Shri Ram Stuti by Sage Suteekshna | सुतीक्ष्ण मुनि द्वारा श्री राम स्तुति

(स्रोत – श्रीरामचरितमानस, अरण्यकाण्ड)

श्याम तामरस दाम शरीरं । जटा मुकुट परिधान मुनिचीरं ॥

पाणि चाप शर कटि तूणीरं । नौमि निरंतर श्रीरघुवीरं ॥ 1 ॥

हे नीलकमल की माला के समान श्याम शरीर वाले ! हे जटाओं का मुकुट और मुनियों के (वल्कल) वस्त्र पहने हुए, हाथों में धनुष-बाण लिए तथा कमर में तरकस कसे हुए श्रीरामजी ! मैं आपको निरंतर नमस्कार करता हूँ ।

मोह विपिन घन दहन कृशानुः । संत सरोरुह कानन भानुः ॥

निसिचर करि वरूथ मृगराजः । त्रातु सदा नो भव खग बाजः ॥ 2 ॥

जो मोहरूपी  घने वन को जलाने के लिये अग्नि हैं, संतरूपी कमलों के वन के प्रफुल्लित करने के लिए सूर्य हैं, राक्षस रुपी हाथियों के समूह के पछाड़ने के लिये सिंह हैं और भव (आवागमन) रुपी पक्षी के  मारने के लिये बाजरूप हैं, वे प्रभु सदा हमारी रक्षा करें ।

अरुण नयन राजीव सुवेशं। सीता नयन चकोर निशेशं ॥

हर हृदि मानस बाल मरालं। नौमि राम उर बाहु विशालं ॥ 3 ॥

हे लाल कमल के समान नेत्र और सुन्दर वेषवाले ! सीताजी के नेत्र रुपी चकोर के चन्द्रमा, शिवजी के ह्रदय रुपी मानसरोवर के बालहंस, विशाल ह्रदय और भुजा वाले श्रीरामचन्द्रजी ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

संशय सर्प ग्रसन उरगादः। शमन सुकर्कश तर्क विषादः ॥

भव भंजन रंजन सुर यूथः। त्रातु सदा नो कृपा वरूथः ॥ 4 ॥

जो संशय रुपी सर्प को ग्रसने के लिए गरुड़ हैं, अत्यन्त कठोर तर्क से उत्पन्न होने वाले विषाद का नाश करने वाले हैं, आवागमन को मिटाने वाले और देवताओं के समूह को आनंद देने वाले हैं, वे कृपा के समूह श्रीरामजी सदा हमारी रक्षा करें।

निर्गुण सगुण विषम सम रूपं। ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं ॥

अमलमखिलमनवद्यमपारं। नौमि राम भंजन माहि भारं ॥ 5 ॥

हे निर्गुण, सगुण, विषम और सम रूप ! हे ज्ञान, वाणी और इन्द्रियों से अतीत ! हे अनुपम, निर्मल, सम्पूर्ण दोषरहित, अनन्त एवं पृथ्वी का भार उतारने वाले श्रीरामचन्द्रजी ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

भक्त कल्पपादप आरामः। तर्जन क्रोध लोभ मद कामः ॥

अति नागर भव सागर सेतुः।  त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः ॥ 6 ॥

जो भक्तों के लिए कल्पवृक्ष के बगीचे हैं, क्रोध, लोभ, मद और काम को डराने वाले हैं, अत्यन्त ही चतुर और संसार रुपी समुद्र से तरने के लिए सेतुरूप हैं, वे सूर्यकुल की ध्वजा श्रीरामजी सदा मेरी रक्षा करें।

अतुलित भुज प्रताप बल धामः। कली मल विपुल विभंजन नामः ॥

धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः। संतत शं तनोतु मम रामः ॥ 7 ॥

जिनकी भुजाओं का प्रताप अतुलनीय है, जो बल के धाम हैं, जिनका नाम कलियुग के बड़े भारी पापों का नाश करने वाला है, जो धर्म के कवच (रक्षक) हैं और जिनके गुणसमूह आनन्द देने वाले हैं, वे श्रीरामजी निरन्तर मेरे कल्याण का विस्तार करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *