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ToggleMeditation on Lord Sadashiva | भगवान् सदाशिव का ध्यान
यो धत्ते भुवनानि सप्त गुणवान् स्रष्टा रजःसंश्रयः संहर्ता तमसान्वितो गुणवतीं मायामतीत्य स्थितः ।
सत्यानन्दमनन्तबोधममलं ब्रह्मादिसंज्ञास्पदं नित्यं सत्त्वसमन्वयादधिगतं पूर्णं शिवं धीमहि ॥
जो रजोगुण का आश्रय लेकर संसार की सृष्टि करते हैं, सत्त्वगुण से संपन्न हो सातों भुवनों का धारण-पोषण करते हैं, तमोगुण से युक्त हो सबका संहार करते हैं तथा त्रिगुणमयी माया को लाँघ कर अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित रहते हैं, उन सत्यानन्दस्वरूप, अनन्त बोधमय, निर्मल एवं पूर्णब्रह्म शिव का हम ध्यान करते हैं। वे ही सृष्टिकाल में ब्रह्मा, पालन के समय विष्णु और संहारकाल में रुद्र नाम धारण करते हैं तथा सदैव सात्त्विक भाव को अपनाने से ही प्राप्त होते हैं।
Meditation on Supreme Lord Shiva | परमात्म प्रभु शिव का ध्यान
वेदान्तेषु यमाहुरेकपुरुषं व्याप्य स्थितं रोदसी यस्मिन्नीश्वर इत्यनन्यविषयः शब्दो यथार्थाक्षरः ।
अन्तर्यश्च मुमुक्षुभिर्नियमितप्राणादिभिर्मृग्यते स स्थाणुः स्थिरभक्तियोगसुलभो निःश्रेयसायास्तु वः ॥
वेदान्त ग्रन्थों में जिन्हें एकमात्र परम पुरुष परमात्मा कहा गया है, जिन्होंने समस्त पृथ्वी को अन्तर्बाह्य – सर्वत्र व्याप्त कर रखा है, जिन एकमात्र महादेव के लिए ‘ईश्वर’ शब्द अक्षरशः यथार्थरूप में प्रयुक्त होता है और जो किसी दूसरे के विशेषण का विषय नहीं बनता, अपने अन्तर्हृदय में समस्त प्राणों को निरुद्ध करके मोक्ष की इच्छा वाले योगीजन जिनका निरन्तर चिन्तन और अन्वेषण करते रहते, वे नित्य एक समान सुस्थिर रहने वाले, महाप्रलय में भी विक्रिया को प्राप्त न होनेवाले और भक्तियोग से शीघ्र प्रसन्न होनेवाले भगवान् शिव आप सभी का परम कल्याण करें।
Meditation on the Auspicious Lord Shiva | मंगलस्वरूप भगवान् शिव का ध्यान
कृपाललितवीक्षणं स्मितमनोज्ञवक्त्राम्बुजं शशाङ्ककलयोज्ज्वलं शमितघोरतापत्रयम् ।
करोतु किमपि स्फुरत्परमसौख्यसच्चिद्वपुर्धराधरसुताभुजोद्वलयितं महो मङ्गलम् ॥
जिनकी कृपापूर्ण चितवन बड़ी ही सुन्दर है, जिनका मुखारविंद मन्द मुस्कान की छटा से अत्यन्त मनोहर दिखाई देता है, जो चन्द्रमा की कला जैसे परम उज्जवल हैं, जो आध्यात्मिक आदि तीनों तापों को शान्त कर देने में समर्थ हैं, जिनका स्वरूप सच्चिन्मय एवं परमानन्द रूप से प्रकाशित होता है तथा जो गिरिराजनन्दिनी पार्वती के भुजापाश से आवेष्टित हैं, वे शिव नामक कोई अनिर्वचनीय तेजःपुंज सबका मंगल करें।
Meditaion on Lord Ardhanaareeshvar| भगवान् अर्धनारीश्वर का ध्यान
नीलप्रवालरुचिरं विलसत्त्रिनेत्रं पाशारुणोत्पलकपालत्रिशूलहस्तम्।
अर्धाम्बिकेशमनिशं प्रविभक्तभूषं बालेन्दुबद्धमुकुटं प्रणमामि रूपम् ॥
यो धत्ते निजमाययैव भुवनाकारं विकारोज्झितो यस्याहुः करुणाकटाक्षविभवौ स्वर्गापवर्गाभिधौ।
प्रत्यग्बोधसुखाद्वयं हृदि सदा पश्यन्ति यं योगिनस्तस्मै शैलसुताञ्चितार्धवपुषे शश्वन्नमस्तेजसे ॥
श्रीशंकरजी का शरीर नीलमणि और प्रवाल के समान सुन्दर (नीललोहित) है, तीन नेत्र हैं, चारों हाथों में पाश, लाल कमल, कपाल और त्रिशूल हैं, आधे अंग में अम्बिकाजी और आधे में महादेवजी हैं। दोनों अलग-अलग श्रृंगारों से सज्जित हैं, ललाट पर अर्धचन्द्र है और मस्तक पर मुकुट सुशोभित है, ऐसे स्वरूप को नमस्कार है।
