Sanskrit shlokas on Guru with Hindi and English meanings|गुरु पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

Guru Shishya

वर्तमान समय में सच्चे गुरु / सद्गुरु / परम गुरु का मिलना और उनमें पूर्ण आस्था कर पाना अत्यन्त दुर्लभ हो गया है। ऐसे में ईश्वर / भगवान /परमात्मा को ही सद्गुरु मानकर आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ना प्रासंगिक होता जा रहा है। यदि वे उचित समझेंगे तो उनकी इच्छा/कृपा से सही समय पर किन्ही महापुरुष के रूप में सद्गुरु की प्राप्ति भी हो जाएगी। वैसे भी ईश्वर ही सबके गुरु हैं।

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।

अर्थ: वसुदेव के पुत्र; कंस एवं चाणूर का मर्दन करनेवाले, (माता) देवकी को परमानंद देनेवाले और संपूर्ण जगत के गुरु, भगवान श्रीकृष्ण को मेरा नमन है।

In the present times, it has become quite difficult to find a true Guru / Sadhguru / Param Guru and have complete faith in him. In such a scenario, it is becoming relevant to move forward on the spiritual path by considering God/Supreme Soul as the Sadguru. If He deems it appropriate, then by His wish/grace, a Sadguru will be found as a true saint at the right time. Anyway, God is everyone’s Guru.

vasudevasutaṃ devaṃ kaṃsacāṇūramardanam |

devakīparamānandaṃ kṛṣṇaṃ vande jagadgurum ||

My salutations to Lord Shri Krishna, the Guru of the entire world and the son of Vasudeva, who killed Kansa and Chanur, and who is the source of ecstasy to Mother Devaki.

वेद-शास्त्रों में भगवान शिव को आदिगुरु कहा गया है। दक्षिणामूर्ति के स्वरूप में उन्हें सर्व ज्ञान, कलाओं एवं योग के आदिगुरु के रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव ज्ञान, योग एवं भक्ति के सर्वोच्च आचार्य माने जाते हैं।

In the Vedas and scriptures, Lord Shiva has been called “Adiguru” (the First Guru). In the form of Dakshinamurthy, he is worshipped as the Adiguru of all knowledge, arts and yoga. Lord Shiva is considered the supreme teacher of Knowledge, Yoga and Devotion.

दूसरी ओर, श्रीमद्भागवत् महापुराण में भगवान ने स्वयं कहा है कि ‘सद्गुरु’ या ‘परम गुरु’ ईश्वर तुल्य होते हैं।

आचार्यं मां विजानीयान्नावमन्येत कर्हिचित् ।                        (विजानीयान्नावमन्येत = विजानीयात् न-अवमन्येत)
न मर्त्यबुद्ध्यासूयेत सर्वदेवमयो गुरुः ॥              (11/17/27)

अर्थ: आचार्य को मेरा ही स्वरुप समझे, कभी उनका तिरस्कार न करे। उन्हें साधारण मनुष्य समझ कर दोषदृष्टि न करे; क्योंकि समस्त दैवी शक्तियाँ गुरु में ओतप्रोत होती हैं।

On the other hand, in Srimad Bhagwat Mahapuran, God himself has said that ‘Sadhguru’ or ‘Param Guru’ is equal to God.

ācāryaṃ māṃ vijānīyānnāvamanyeta karhicit |

na martyabuddhyāsūyeta sarvadevamayo guruḥ || 

Consider Acharya as my form alone and never disrespect him. Don’t look at him as an ordinary person because all the divine powers are present in the Guru.

श्रीमद्भागवत् पुराण में बताया गया है – आत्मा ही गुरु है।

आत्मनो गुरुरात्मैव पुरुषस्य विशेषतः ।

यत् प्रत्यक्षानुमानाभ्यां श्रेयोसावनुविन्दते ।।         (11/7/20)

अर्थ: समस्त प्राणियों की, विशेषकर मनुष्य की आत्मा अपने हित-अहित का उपदेशक गुरु है क्योंकि मनुष्य अपने प्रत्यक्ष अनुभव और अनुमान के द्वारा अपने भले-बुरे का निर्णय करने में पूर्णतः समर्थ है। 

It is said in Shrimad Bhagwat Purana – “the Soul is the Guru”.

ātmano gururātmaiva puruasya viśeata |

yat pratyakṣānumānābhyāṃ śreyosāvanuvindate ||    

The soul of all living beings, especially a human, is the Guru of his welfare and disadvantage because a human is fully capable of deciding what is beneficial or harmful through his/her direct experience and estimation.

Who is called a Guru? | गुरु किसे कहते हैं?

प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥

अर्थ: प्रेरणा देने वाले, सूचना देने वाले, सत्य बताने वाले, मार्गदर्शन करने वाले, शिक्षा प्रदान करने वाले और ज्ञान का बोध कराने वाले – ये सब गुरु समान हैं। 

preraka sūcakaśvaiva vācako darśakastathā |

śikako bodhakaścaiva aete gurava smtāḥ ||

One who inspires, gives information, tells the truth, guides, imparts education and imparts knowledge – all these are equal to Guru.

धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः।

तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥

अर्थ: धर्म को जानने वाले, धर्म के अनुसार आचरण करने वाले, धर्मपरायण और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करने वाले गुरु कहे जाते है।

dharmajño dharmakartā ca sadā dharmaparāyaa|

tattvebhya sarvaśāstrārthādeśako gururucyate ||

One who knows the Dharma (righteousness), behaves according to the Dharma, is righteous and instructs the essence from all the scriptures is called a Guru.

ऋषि विश्वामित्र जी ने कहा है –

दर्शनात् स्पर्शनात् शब्दात् शिष्यदेहके ।

जनयेद् यः समावेशं शाम्भवं स हि देशकः।।

अर्थ: दर्शन से, स्पर्श से, शब्द से और ज्ञान उपदेश से जो शिष्य के शरीर में शम्भु-संबंधी (ईश्वर-सम्बन्धी) ज्ञान का जनन कर दे, वही उपदेशक अर्थात् गुरु है।

Sage Vishwamitra ji has said –

darśanāt sparśāt śabdāt śiyadehake |

janayed ya samāveśa śāmbhava sa hi deśaka||

The one who generates Shambhu-related (God-related) knowledge in the disciple’s body through sight, touch, words and knowledge, is a Guru.

गुकारश्चान्धकारस्तु रुकारस्तन्निरोधकृत् 

अन्धकारविनाशित्वात् गुरुरित्यभिधीयते ।।

‘गु’ कार अंधकार है और ‘रु’ कार उसको दूर करने वाला है। अज्ञानरूपी अन्धकार को ज्ञान रुपी प्रकाश द्वारा नष्ट करने वाला ही गुरु कहलाता है।

gukāraścāndhakārastu rukārastannirodhakṛt |

andhakāravināśitvāt gururityabhidhīyate ||

The syllable ‘Gu’ denotes darkness and ‘Ru’ denotes its eradicator. GuRu is the one who eradicates the darkness of ignorance by the light of knowledge.

Guru stotram (Guru prayer) | गुरु स्तोत्रम् (गुरु वंदना)

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुस्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः 1

(नोट: कहीं-कहीं गुरुस्साक्षात् के स्थान पर गुरुः साक्षात् या गुरुरेव और पर ब्रह्म के बदले परं ब्रह्म भी देखने को मिलता है।)

गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु शंकर हैं; गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं। उन सद्गुरु को प्रणाम।

Guru is Lord Brahma, Guru is Lord Vishnu and Guru is Lord Maheshwara (Shiva). Guru is indeed the Supreme Being. I offer my salutation to such a Guru.

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्
तत्पदं
दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 2 ॥

जिसने अखंड, अनंत एवं चर-अचर में विद्यमान प्रभु के चरणों का मुझे साक्षात्कार करवाया, उन गुरु को नमन है।

My Salutations to that Guru who revealed to me the holy feet of the One, who is whole and infinite, pervading the entire universe – movable or immovable.

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया।

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः 3

जिसने ज्ञानांजन रुपी शलाका द्वारा अज्ञान रुपी अंधकार से अंधी हुई मेरी आँखें खोलीं, उन गुरु को नमस्कार।

My Salutations to that reverent Guru, who opened my inner eyes and removed the darkness of ignorance from my blind eyes by applying the balm of divine knowledge.

स्थावरं जंगमं व्याप्तं यत्किञ्चित्सचराचरम् ।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 4 ॥

जिसने जड़-चेतन एवं चर-अचर में विद्यमान प्रभु के चरणों का मुझे साक्षात्कार करवाया, उन गुरु को नमन है।

My Salutations to the noble Guru who revealed to me the holy feet of the One, who pervades all that is – animate and inanimate, movable and immovable.

