Shri Radha Shlokas | श्री राधा श्लोक

स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमहादेवजी (शिवजी) से कहा है –

इमां तु मत्प्रियां विद्धि राधिकां परदेवताम्।

अस्याश्च परितः पश्चात् सख्यः शतसहस्रशः॥

नित्याः सर्वा इमा रूद्र यथाहं नित्यविग्रहः।

सखायः पितरो गोपा गावो वृन्दावनं मम॥

सर्वमेतन्नित्यमेव चिदानन्दरसात्मकम्।

इदमानन्दकन्दाख्यम् विद्धि वृन्दावनं मम॥

‘ये राधिकाजी मेरी प्रिया हैं – इन्हें परमदेवता समझिये। इनके चारों ओर और पीछे लाखों सखियाँ हैं; जैसे मैं नित्य-विग्रह हूँ, इसी तरह ये सब भी नित्य हैं। मेरे पिता, माता, सखा, गोप, गौ और यह मेरा वृन्दावन सभी नित्य और सच्चिदानंद रसमय है। मेरे इस वृन्दावन का नाम आनन्दकन्द जानो।’

यथा ब्रह्मस्वरूपश्च श्रीकृष्णः प्रकृतेः पर:।
तथा ब्रह्मस्वरूपा च निर्लिप्ता प्रकृतेः परा।
प्राणाधिष्ठातृदेवी या राधारूपा च सा मुने। – नारद पांचरात्र

जैसे श्रीकृष्ण ब्रह्मस्वरूप हैं तथा प्रकृति से सर्वथा परे हैं, वैसे श्री राधा ब्रह्मस्वरूपा हैं, वह माया से निर्लेप तथा प्रकृति से परे हैं। श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी ही श्री राधा हैं।

कृष्णप्राणाधिदेवी सा तदधीनो विभुर्यतः ।
रासेश्वरी तस्य नित्यं तया हीनो न तिष्ठति ॥ – -देवी भागवत

श्री राधा श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं, श्री कृष्ण उनके अधीन हैं। वह रासेश्वरी सदा श्री कृष्ण के समीप विराजमान रहती हैं। वे न हों तो श्री कृष्ण टिके ही नहीं।

राधां कृष्णस्वरूपां वै कृष्णं राधास्वरूपिणम् ।
कलात्मानं निकुञ्जस्थं गुरुरूपं सदा भजे ॥

श्रीराधा कृष्ण स्वरूप हैं और श्रीकृष्ण राधा स्वरूप हैं। दोनों अनंत कलाओं के स्वरूप हैं। मैं निकुंजस्थ श्री राधाकृष्ण का गुरु रूप में सदा चिंतन करता / करती हूँ।

Radha Kripa Katasha Stotra | राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र राधा कृपा की एक बहुत शक्तिशाली प्रार्थना है। यह स्तोत्र राधा रानी की कृपादृष्टि पाने के लिए एक विनम्र प्रार्थना है। जो इस प्रार्थना को नियमित रूप से करते हैं, उन्हें श्री श्री राधा-कृष्ण के चरण कमलों की प्राप्ति निश्चित है। श्लोकों में राधा जी की स्तुति में, उनके श्रृंगार,रूप और करूणा का वर्णन है। इसमें भक्त राधा रानी से बार-बार पूछता है कि वे उस पर अपनी कृपा-कटाक्ष (कृपादृष्टि) कब डालेंगी?

मुनीन्द्र-वृन्द-वन्दिते त्रिलोक-शोक-हारिणि
प्रसन्न-वक्त्र-पङ्कजे निकुञ्ज-भू-विलासिनि
व्रजेन्द्र-भानु-नन्दिनि व्रजेन्द्र-सूनु-संगते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥1॥

समस्त मुनिगण आपके चरणों की वंदना करते हैं, आप तीनों लोकों का शोक दूर करने वाली हैं, आप प्रसन्नचित्त, प्रफुल्लित मुख कमल वाली हैं, आप धरा पर निकुंज में विलास करने वाली हैं। आप राजा वृषभानु की राजकुमारी हैं, आप ब्रजराज नन्द किशोर श्री कृष्ण की चिरसंगिनी है। हे जगज्जननी श्रीराधे! आप कब अपनी कृपा दृष्टि से मुझे कृतार्थ करेंगी?