Meditation on Lord Shankara | भगवान् शंकर का ध्यान
वन्दे वन्दनतुष्टमानसमतिप्रेमप्रियं प्रेमदं पूर्णं पूर्णकरं प्रपूर्णनिखिलैश्वर्यैकवासं शिवम्।
सत्यं सत्यमयं त्रिसत्यविभवं सत्यप्रियं सत्यदं विष्णुब्रह्मनुतं स्वकीयकृपयोपात्ताकृतिं शङ्करम् ॥
वन्दना करने से जिनका मन प्रसन्न हो जाता है, जिन्हें प्रेम अत्यन्त प्यारा है, जो प्रेम प्रदान करने वाले, पूर्णानन्दमय, भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करने वाले, सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के एकमात्र आवास स्थान और कल्याण स्वरूप हैं, सत्य जिनका श्रीविग्रह है, जो सत्यमय हैं, जिनका ऐश्वर्य त्रिकालाबाधित है, जो सत्यप्रिय एवं सत्यप्रदाता हैं, ब्रह्मा और विष्णु जिनकी स्तुति करते हैं, स्वेच्छानुसार शरीर धारण करने वाले उन भगवान् शंकर की मैं वंदना करता/करती हूँ।
Meditation on Gauri's Beloved Lord Shiva | गौरीपति भगवान् शिव का ध्यान
विश्वोद्भवस्थितिलयादिषु हेतुमेकं गौरीपतिं विदिततत्त्वमनन्तकीर्तिम्।
मायाश्रयं विगतमायमचिन्त्यरूपं बोधस्वरूपममलं हि शिवं नमामि ॥
जो विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और लय आदि के एकमात्र कारण हैं, गौरी गिरिराजकुमारी उमा के पति हैं, तत्त्वज्ञ हैं, जिनकी कीर्ति का कहीं अंत नहीं है, जो माया के आश्रय होकर भी उससे अत्यन्त दूर हैं तथा जिनका स्वरूप अचिन्त्य है, उन विमल बोधस्वरूप भगवान् शिव को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
Meditation on the Greatest of Great God | महामहेश्वर का ध्यान
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममर गणैर्व्याघ्रकृतिं वसानं विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥
चाँदी के पर्वत के समान जिनकी श्वेत कान्ति है, जो सुन्दर चन्द्रमा को आभूषण रूप से धारण करते हैं, रत्नमय अलंकारों से जिनका शरीर उज्ज्वल है, जिनके हाथों में परशु तथा मृग, वर और अभय मुद्रायें हैं, जो प्रसन्न हैं, पद्म के आसन पर विराजमान हैं, देवतागण जिनके चारों ओर खड़े होकर स्तुति करते हैं, जो बाघ की खाल पहनते हैं, जो विश्व के आदि, जगत की उत्पत्ति के बीज और समस्त भय को हरने वाले हैं, जिनके पाँच मुख और तीन नेत्र हैं, उन महेश्वर का प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए।
Meditation on the Five-faced Sadashiva | पञ्चमुख सदाशिव का ध्यान
मुक्तापीतपयोदमौक्तिकजवावर्णैर्मुखैः पञ्चभिः त्र्यक्षैरञ्चितमीशमिन्दुमुकुटं पूर्णेन्दुकोटिप्रभम्।
शूलं टङ्ककृपाणवज्रदहनान् नागेन्द्रघण्टाङ्कुशान् पाशं लं चिन्तयेत् ॥
भगवान् शंकर के पाँच मुखों में क्रमशः – ऊर्ध्वमुख गजमुक्ता के समान हल्के लाल रंग का, पूर्व-मुख पीतवर्ण का, दक्षिण-मुख सजल मेघ के समान नील-वर्ण का, पश्चिम-मुख मुक्ता के समान कुछ भूरे रंग का और उत्तर-मुख जवापुष्प के समान प्रगाढ़ रक्तवर्ण का है, जिनकी तीन आँखें हैं और सभी मुखमण्डलों में नीले मुकुट के साथ चन्द्रमा सुशोभित हो रहे हैं, जिनके मुखमण्डल की आभा करोड़ों पूर्ण चन्द्रमा के तुल्य आह्लादित करने वाली है, जो अपने हाथों में क्रमशः त्रिशूल, टङ्क, (परशु), तलवार, वज्र, अग्नि, नागराज, घण्टा, अङ्कुश, पाश तथा अभयमुद्रा धारण किए हुए हैं एवं जो अनन्त कल्पवृक्ष के समान कल्याणकारी हैं, उन सर्वेश्वर भगवान् शंकर का ध्यान करना चाहिए।