चिन्मयं व्यापितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 5 ॥

जिसने तीनों लोकों में, चर-अचर में विद्यमान परम चेतन प्रभु के चरणों का मुझे साक्षात्कार करवाया, उन गुरु को नमन है।

Salutations to the reverent Guru who made it possible to realise the holy feet of the Supreme Conscious One, who pervades everything movable and immovable, in all three worlds.

सर्वश्रुतिशिरोरत्नः समुद्भासितमूर्तये

वेदान्ताम्बुजसूर्यो यः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 6 ॥

सभी वेद रुपी मुकुट-मणियों को धारण कर प्रकाश फैलाने वाले एवं वेदान्त कमल खिलाने वाले सूर्य स्वरुप श्री गुरु को नमन है ।

Salutation to the noble Guru, who embodies all the Shrutis (Vedas) radiating like the crown jewels and who is the sun blossoming the lotus of Vedanta.

चैतन्यः शाश्वतः शान्तो व्योमातीतो निरञ्जनः

बिन्दुनादकलातीतस्तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 7 ॥

जो परम चेतना, शाश्वत, शान्त, आकाश से परे, माया से निर्लिप्त एवं मन-वाणी-कर्म से परे है, उन श्री गुरु को नमन है। 

Salutations to the Guru who is the supreme Consciousness, eternal and serene; who is beyond space, is devoid of any blemish (spotless) and is beyond the Bindu, Nada and Kala (three states of awareness).

ज्ञानशक्ति समारूढस्तत्त्वमाला विभूषितः

भुक्तिमुक्तिप्रदाता यस्तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 8 ॥

जो ज्ञान और शक्ति से संपन्न, सारभूत सिद्धांतों से विभूषित और सांसारिक सुख एवं मुक्ति के प्रदाता हैं, उन श्रीगुरु को नमन है। 

Salutation to that noble Guru, who is full of knowledge and power, is adorned with the garland of various principles and is the bestower of worldly prosperity and liberation.

अनेक-जन्मसंप्राप्त कर्मेन्धन-विदाहिने ।

आत्मज्ञानाग्निदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 9 ॥

जो अनेक जन्मों के संचित कर्म के ईंधन को आत्म-ज्ञान की अग्नि द्वारा समाप्त कर देते हैं, उन श्रीगुरु को मेरा नमन।

Salutations to the Guru who, by infusing the fire of Self-knowledge, completely burns away the fuel of karma collected over many lives. 

शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापणं सारसम्पदः ।

यस्य पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 10 ॥

जिनका चरणामृत भवसागर सुखा देता है और सच्ची संपत्ति का परिचय करा देता है, उन श्रीगुरु को मेरा नमन।

Salutations to the Guru whose foot-water dries up the ocean of rebirths and reveals the essential wealth within.

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।

तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 11 ॥

गुरु से बढ़कर कोई सत्य नहीं है, गुरु-स्मरण एवं गुरु-सेवा से बढ़कर कोई तप नहीं है और सत्य-अनुभूति से आगे कुछ नहीं है; ऐसे श्रीगुरु को मेरा नमन।

There is no Truth higher than the Guru, no austerity higher than remembering and serving the Guru, and nothing is superior to the realization of Truth – salutations to that Guru.

मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः ।

मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 12 ॥

जो मेरे स्वामी और संसार के स्वामी हैं, मेरे गुरु और संसार के गुरु हैं तथा मेरी आत्मा और सभी की आत्मा हैं, उन श्रीगुरु को मेरा नमन है।

Salutations to the revered Guru who is my Lord and the Lord of the universe, my Guru and the Guru of the universe, who is the Self in me and the Self in all beings.

गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् ।

गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥13 ॥ 

गुरु आदि (स्रोत) एवं अनादि (शाश्वत) हैं। गुरु परम देवता हैं। गुरु से बड़ा कोई नहीं; उन श्रीगुरु को नमन है।

The Guru is the eternal source. The Guru is the Supreme deity, no one is greater than the Guru. Salutations to the Guru.