अशोक-वृक्ष-वल्लरी वितान-मण्डप-स्थिते
प्रवालबाल-पल्लव प्रभारुणांघ्रि-कोमले ।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥2॥

आप अशोक वृक्ष की लताओं से बने हुए मंदिर में विराजमान हैं, आप सूर्य की प्रचंडअग्नि की लाल ज्वालाओं के समान, कोमल चरणों वाली हैं। आप भक्तों को अभीष्ट वरदान, अभय दान देने के लिए सदैव उत्सुक रहने वाली हैं।आप के हाथ सुन्दर कमल के समान हैं। आप अपार ऐश्वर्य के भंडार की स्वामिनी हैं। हे सर्वेश्वरी! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

अनङ्ग-रङ्ग मङ्गल-प्रसङ्ग-भङ्गुर-भ्रुवां
सविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्त-बाणपातनैः ।
निरन्तरं वशीकृतप्रतीतनन्दनन्दने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥3॥

रास लीला के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में आप अपनी बाँकी भृकुटी से आश्चर्य उत्पन्न करते हुए सहज चितवन (दृष्टि) रुपी बाणों की वर्षा करती रहती हैं।आप श्री नन्दकिशोर को निरंतर अपने वश में किये रहती हैं। हे वृन्दावनेश्वरी! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

तडित्-सुवर्ण-चम्पक-प्रदीप्त-गौर-विग्रहे
मुख-प्रभा-परास्त-कोटि-शारदेन्दुमण्डले ।
विचित्र-चित्र सञ्चरच्चकोर-शाव-लोचने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥4॥

आप बिजली तथा चम्पा के पुष्प के समान सुनहरी आभा वाली हैं, आपका गौरवर्ण शरीर दीप्ति-युक्त है, आप अपने मुखारविंद की चाँदनी से शरदपूर्णिमा के करोड़ों चन्द्रमा को लजाने वाली हैं। आपके नेत्र पल-पल में विचित्र चित्रों की छटा दिखाने वाले चंचल चकोर शिशु के समान हैं। हे ब्रजेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

मदोन्मदाति-यौवने प्रमोद-मान-मण्डिते
प्रियानुराग-रञ्जिते कला-विलास-पण्डिते ।
अनन्यधन्य-कुञ्जराज्य-कामकेलि-कोविदे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥5॥

आप अपने चिर-यौवन के आनन्द के मग्न रहने वाली हैं, आनंद से पूरित मन ही आपका सर्वोत्तम आभूषण है, आप अपने प्रियतम के अनुराग में रंगी हुई विलासपूर्ण कला में कुशल हैं।आप अपने अनन्य भक्त गोपिकाओं से धन्य हुए निकुंज-राज्य की प्रेम क्रीड़ा में भी प्रवीण हैं। हे निकुँजेश्वरी! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

अशेष-हावभाव-धीरहीरहार-भूषिते
प्रभूतशातकुम्भ-कुम्भकुम्भि-कुम्भसुस्तनि ।
प्रशस्तमन्द-हास्यचूर्ण पूर्णसौख्य-सागरे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥6॥

आप संपूर्ण हाव-भाव रूपी श्रृंगारों से परिपूर्ण हैं, आप धीरज रूपी हीरों के हारों से विभूषित हैं, आप शुद्ध स्वर्ण के कलशों के समान अंगो वाली हैं, आपके पयोधर स्वर्ण कलशों के समान मनोहर हैं। आपकी मंद-मंद मधुर मुस्कान संपूर्ण सुख के सागर के समान है। हे कृष्णवल्लभा! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी? 

मृणाल-वाल-वल्लरी तरङ्ग-रङ्ग-दोर्लते
लताग्र-लास्य-लोल-नील-लोचनावलोकने ।
ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ-मुग्ध-मोहिनाश्रिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥7॥

जल की लहरों से कम्पित हुए नूतन कमल-नाल के समान आपकी सुकोमल भुजाएँ हैं, आपके नीले चंचल नेत्र पवन के झोंकों से नाचते हुए लता के अग्र-भाग के समान अवलोकन करने वाले हैं। सभी के मन को ललचाने वाले, लुभाने वाले मोहन भी आप पर मुग्ध होकर आपके मिलन के लिये आतुर रहते हैं ऎसे मनमोहन को आप आश्रय देने वाली हैं। हे कृष्णप्रिया! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

सुवर्णमलिकाञ्चित-त्रिरेख-कम्बु-कण्ठगे
त्रिसूत्र-मङ्गली-गुण-त्रिरत्न-दीप्ति-दीधिते ।
सलोल-नीलकुन्तल-प्रसून-गुच्छ-गुम्फिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥8॥