Meditation on the Lord of Ambika | अम्बिकेश्वर का ध्यान
आद्यन्तमङ्गलमजातसमानभावमार्यं तमीशमजरामरमात्मदेवम्।
पञ्चाननं प्रबलपञ्चविनोदशीलं सम्भावये मनसि शङ्करम्बिकेशम् ॥
जो आदि, मध्य और अन्त में नित्य मंगलमय हैं, जिनकी समानता या तुलना कहीं भी नहीं है, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले देवता (परमात्मा) हैं, जिनके पाँच मुख हैं और जो खेल ही खेल में – अनायास जगत की रचना, पालना और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभाव रूप पाँच प्रबल कर्म करते रहते हैं, उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर ईश्वर अम्बिकापति भगवान् शंकर का मैं मन ही मन चिंतन करता/करती हूँ।
Meditation on the Five-faced Lord Parvatinath | पार्वतीनाथ भगवान् पञ्चानन का ध्यान
शूलाही टङ्कघण्टासि शृणिकुलिशपाशाग्नयभीतीर्दधानं दोर्भिः शीतांशुखण्डप्रतिघटितजटाभारमौलिं त्रिनेत्रम् ।
नानाकल्पाभिरामापघनमभिमतार्थप्रदं सुप्रसन्नं पद्मस्थं पञ्चवक्त्रं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि ॥
जो अपने करकमलों में क्रमशः त्रिशूल, सर्प, टङ्क (परशु), घण्टा, तलवार, अंकुश, वज्र, पाश, अग्नि तथा अभयमुद्रा धारण किये हुए हैं, जिनका प्रत्येक मुखमण्डल द्वितीया के चन्द्रमा से युक्त जटाओं से सुशोभित हो रहा है, जिनके चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि – ये तीन नेत्र हैं, जो अनेक कल्प वृक्षों के समान अपने भक्तों को स्थिर रहने वाले मनोरथों से परिपूर्ण कर देते हैं और जो सदा अत्यन्त प्रसन्न रहते हैं, जो कमल के ऊपर विराजित हैं, जिनके पाँच मुख हैं तथा जिनका वर्ण स्फटिक मणि के समान दिव्य प्रभा से आभासित हो रहा है, उन पार्वतीनाथ भगवान् शंकर को मैं नमस्कार करता/करती हूँ।
Meditation on Lord Mahakal | भगवान् महाकाल का ध्यान
स्रष्टारोऽपि प्रजानां प्रबलभवभयाद् यं नमस्यन्ति देवा यश्चित्ते संप्रविष्टोऽप्यवहितमनसां ध्यानमुक्तात्मनां च ।
लोकानामादिदेवः स जयतु भगवाञ्छ्रीमहाकालनामा बिभ्राणः सोमलेखामहिवलययुतं व्यक्तलिङ्गं कपालम् ॥
प्रजा की सृष्टि करने वाले प्रजापति देव भी प्रबल संसार-भय से मुक्त होने के लिए जिन्हें नमस्कार करते हैं, जो सावधान चित्त वाले ध्यान परायण महात्माओं के हृदयमंदिर में सुखपूर्वक विराजमान होते हैं और चन्द्रमा की कला, सर्पों के कंकण तथा व्यक्त चिह्न वाले कपाल धारण करते हैं, सम्पूर्ण लोकों के आदिदेव उन भगवान् महाकाल की जय हो।
Meditation on Lord Neelkantha | श्री नीलकण्ठ का ध्यान
बालार्कायुततेजसं धृतजटाजूटेन्दुखण्डोज्ज्वलं नागेन्द्रैः कृतभूषणं जपवटीं शूलं कपालं करैः ।
खट्वाङ्गं दधतं त्रिनेत्रविलसत्पञ्चाननं सुन्दरं व्याघ्रत्वक्परिधानमब्जनिलयं श्रीनीलकण्ठं भजे ॥
भगवान् श्री नीलकण्ठ दस हजार बालसूर्यों के समान तेजस्वी हैं, सिर पर जटाजूट, ललाट पर अर्धचन्द्र और मस्तक पर सर्पों का मुकुट धारण किये हैं, चारों हाथों में जपमाला, त्रिशूल, नरकपाल, और खट्वाङ्ग मुद्रा है। तीन नेत्र हैं, पाँच मुख हैं, अति सुन्दर विग्रह है, बाघम्बर पहने हुए हैं और सुन्दर पद्म पर विराजित हैं। इन श्री नीलकंठ देव का भजन करना चाहिए।
Meditation on Lord Pashupati | पशुपति का ध्यान
मध्याह्नार्कसमप्रभं शशिधरं भीमाट्टहासोज्ज्वलं त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्म श्रुस्फुरन्मूर्धजम्।
हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुद्गरमसिं शक्तिं दधानं विभुं दंष्ट्राभीमचतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररूपं स्मरेत् ॥
जिनकी प्रभा मध्याह्नकालीन सूर्य के सामन दिव्य रूप में भासित हो रही है, जिनके मस्तक पर चन्द्रमा विराजित है, जिनका मुखमण्डल प्रचंड अट्टहास से उद्भासित हो रहा है, सर्प ही जिनके आभूषण हैं, जो तीन नेत्र वाले हैं, जिनकी दाढ़ी और सिर की जटाऐं विचित्र रंग के मोरपंख के समान स्फुरित हो रही हैं, जिन्होंने अपने करकमलों में त्रिशूल, मुद्गर, तलवार तथा शक्ति को धारण कर रखा है और जिनके चार मुख तथा दाढ़ें भयावह हैं, ऐसे सर्वसमर्थ, दिव्य रूप एवं अस्त्रों को धारण करने वाले पशुपतिनाथ का ध्यान करना चाहिए।
Meditation on Lord Dakshinamurti | भगवान् दक्षिणामूर्ति का ध्यान
मुद्रां भद्रार्थदात्रीं सपरशुहरिणां बाहुभिर्बाहुमेकं जान्वासक्तं दधानो भुजगवरसमाबद्धकक्षो वटाधः।
आसीनश्चन्द्रखण्डप्रतिघटितजटः क्षीरगौरस्त्रिनेत्रो दद्यादाद्यैः शुकाद्यैर्मुनिभिरभिवृतो भावशुद्धिं भवो वः ॥
जो भगवान् दक्षिणामूर्ति अपने करकमलों में अर्थ प्रदान करने वाली भद्रामुद्रा, मृगीमुद्रा और परशु धारण किये हुए हैं और एक हाथ घुटने पर टेके हुए हैं, कटिप्रदेश में नागराज को लपेटे हुए हैं तथा वटवृक्ष के नीचे अवस्थित हैं, जिनके प्रत्येक सिर के ऊपर जटाओं में द्वितीया का चन्द्रमा जटित है, जो दुग्ध के समान उज्ज्वल एवं धवल वर्ण के हैं, त्रिनेत्री हैं और सनकादि एवं शुकदेव आदि मुनियों से घिरे हुए हैं, वे भगवान् भव (शंकर) आपके ह्रदय में विशुद्ध भावना प्रदान करें।
Meditation on Lord Mahamrityunjaya | महामृत्युञ्जय का ध्यान
हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैराप्लावयन्तं शिरो द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम्।
अङ्कन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं स्वच्छाम्भोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे ॥
त्र्यम्बक देव अष्टभुज हैं। उनके एक हाथ में अक्षमाला और दूसरे में मृगमुद्रा है, दो हाथों से दो कलशों में अमृतरस लेकर उससे अपने मस्तक को आप्लावित कर रहे हैं और दो हाथों से उन्हीं कलशों को थामे हुए हैं। शेष दो हाथ उन्होंने अपने अंक पर रख छोड़े हैं और उनमें दो अमृतपूर्ण घट हैं। वे श्वेत पद्म पर विराजमान हैं, मुकुट पर बालचन्द्र सुशोभित है, मुखमण्डल पर तीन नेत्र शोभायमान हैं। ऐसे देवाधिदेव कैलाशपति श्रीशंकर की मैं शरण ग्रहण करता/करती हूँ।
हस्ताम्भोजयुगस्थकुम्भयुगलादुद्धृत्य तोयं शिरः सिञ्चन्तं करयोर्युगेन दधतं स्वाङ्के सकुम्भौ करौ।
अक्षस्रङ्मृगहस्तमम्बुजगतं मूर्धस्थचन्द्रस्रवत्पीयुषार्द्रतनुं भजे सगिरिजं त्र्यक्षं च मृत्युञ्जयम् ॥
जो अपने दो करकमलों में रखे हुए दो कलशों से जल निकालकर उनसे ऊपर वाले दो हाथों द्वारा अपने मस्तक को सींचते हैं। अन्य दो हाथों में दो घड़े लिए उन्हें अपनी गोद में रखे हुए हैं तथा शेष दो हाथों में रुद्राक्ष एवं मृगमुद्रा धारण करते हैं, कमल के आसान पर बैठे हैं, सिर पर स्थित चन्द्रमा से निरन्तर झरते हुए अमृत से जिनका सारा शरीर भीगा हुआ है तथा जो तीन नेत्र धारण करने वाले हैं, उन भगवान् मृत्युंजय का, जिनके साथ गिरिराजनंदिनी उमा भी विराजमान हैं, मैं भजन (चिन्तन) करता/करती हूँ।