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं ।

द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ॥ 14 ॥ 

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं ।

भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥ 15 ॥

उन सच्चे गुरु को नमस्कार है जो ब्रह्म के आनन्द स्वरूप और परम सुख के प्रदाता हैं, जो निरपेक्ष, साक्षात् ज्ञानस्वरूप और द्वंद्व से परे हैं, जो आकाश के समान हैं और जिन्हें ‘तत् त्वं असि’ जैसे वेद वाक्यों द्वारा इंगित किया जाता है, जो अद्वितीय, शाश्वत, शुद्ध और स्थिर हैं, सबकी बुद्धि के साक्षी (अन्तर्यामी) हैं, जो सभी अवस्थाओं से परे हैं और प्रकृति के तीनों गुणों (सत्व, रजस, तमस) से रहित हैं।

Salutations to the Sadguru, who is the bliss of Brahman and the bestower of supreme joy; who is the Absolute and the personification of supreme Knowledge; who transcends the pairs of opposites, resembles the sky and is revealed by such Vedic aphorisms (maha vakyas) as Thou Art That (tat tvam asi); who is without the second, eternal, pure, immovable, and the witness of the intelligence of all; who is beyond all states and is free from the three guṇas.

एक एव परो बन्धुर्विषमे समुपस्थिते 

गुरुः सकलधर्मात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 16 ॥

जब विकट परिस्थिति उपस्थित होती है तब गुरु ही एकमात्र परम बांधव (संबंधी) हैं, वे सब धर्मों के आत्मस्वरूप हैं। ऐसे श्रीगुरुदेव को नमस्कार हो।

When a critical situation arises, the Guru is the only relative, he is the essence of all the righteousness – salutations to the revered Guru.

भवारण्यप्रविष्टस्य दिड्मोहभ्रान्तचेतसः 

येन सन्दर्शितः पन्थाः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 17 ॥

संसार रूपी वन में प्रवेश करने के बाद दिशा-भ्रमित चित्त वाले को जिसने मार्ग दिखाया, उन श्री गुरुदेव को नमस्कार हो।

Salutations to the revered Guru who showed the path to the disoriented mind after entering the forest of the world. 

तापत्रयाग्नितप्तानां अशान्तप्राणीनां भुवि 

गुरुरेव परा गंगा तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥ 18 ॥

इस पृथ्वी पर त्रिविध ताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) रुपी अग्नि से जलने के कारण अशांत हुए प्राणियों के लिए गुरुदेव ही एकमात्र उत्तम गंगाजी हैं। ऐसे श्री गुरुदेव को नमस्कार हो।

On this earth, the Guru is the only holy Ganga for the beings who are disturbed due to fire in the form of triple heat (bodily, karmic, worldly sufferings) – Salutations to the revered Guru.

More Shlokas on Guru | गुरु पर कुछ और श्लोक

नित्यं शुद्धं निराभासं निराकारं निरञ्जनम् ।

नित्यबोधं चिदानन्दं गुरुं ब्रह्म नमाम्यहम् ॥

उन ब्रह्म गुरुदेव को नमन है जो नित्य, शुद्ध, निराभास, निराकार एवं माया से निर्लिप्त हैं, नित्यबोधमय एवं चिदानंदमय हैं।

I prostrate before the Brahman Guru who is everlasting, ever-pure, free from all illusory appearances, formless, spotless, ever-present awareness, and blissful consciousness.

यस्यान्तर्नादिमध्यं न हि करचरणं नामगोत्रं न सूत्रं

नो जातिर्नैव वर्णं न भवति पुरुषो नो नपुंसं न च स्त्री ।

नाकारं नो विकारं न हि जनिमरणं नास्ति पुण्यं न पापं

नोऽतत्त्वं तत्त्वमेकं सहजसमरसं सद्गुरुं तं नमामि ॥

जिनका आदि-मध्य-अंत नहीं है; जिनके हाथ-पैर नहीं हैं; जो बिना नाम, गोत्र या सम्बन्ध के हैं; जिनकी न जाति है, न ही रंग; जो न तो पुरुष हैं, न स्त्री और न ही नपुंसक; जो बिना रूप और परिवर्तन के हैं; जिनके जन्म-मरण और पाप-पुण्य नहीं हैं; जो असत्य नहीं, वरन परम सत्य हैं; जो सहज समभाव वाले है; उन सद्गुरु को मैं नमन करता हूँ।

I prostrate before the Sadguru who is without the beginning, middle or end; who has no hand, no foot, and is devoid of name, lineage or any other connection; who has no caste or colour and is neither masculine nor neutral nor feminine. He has no form and undergoes neither change nor birth nor death. He has neither virtue nor sin. Devoid of all falsehood, He is the only Reality. He is indeed the joy of natural equanimity.

ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्

मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा

गुरु का स्वरुप ही ध्यान का आधार है, गुरु के चरण ही पूजा का आधार हैं, गुरु-वाक्य ही मूल मंत्र है और गुरु-कृपा ही मुक्ति का आधार है।

Guru’s form is the basis of meditation, Guru’s feet are the basis of worship, Guru’s words are the basic mantra and Guru’s grace is the basis of salvation.

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥

(हे गुरुदेव!) तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता हो, तुम्हीं सम्बन्धी हो, तुम्हीं मित्र हो। विद्या एवं संपत्ति तुम्हीं हो; हे देवों के देव, तुम्हीं मेरे सब कुछ हो।   

(O Guru!) You are the mother. You are the father. You are the relative as well as the friend. Knowledge and wealth alike are you. O Lord of Lords, you are everything to me.

Qualities of a True Guru | सद्गुरु / परम गुरु के लक्षण

यस्य दर्शनमात्रेण मनसः स्यात् प्रसन्नता |

स्वयं भूयात् धृतिश्शान्तिः स भवेत् परमो गुरुः ||

जिनके दर्शनमात्र से मन प्रसन्न होता है, अपने आप धैर्य और शांति आ जाती है, वे परमगुरु हैं।

चातुर्यवान्विवेकी च अध्यात्मज्ञानवान् शुचिः |

मानसं निर्मलं यस्य गुरुत्वं तस्य शोभते ||

जो बुद्धिमान हों, विवेकी हों, अध्यात्म के ज्ञाता हों, पवित्र हों तथा निर्मल मानसवाले हों, उनमें गुरुत्व शोभा पाता है। 

गुरवो निर्मलाः शान्ताः साधवो मितभाषिणः |

कामक्रोधविनिर्मुक्ताः सदाचारा जितेन्द्रियाः ||

गुरु निर्मल, शांत, साधु स्वभाव के, मितभाषी, काम-क्रोध से अत्यंत रहित, सदाचारी और जितेन्द्रिय होते हैं।

सर्वसन्देहसन्दोहनिर्मूलनविचक्षणः |

जन्ममृत्युभयघ्नो यः स गुरुः परमो मतः ||

सर्व प्रकार के सन्देहों का जड़ से नाश करने में जो चतुर हैं, जन्म, मृत्यु तथा भय का जो विनाश करते हैं, वे परम गुरु कहलाते हैं, सदगुरु कहलाते हैं।

मोहादिरहितः शान्तो नित्यतृप्तो निराश्रयः |

तृणीकृतब्रह्मविष्णुवैभवः परमो गुरुः 

मोहादि दोषों से रहित, शांत, नित्य तृप्त, किसीके आश्रयरहित अर्थात् स्वाश्रयी, ब्रह्मा और विष्णु के वैभव को भी तृणवत् समझनेवाले गुरु ही परम गुरु हैं।

सर्वकालविदेशेषु स्वतंत्रो निश्चलस्सुखी |

अखण्डैकरसास्वादतृप्तो हि परमो गुरुः ||

सर्व काल और देश में स्वतंत्र, निश्चल, सुखी, अखण्ड, एक रस के आनन्द से तृप्त ही सचमुच परम गुरु हैं। जिसे सर्दी, गर्मी, सुख-दुःख, भोजन-वस्त्र आदि किसी भी चीज की चिंता नहीं रहती, जो सदा निश्चल रहकर किसी भी प्रकार के बंधन को स्वीकार नहीं करता और जो अखंड ब्रह्म के आनंद से तृप्त होने के कारण सदैव प्रसन्न रहता है, वही ‘परम गुरु’ होता है।

बहुजन्मकृतात् पुण्याल्लभ्यतेऽसौ महागुरुः |

लब्ध्वाऽमुं न पुनर्याति शिष्यः संसारबन्धनम् ||

अनेक जन्मों के किये हुए पुण्यों से ऐसे महागुरु प्राप्त होते हैं। उनको प्राप्त कर शिष्य पुनः संसारबन्धन में नहीं बँधता, अर्थात् मुक्त हो जाता है।

गुरवो बहवः सन्ति शिष्यवित्तापहारकाः |

तमेकं दुर्लभं मन्ये शिष्यह्यत्तापहारकम् ||

शिष्य के धन को अपहरण करनेवाले गुरु तो बहुत हैं लेकिन शिष्य के हृदय का संताप हरने वाला एक गुरु भी दुर्लभ है, ऐसा मैं (भगवान शिव) मानता हूँ।