आप स्वर्ण की मालाओं से विभूषित हैं, आप तीन रेखाओं युक्त शंख के समान सुन्दर कण्ठ वाली हैं, आपने अपने कण्ठ में प्रकृति के तीनों गुणों का मंगलसूत्र धारण किया हुआ है, इन तीनों रत्नों से युक्त मंगलसूत्र समस्त संसार को प्रकाशमान कर रहा है।आपके काले घुंघराले केश दिव्य पुष्पों के गुच्छों से अलंकृत हैं। हे वृषभानु नंदिनी! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

नितम्ब-बिम्ब-लम्बमान-पुष्पमेखलागुणे
प्रशस्तरत्न-किङ्किणी-कलाप-मध्य मञ्जुले ।
करीन्द्र-शुण्डदण्डिका-वरोहसौभगोरुके
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष-भाजनम् ॥9॥

आप अपने घुमावदार कूल्हों पर फूलों से सजी कमरबंद पहनती हैं, आप झिलमिलाती हुई घंटियों वाली कमरबंद के साथ मोहक लगती हैं, आपकी सुंदर जांघें राजसी हाथी की सूंड को भी लज्जित करती हैं। हे देवी! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

अनेक–मन्त्रनाद–मञ्जु नूपुरारव–स्खलत्
समाज–राजहंस–वंश–निक्वणाति–गौरवे ।
विलोलहेम–वल्लरी–विडम्बिचारु–चङ्क्रमे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥10॥

आपके चरणों के नूपुर अनेक वेद मंत्रों के समान सुमधुर ध्वनि गुंजायमान करने वाले हैं, जैसे मनोहर राजहसों की ध्वनि गूँजायमान हो रही है। आपके अंगों की छवि चलते हुए ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे स्वर्णलता लहरा रही है। हे जगदीश्वरी! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

अनन्त–कोटि–विष्णुलोक–नम्र–पद्मजार्चिते
हिमाद्रिजा–पुलोमजा–विरिञ्चजा-वरप्रदे ।
अपार–सिद्धि–ऋद्धि–दिग्ध–सत्पदाङ्गुली-नखे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥11॥

अनंत कोटि बैकुंठो की स्वामिनी श्रीलक्ष्मी जी आपकी पूजा करती हैं, श्री पार्वती जी, इन्द्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी चरण वन्दना कर वरदान पाया है। आपके चरण-कमलों की एक उंगली के नख का ध्यान करने मात्र से अपार सिद्धि की प्राप्ति होती है। हे करूणामयी! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करेंगी?

मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि
त्रिवेद–भारतीश्वरि प्रमाण–शासनेश्वरि ।
रमेश्वरि क्षमेश्वरि प्रमोद–काननेश्वरि
व्रजेश्वरि व्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते ॥12॥

आप सभी प्रकार के यज्ञों की स्वामिनी हैं, आप संपूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी हैं, आप स्वधा देवी की स्वामिनी हैं, आप सब देवताओं की स्वामिनी हैं। आप तीनों वेदों की स्वामिनी है, आप संपूर्ण जगत पर शासन करने वाली हैं।आप रमा देवी की स्वामिनी हैं, आप क्षमा करने वाली स्वामिनी हैं, आप आनंद रुपी वन की स्वामिनी हैं। हे ब्रजेश्वरी! हे ब्रज की अधीष्ठात्री देवी श्रीराधिके! आपको मेरा बारंबार नमन है।

इती ममद्भुतं-स्तवं निशम्य भानुनन्दिनी
करोतु सन्ततं जनं कृपाकटाक्ष-भाजनम् ।
भवेत्तदैव सञ्चित त्रिरूप-कर्म नाशनं
लभेत्तदा व्रजेन्द्र-सूनु-मण्डल-प्रवेशनम् ॥13॥

हे वृषभानु नंदिनी! मेरी इस निर्मल स्तुति को सुनकर सदैव के लिए मुझ दास को अपनी दया दृष्टि से कृतार्थ करने की कृपा करो। केवल आपकी दया से ही मेरे प्रारब्ध कर्मों, संचित कर्मों और क्रियामाण कर्मों का नाश हो सकेगा। आपकी कृपा से ही भगवान श्रीकृष्ण के नित्य दिव्यधाम की लीलाओं में सदा के लिए प्रवेश हो जाएगा।

राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।
एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥14॥

यदि कोई साधक पूर्णिमा, शुक्ल पक्ष की अष्टमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी के रूप में जाने जाने वाले चंद्र दिवसों पर स्थिर मन से इस स्तवन का पाठ करे तो…।

यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः ।
राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥15॥

साधक की सर्व मनोकामनायें पूर्ण होती हैं और श्री राधा की कृपा दृष्टि से उसे  भगवान की शुद्ध प्रेममयी भक्ति प्राप्त होती है।

ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।
राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥16॥

जो साधक श्री राधा-कुंड के जल में (अपनी जाँघों, नाभि, छाती या गर्दन तक) खड़े होकर इस स्तोत्र का 100 बार पाठ करता है …।

तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत् ।
ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥17॥

उसे जीवन के सब पुरुषार्थों – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और प्रेम – में पूर्णता एवं सिद्धि प्राप्त हो। उसकी वाणी सामर्थ्यवान हो (उसके मुख से कही बातें व्यर्थ न जाए)। उसे श्री राधिका को साक्षात् अपने सम्मुख देखने का ऐश्वर्य प्राप्त हो और…।

तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।
येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥18॥

श्री राधिका उस पर प्रसन्न होकर उसे महान वरदान प्रदान करें कि वह स्वयं अपने नेत्रों से उनके प्रिय श्यामसुंदर को देखने का सौभाग्य प्राप्त करे।

नित्यलीला–प्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः ।
अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥19॥

वृंदावन के अधिपति (श्रीकृष्ण) उस भक्त को अपनी शाश्वत लीलाओं में प्रवेश दें। वैष्णव जन इससे आगे किसी चीज की लालसा नहीं रखते।

॥ इति श्रीराधिकायाः कृपा कटाक्ष स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

 इस प्रकार श्रीराधिका कृपा कटाक्ष स्तोत्र पूरा होता है।

श्रीकृष्ण से संबंधित श्लोक देखें …

Yugalashtakam | युगलाष्टकम्

श्री जीव गोस्वामी जी ने युगलाष्टकं की रचना की है । इसमें उन्होंने दिव्य युगल श्री राधा कृष्ण की महिमा का वर्णन किया है ।

कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेम मयो हरिः ।
जीवने निधने नित्यं
राधाकृष्णौगतिर्मम् ॥1॥

श्रीराधारानी श्रीकृष्ण के प्रेम से ओत-प्रोत हैं और श्रीकृष्ण श्रीराधारानी के प्रेम से ओत-प्रोत हैं – ऐसे वे श्री राधा कृष्ण जीवन में और जीवन के बाद भी सदा मेरे आश्रय हैं।

कृष्णस्य द्रविणं राधा राधायाः द्रविणं हरिः ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौगतिर्मम् ॥2॥

श्रीकृष्ण का सर्वस्व श्रीराधा हैं और श्रीराधा का सर्वस्व श्रीकृष्ण हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा मेरे आश्रय हैं।

कृष्णप्राणमयी राधा राधाप्राणमयो हरिः ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौगतिर्मम् ॥3॥

श्रीकृष्ण की प्राणरूपा श्रीराधा हैं और श्रीराधा के प्राणस्वरूप श्रीकृष्ण हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा मेरे आश्रय हैं।

कृष्णद्रवमयी राधा राधाद्रवमयो हरि:
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौगतिर्मम् ॥4॥

श्रीकृष्ण के प्रेमरस से आप्लावित श्रीराधा हैं और श्रीराधा के प्रेमरस से आप्लावित श्रीकृष्ण हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा मेरे आश्रय हैं।

कृष्ण गेहे स्थिता राधा राधा गेहे स्थितो हरिः ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौगतिर्मम् ॥5॥

श्रीकृष्ण के हृदयरूप मन्दिर में श्रीराधा स्थित हैं और श्रीराधा के हृदयरूप मन्दिर में श्रीकृष्ण विराजमान हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा मेरे आश्रय हैं।

कृष्णचित्तस्थिता राधा राधाचित्स्थितो हरिः ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौगतिर्मम् ॥6॥

श्रीकृष्ण के चित्त में श्रीराधा शोभायमान हैं और श्रीराधा के चित्त में श्रीकृष्ण विराज रहे हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा मेरे आश्रय हैं।

नीलाम्बरा धरा राधा पीताम्बरोधरो हरिः ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौगतिर्मम् ॥7॥

श्रीराधा ने नीलाम्बर (नीली साड़ी) धारण कर रखा है और श्रीकृष्ण पीताम्बर से शोभा पा रहे हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा मेरे आश्रय हैं।

वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौगतिर्मम् ॥8॥

श्रीराधा वृन्दावन की अधीश्वरी हैं और श्रीकृष्ण वृन्दावन के अधीश्वर हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा मेरे आश्रय हैं।

॥ इति श्रीजीवगोस्वामीविरचितं युगलाष्टकम् सम्पूर्णम् ॥

इस प्रकार श्री जीवगोस्वामी द्वारा रचित युगलाष्टकं पूरा होता है।

Shri Radha Stuti | श्री राधा स्तुति

नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी
रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये

रासमण्डल में निवास करने वाली हे परमेश्वरि ! आपको नमस्कार है। श्री कृष्ण को प्राणों से भी अधिक प्यारी हे रासेश्वरि ! आपको नमस्कार है।

नमस्त्रैलोक्यजननि प्रसीद करुणार्णवे।
ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्द्यमान पदाम्बुजे

ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं के द्वारा वन्दनीय चरण कमल वाली, हे तीनों लोकों की जननी! आपको नमस्कार है। हे करुणासिंधु ! आप मुझ पर प्रसन्न होइए।

नम: सरस्वतीरूपे नम: सावित्रि शंकरि।
गंगापद्मावनीरूपे षष्ठि मंगलचण्डिके

हे सरस्वतीरूपे ! आपको नमस्कार है। हे सावित्रि ! हे शंकरि ! हे गंगा-पद्मावतीरूपे ! हे षष्ठि ! हे मंगलचण्डिके ! आपको नमस्कार है।

नमस्ते तुलसीरूपे नमो लक्ष्मीस्वरुपिणी।
नमो दुर्गे भगवति नमस्ते सर्वरूपिणी

हे तुलसीरूपे ! आपको नमस्कार है। हे लक्ष्मीस्वरूपिणि ! आपको नमस्कार है। हे दुर्गे ! हे भगवति ! आपको नमस्कार है। हे सर्वरूपिणि ! आपको नमस्कार है।

मूलप्रकृतिरूपां त्वां भजाम: करुणार्णवाम्।
संसारसागरादस्मदुद्धराम्ब दयां कुरु
 

हे अम्बे ! मूलप्रकृतिस्वरूपिणी तथा करुणासिन्धु, हम आपकी उपासना करते हैं। संसार सागर से हमारा उद्धार कीजिए, दया कीजिए।

Shri Radhashtakam | श्री राधाष्टकम्

राधाष्टकं श्री निम्बार्काचार्य द्वारा रचित आठ श्लोकों की रचना है। इसमें उन्होंने श्री राधा रानी की महिमामयी स्तुति की है तथा उनकी कृपा की प्रार्थना की है।

नमस्ते श्रियै राधिकायै परायै

नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै।

सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्तः

प्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम् ॥ 1 ॥

हे राधिके ! आप श्री लक्ष्मी हो, आपको नमस्कार है। आप पराशक्ति हो, आपको नमस्कार है। आप ही मुकुंद (श्री कृष्ण) की प्रियतमा हो, आपको नमस्कार है। हे सदानंद स्वरूपा देवी! आप मेरे अन्तः करण के प्रकाश में मुकुंद श्री कृष्ण के साथ सुशोभित होती हुई मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।

स्ववासोपहारं यशोदासुतं वा

स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम्।

स्वदाम्नोदरे या बबन्धाशु नीव्या  

प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसीं ताम् ॥ 2 ॥

हे राधिके!  मैं आपको नमस्कार करता हूँ, जो अपने वस्त्रों का अपहरण करने वाले और दूध दही, माखन चुराने वाले यशोदा नंदन श्री कृष्ण की आराधना करती हैं। माता यशोदा ने अपने नीवी (प्रेम की डोर) के बंधन से श्री कृष्ण को बांध दिया था और उनका नाम दामोदर हो गया। मैं उन भगवान दामोदर की प्रियतमा श्री राधिके को प्रणाम करता हूँ।

दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे तं

महाप्रेमपूरेण राधाभिधाभूः।

स्वयं नामकीर्त्या हरौ प्रेम यच्छत्

प्रपन्नाय मे कृष्णरूपे समक्षम् ॥ 3 ॥

हे राधिके! जिन श्री कृष्ण की आराधना कठिन है, उनकी आराधना करके आपने निश्छल प्रेम से उन्हें वश में कर लिया। श्री कृष्ण की आराधना करके विश्व में आप श्री राधा नाम से विख्यात है। यह नाम आपने स्वयं ही किया है। हे कृष्ण स्वरूपे! आप सम्मुख आये मुझ शरणागत को श्री हरि का प्रेम प्रदान कीजिये।

मुकुन्दस्त्वया प्रेमडोरेण बद्धः

पतङ्गो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः।

उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन्

कृपावर्तते कारयातो मयीष्टिम् ॥ 4 ॥

हे राधिके! श्री कृष्ण प्रेम की डोर में बंधे हुए आपके आस-पास पतंगे की भांति चक्कर लगाते रहते हैं और समीप रह हार्दिक प्रेम से क्रीड़ा करते हैं। हे राधिके! आप मुझ पर कृपा करिये और मेरे द्वारा भगवान की आराधना करवाईये।

व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं

मुकुन्देन साकं विधायाङ्कमालाम्

समामोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षैः

श्रियं चिन्तये सच्चिदानन्दरूपाम् ॥ 5 ॥

हे राधिके! आप प्रतिदिन नियत समय पर श्री कृष्ण भगवान को अपने अंक की माला अर्पित करती है । आप उनके साथ अपनी लीला भूमि वृन्दावन में विचरण करती हैं। भक्त जनों पर प्रयुक्त होने वाले कृपा-कटाक्षों से सुशोभित उन सच्चिदानंद स्वरूपा श्री राधा का चिंतन करते रहना चाहिए।

मुकुन्दानुरागेण रोमाञ्चिताङ्गै-

रहं वेप्यमानां तनुस्वेदबिन्दुम्।

महाहार्दवृष्ट्या कृपापाङ्गदृष्ट्या

समालोकयन्तीं कदा मां विचक्षे ॥ 6 ॥

हे राधिके! आपके मन तथा प्राणों में आनंदकंद भगवान श्रीकृष्ण का असीम अनुराग व्याप्त है इसलिए आपके श्री अंग सदा रोमांच से विभूषित और आपके अंग-अंग सूक्ष्म स्वेदबिंदुओं से सुशोभित रहते हैं। आप अपनी कृपा पूर्ण दृष्टि और अनन्त प्रेम की वर्षा करती हुई मुझे देख रही हैं – इस अवस्था में मुझे कब आपके दर्शन होंगे?

पदङ्कावलोके महालालसौघं

मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः।

पदं राधिके ते सदा दर्शयान्तर्

हृदिस्थं नमन्तं किरद्रोचिषं माम् ॥ 7 ॥

हे राधिके! भगवान श्याम सुन्दर ऐसे हैं कि उनके चरणों का चिंतन करना चाहिए तथापि वे आपके चरणों के अवलोकन की अभिलाषा रखते हैं। हे देवी ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप कृपा करके मेरे हृदय के अंतःकरण में ज्योति पुंज बिखेरते हुए अपने चरणों का दर्शन कराए।

सदा राधिकानाम जिह्वाग्रतः स्यात्

सदा राधिकारूपमक्ष्यग्र आस्ताम्।

श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्तःस्वभावे

गुणा राधिकायाः श्रिया एतदीहे ॥ 8 ॥

हे राधिके! मेरी जिह्वा के अग्रभाग पर सदैव श्री राधा का ही नाम विराजमान रहे, मेरे नेत्रों के समक्ष सदा आपका ही रूप प्रकाशित हो। मेरे कानों को श्री राधा रानी की कीर्ति कथा सुनाई देती रहे और मेरे अंतर्मन में श्री लक्ष्मी स्वरुपा श्री राधा रानी के ही गुणों का चिंतन होता रहे, यही मेरी कामना है।

इदं त्वष्टकं राधिकायाः प्रियायाः

पठेयुः सदैवं हि दामोदरस्य।

सुतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधाम्नि

सखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूलाः ॥ 9 ॥

जो भी दामोदर प्रिया श्री राधा रानी से संबंधित इस आठ श्लोक की स्तुति का पाठ करते हैं, वे सदा श्री कृष्ण धाम वृन्दावन में युगल सरकार की सेवा के अनुकूल सखी शरीर पाकर सुख से रहते हैं।

इति श्रीभगवन्निम्बार्कमहामुनीन्द्र-विरचितं श्रीराधाष्टकं संपूर्णम्

इस प्रकार श्री भगवन निम्बार्क महामुनीन्द्र द्वारा रचित श्री राधाष्टकं सम्पूर्ण होता है।

श्रीकृष्ण से संबंधित श्लोक देखें …

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