सभी मंगलप्रद बीज एवं सुन्दर-से-सुन्दर आहार तथा मिष्ठान्न आदि सब-के-सब गौ के दूध से ही बनाये जाते हैं। सभी प्रकार की मंगलकामनाओं को सिद्ध करने के लिए गाय का दही लोकप्रिय है। देवताओं को परम तृप्त करने वाला अमृत नामक पदार्थ गाय के घी से ही उत्पन्न हुआ है।
ब्राह्मणाश्चैव गावश्च कुलमेकं द्विधा कृतम्।
एकत्र मन्त्रास्तिष्ठन्ति हविरन्यत्र तिष्ठति॥
ब्राह्मण और गौ – ये दो नहीं हैं, अपितु एक ही कुल के दो रूप हैं। ब्राह्मणों में तो मंत्रों का निवास है और गौ में हविष्य स्थित है; इन दोनों के संयोग से ही विष्णुस्वरूप यज्ञ सम्पन्न होता है – (यज्ञो वै विष्णुः)।
गोषु यज्ञाः प्रवर्तन्ते गोषु देवाः प्रतिष्ठिताः।
गोषु वेदाः समुत्कीर्णाः सषडङ्ग्पदक्रमाः॥
गौओं से ही यज्ञ की प्रवृत्ति होती है और गौओं में सभी देवताओं का निवास है। छहों अंग – शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष और पद, जटा, शिखा, रेखा आदि क्रमों के साथ सभी वेद गौओं में ही सुप्रतिष्ठित हैं।