Qualities of a fake guru | गुरु के विपरीत लक्षण

ज्ञानहीनो गुरुत्याज्यो मिथ्यावादी विडंबकः |

स्वविश्रान्ति न जानाति परशान्तिं करोति किम् ||

ज्ञानरहित, मिथ्या बोलनेवाले और दिखावट करनेवाले गुरु का त्याग कर देना चाहिए, क्योंकि जो अपनी ही शांति पाना नहीं जानता वह दूसरों को क्या शांति दे सकेगा।

 वन्दनीयास्ते कष्टं दर्शनाद् भ्रान्तिकारकः |

वर्जयेतान् गुरुन् दूरे धीरानेव समाश्रयेत् ||

जो गुरु अपने दर्शन से (दिखावे से) शिष्य को भ्रान्ति में ड़ालता है ऐसे गुरु को प्रणाम नहीं करना चाहिए। इतना ही नहीं दूर से ही उसका त्याग करना चाहिए। ऐसी स्थिति में धैर्यवान् गुरु का ही आश्रय लेना चाहिए।

पाखण्डिनः पापरता नास्तिका भेदबुद्धयः |

स्त्रीलम्पटा दुराचाराः कृतघ्ना बकवृतयः ||

कर्मभ्रष्टाः क्षमानष्टाः निन्द्यतर्कैश्च वादिनः |

कामिनः क्रोधिनश्चैव हिंस्राश्चंड़ाः शठस्तथा ||

ज्ञानलुप्ता न कर्तव्या महापापास्तथा प्रिये |

एभ्यो भिन्नो गुरुः सेव्य एकभक्त्या विचार्य च ||

भेदबुद्धि पैदा करनेवाले, स्त्रीलम्पट, दुराचारी, नमकहराम, बगुले की तरह ठगनेवाले, क्षमा रहित, निन्दनीय तर्कों से वितंडावाद करनेवाले, कामी, क्रोधी, हिंसक, उग्र, मूर्ख तथा अज्ञानी और महापापी पुरुष को गुरु नहीं करना चाहिए। ऐसा विचार करके इन लक्षणों से भिन्न लक्षणोंवाले गुरु की एकनिष्ठ भक्ति से सेवा करनी चाहिए।

Disciple’s worthiness for initiation by a Guru | गुरु दीक्षा की पात्रता

दुःसंगं च परित्यज्य पापकर्म परित्यजेत् |

चित्तचिह्नमिदं यस्य तस्य दीक्षा विधीयते ||

दुर्जनों का संग त्यागकर पापकर्म छोड़ देने चाहिए। जिसके चित्त में ऐसा चिह्न देखा जाता है, उसके लिए गुरुदीक्षा का विधान है।

चित्तत्यागनियुक्तश्च क्रोधगर्वविवर्जितः |

द्वैतभावपरित्यागी तस्य दीक्षा विधीयते ||

चित्त का त्याग करने में जो प्रयत्नशील है, क्रोध और गर्व से रहित है, द्वैतभाव का जिसने त्याग किया है, उसके लिए गुरुदीक्षा का विधान है।

एतल्लक्षणसंयुक्तं सर्वभूतहिते रतम् |

निर्मलं जीवितं यस्य तस्य दीक्षा विधीयते ||

जिसका जीवन इन लक्षणों से युक्त हो, निर्मल हो, जो सब जीवों के कल्याण में रत हो, उसके लिए गुरुदीक्षा का विधान है।

Guru Ashtakam (by Adi Shankaracharya) | गुरु अष्टकम् (श्री शङ्कराचार्य कृत)

शरीरं सुरूपं तथा वा कलत्रं, यशश्र्चारु चित्रं धनं मेरुतुल्यम्। गुरोरङ्घ्रिपद्मे मनश्र्चेन लग्नं, ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्॥1॥ … More …

Author

  • Deep

    Deep is a Sanskrit learner and teacher. He has done his Engineering graduation from IIT Kanpur. He worked in the Information Technology sector serving Investment banks for ten years. He served as a Counsellor, Life Coach and Teacher, post his corporate career. Deep pursued the study of scriptures in search of the hidden treasures of valuable knowledge shared by the Rishis. In the process, he realized the need to learn Sanskrit. He, therefore, learned Sanskrit through self-study and Certification courses. Presently he spends a good chunk of his time sharing useful Sanskrit resources with all the Sanskrit lovers. You can reach him at deep@iitkalumni.org.

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One thought on “Sanskrit shlokas on Guru with Hindi and English meanings|गुरु पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

  1. ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम् ।
    मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ॥

    ॐ देवरहाय दिगम्बराय

    मंचासीनाय नमो नमः।

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