(स्कन्द पुराण – ब्राह्मखण्ड – सेतु-माहात्म्य )
नमो रामाय हरये विष्णवे प्रभविष्णवे, आदिदेवाय देवाय पुराणाय गदाभृते।
विष्टरे पुष्पके नित्यं निविष्टाय महात्मने, प्रहष्ट वानरानीकजुष्टपादाम्बुजाय ते ॥१॥
सबकी उत्पत्ति के आदिकारण सर्वव्यापी श्रीहरिस्वरूप श्रीरामचन्द्रजी को नमस्कार है। आदिदेव पुराणपुरुष भगवान गदाधर को नमस्कार है। पुष्पक के आसन पर नित्य विराजमान होने वाले महात्मा श्रीरघुनाथजी को नमस्कार है। हर्ष में भरे हुए वानरों का समुदाय आपके युगल चरणारविन्दों की सेवा करता है, आपको नमस्कार है।
निष्पिष्ट राक्षसेन्द्राय जगदिष्टविधायिने, नमः सहस्त्रशिरसे सहस्त्रचरणाय च।
सहस्त्राक्षाय शुद्धाय राघवाय च विष्णवे, भक्तार्तिहारिणे तुभ्यं सीतायाः पतये नमः ॥२॥
राक्षसराज रावण को पीस डालनेवाले तथा सम्पूर्ण जगत का अभीष्ट सिद्ध करने वाले श्रीरामचन्द्रजी को नमस्कार है। आपके सहस्रों मस्तक, सहस्रों चरण और सहस्रों नेत्र हैं, आप विशुद्ध विष्णु स्वरुप राघवेंद्र को नमस्कार है। आप भक्तों की पीड़ा दूर करने वाले तथा सीताजी के प्राणवल्लभ हैं, आपको नमस्कार है।
हरये नारसिंहाय दैत्यराजविदारिणे, नमस्तुभ्यं वराहाय दन्ष्ट्रोद्धृतवसुन्धर।
त्रिविक्रमयाय भवते बलियज्ञविभेदिने, नमो वामन रूपाय नमो मन्दरधारिणे ॥३॥
दैत्यराज हिरण्यकशिपु के वक्षःस्थल को विदीर्ण करने वाले आप नृसिंह रूपधारी भगवान् विष्णु को नमस्कार है। अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठाने वाले भगवान् वराह! आपको नमस्कार है। बलि के यज्ञ को भंग करने वाले आप भगवान् त्रिविक्रम को नमस्कार है। अपनी पीठ पर महान मंदराचल धारण करने वाले भगवान् कच्छप को नमस्कार है।
नमस्ते मत्स्यरूपाय त्रयीपालनकारिणे, नमः परशुरामाय क्षत्रियान्तकराय ते।
नमस्ते राक्षसघ्नाय नमो राघवरूपिणे, महादेवमहाभीममहाकोदण्डभेदिने ॥४॥
तीनों वेदों की सुरक्षा करनेवाले मत्स्यरूपधारी भगवान् को नमस्कार है। क्षत्रियों का अंत करनेवाले परशुरामरुपी राम को नमस्कार है। राक्षसों का नाश करनेवाले आपको नमस्कार है। राघवेन्द्र का रूप धारण करने वाले आपको नमस्कार है। महादेवजी के महान भयंकर महाधनुष को भंग करनेवाले आपको नमस्कार है।
क्षत्रियान्तकरक्रूरभार्गवत्रासकारिणे, नमोस्त्वहल्यासंतापहारिणे चापधारिणे।
नागायुतबलोपेतताटकादेहहारिणे, शिलाकठिनविस्तारवालिवक्षोविभेदिने ॥५॥
क्षत्रियों का अंत करने वाले क्रूर परशुराम को भी त्रास देनेवाले आपको नमस्कार है। भगवन्! आप अहल्या का संताप और महादेवजी का चाप हरने वाले हैं, आपको नमस्कार है। दस हजार हाथियों का बल रखने वाली ताड़का के शरीर का अंत करनेवाले आपको नमस्कार है। पत्थर के समान कठोर और चौड़ी बालि की छाती छेद डालनेवाले आपको नमस्कार है।
नमो मायामृगोन्माथकारिणेऽज्ञानहारिणे, दशस्यन्दनदु:खाब्धिशोषणागत्स्यरूपिणे।
अनेकोर्मिसमाधूतसमुद्रमदहारिणे, मैथिलीमानसाम्भोजभानवे लोकसाक्षिणे ॥६॥
आप मायामय मृग का नाश करनेवाले तथा अज्ञान को हर लेनेवाले है, आपको नमस्कार है। दशरथजी के दुःखरूपी समुद्र को शोष लेने के लिए आप मूर्तिमान अगस्त्य है, आपको नमस्कार है। अनंत उत्ताल तरंगों से उद्वेलित समुद्र का भी दर्प दलन करने वाले आपको नमस्कार है। मिथिलेशनन्दिनी सीताजी के हृदयकमल को विकसित करनेवाले सूर्यरूप आप लोकसाक्षी श्रीहरि को नमस्कार है।
राजेन्द्राय नमस्तुभ्यं जानकीपतये हरे, तारकब्रह्मणे तुभ्यं नमो राजीवलोचन।
रामाय रामचन्द्राय वरेण्याय सुखात्मने, विश्वामित्रप्रियायेदं नमः खरविदारिणे ॥ ७॥
हरे! आप राजाओं के भी राजा और जानकीजी के प्राणवल्लभ हैं, आपको नमस्कार है। कमलनयन! आप ही तारक ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है। आप ही योगियों के मन को रमाने वाले ‘राम’ हैं। राम होते हुए चन्द्रमा के समान आह्लाद प्रदान करने के कारण ‘रामचंद्र’ हैं। सबसे श्रेष्ठ और सुखस्वरूप हैं। आप विश्वामित्रजी के प्रिय हैं, खर नामक राक्षस का हृदय विदीर्ण करनेवाले हैं, आपको नमस्कार है।
प्रसीद देवदेवेश भक्तानामभयप्रद, रक्ष मां करुणासिन्धो रामचन्द्र नमोऽस्तुते।
रक्ष मां वेदवचसामप्यगोचर राघव, पाहि मां कृपया राम शरणं त्वामुपैम्यहम्॥८॥
भक्तों को अभयदान देनेवाले देवदेवेश्वर! प्रसन्न होइये। करुणासिन्धु श्रीरामचन्द्र! आपको नमस्कार है, मेरी रक्षा कीजिये। वेदवाणी के भी अगोचर राघवेन्द्र! मेरी रक्षा कीजिये। श्रीराम! कृपा करके मुझे उबारिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ।
रघुवीर महामोहमपाकुरु ममाधुना, स्नाने चाचमने भुक्तौ जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिषु|
सर्वावस्थासु सर्वत्र पाहि मां रघुनन्दन ॥९॥
रघुवीर! मेरे महान मोह को इस समय दूर कीजिये। रघुनन्दन! स्नान, आचमन, भोजन, जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति आदि सभी क्रियाओं और सब अवस्थाओं में आप मेरी रक्षा कीजिये।
महिमानं तव स्तोतुं कः समर्थो जगत्त्रये, त्वमेव त्वन्महत्वं वै जानासि रघुनन्दन ॥१०॥
तीनों लोकों में कौन ऐसा पुरुष है, जो आपकी महिमा का वर्णन या स्तवन करने में समर्थ हो सकता है? रघुकुल को आनंदित करनेवाले श्रीराम! आप ही अपनी महिमा को जानते हैं।