भगवान गणेश सनातन धर्म में सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं। उन्हें गणपति, विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विनायक के नाम से भी जाना जाता है। किसी भी अनुष्ठान, समारोह या मांगलिक अवसर पर सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है। उन्हें बुद्धि और विवेक का देवता माना जाता है। वह सिद्धि और सफलता के देवता हैं।
भगवान गणेश की प्रार्थना में प्रयुक्त होने वाले कुछ महत्वपूर्ण श्लोक प्रस्तुत हैं। आप इन्हें अपनी दैनिक प्रार्थनाओं में या विशिष्ट अवसरों पर उपयोग कर सकते हैं।
Lord Ganesha is one of the most revered gods in Sanatana Dharma. He is also known as Ganapati, Vighneshvara, Vighnaharta, and Vinayaka. He is worshipped the first at any ritual, ceremony or auspicious occasion. He is considered to be the deity of intellect and wisdom. He is the god of success and accomplishments.
We present some important shlokas for praying to Lord Ganesha. You can use them in your daily prayers or on specific occasions.
Contents
ToggleSome well-known shlokas | कुछ प्रसिद्ध श्लोक
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
घुमावदार सूंढ़ वाले, विशाल शरीर वाले, करोड़ सूर्य के समान प्रकाशवान, मेरे प्रभु, मुझे हर कार्य में और हर समय विघ्नों से मुक्त रखें।
My Lord, having a curved trunk, having a huge body, and being as bright as millions of suns, keep me free from obstacles in every work and at all times.
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफल सारभक्षणम्ं। उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
जो हाथी के समान मुख वाले हैं, भूत-गण आदि जिनकी सेवा करते हैं, कैथ तथा जामुन फल के रस जिनके प्रिय भोज्य हैं, जो देवी पार्वती के पुत्र हैं तथा जो प्राणियों के दुःख का नाश करनेवाले हैं, उन विघ्नेश्वर के चरणकमलों में मेरा नमस्कार है।
I offer my salutations to the lotus feet of Vighneshwara (destroyer of obstacles), who has a face like an elephant, who is served by the ghosts-spirits, etc., whose favourite food is the essence of wood apple and berries (Jamun), who is Goddess Parvati’s son, and who is the destroyer of the sufferings of living beings.
श्री सिद्धि विनायक नमो नमः।
सिद्धि-दाता भगवान विनायक को मेरा नमस्कार।
My salutations to Lord Vinayaka, who grants success.
अष्टविनायक नमो नमः।
प्रभु विनायक के आठ विशिष्ट विग्रहों को मेरा नमन है।
My salutations to the eight special idols of Lord Vinayaka.
श्रीकान्तो मातुलो यस्य जननी सर्वमंगला। जनकः शंकरो देवः तं वन्दे कुंजराननम्॥
भगवान विष्णु जिनके मामा हैं, सर्व मंगल करने वाली देवी पार्वती जिनकी माता हैं और भगवान शंकर जिनके पिता हैं, उन गजानन प्रभु को मेरा नमन है।
My salutations to Lord Ganesha (Gajanana, the elephant-faced), whose maternal uncle is Lord Vishnu, whose mother is auspiciousness-causing Goddess Parvati, and whose father is Lord Shankar.
अगजानन पद्मार्कं गजाननं अहर्निशम् । अनेकदंतं भक्तानां एकदन्तं उपास्महे ॥
(शब्दार्थ – अग = पर्वत, अगजा = देवी पार्वती, पद्म = कमल, पद्मार्कं = कमल को खिलाने वाला सूर्य, अनेकदंतं = अनेकदं + तं = अनेक वरदान देने वाले, उनको)
जो सब समय देवी पार्वती के मुख कमल को खिलाने के लिए सूर्य के समान हैं, जो भक्तों को अनेक वरदान देने वाले हैं, उन एकदन्त गजानन की हम उपासना करते हैं।
We worship the one-toothed Gajanana, who is always like the sun to illuminate the lotus face of Goddess Parvati, and who gives many boons to the devotees.
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् । ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम् ॥
(ऋग्वेद २/२३/१)
हे अपने गणों में गणपति देव, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ बुद्धिमान, शिवा(पार्वती)-शिव के ज्येष्ठ पुत्र, भोग और सुख आदि के दाता! हम आपका आह्वान करते हैं। हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों।
O Ganapati, the lord of the celestial attendants (ganas), the wisest among the scholars, the eldest son of Shiva (Parvati) and Shiv, the giver of enjoyment and happiness etc.! We call upon you. May you be seated in this house as a provider, listening to our praises.
Mangalam | मङ्गलम्
स जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपङ्कजस्मरणम्।
वासरमणिरिव तमसां राशीन्नाशयति विघ्नानाम्॥
(शब्दार्थ – सिंधुर – हाथी; वासरमणि – सूर्य)
उन गजवदन देवदेव की जय हो, जिनके चरणकमल का स्मरण सम्पूर्ण विघ्नसमूह को इस प्रकार नष्ट कर देता है जैसे सूर्य अंधकारराशि को।
Hail to that elephant-faced god of gods, remembrance of whose lotus feet destroys all the obstacles like the sun destroys the darkness.
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छ्र्णुयादपि॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥
जो कोई विद्यारम्भ, विवाह, गृहप्रवेश, निर्गमन (घर से बाहर जाने), संग्राम अथवा संकट के समय सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन – इन बारह नामों का पाठ या श्रवण भी करता है, उसे किसी प्रकार का विघ्न नहीं होता।
Whoever, at the time of commencement of studies, marriage, house-warming, exit from the house, war or crisis, recites or just listens these twelve names – Sumukha, Ekdanta, Kapila, Gajkarna, Lambodara, Vikata, Vighna-naashana, Vinayaka, Dhumraketu, Gana-adhyaksha, Bhaalchandra and Gajanana – he does not face any kind of obstacle.
Sankata–naashana Ganapati Stotram | संकट नाशन गणपति स्तोत्रम्
नारद उवाच –
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुः कामार्थसिद्धये ॥ 1 ॥
नारदजी ने बोला – पार्वतीनन्दन देवदेव श्रीगणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करे और फिर अपनी आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि के लिए उन भक्तनिवास का नित्यप्रति स्मरण करे।
Naradji said – One should bow his head to Goddess Parvati’s son, revered Ganeshji, the god of Gods and then remember that devotee’s abode lord daily for the fulfillment of his longevity, wishes and wealth.
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥ 2 ॥
पहला वक्रतुण्ड (टेढ़े मुखवाले), दूसरा एकदन्त (एक दाँत वाले), तीसरा कृष्णपिंगाक्ष (काली और भूरी आँखों वाले), चौथा गजवक्त्र (हाथी के-से मुखवाले) ।
First Vakratunda (crooked face), second Ekadanta (having one tooth), third Krishnapingaksha (having black and brown eyes), fourth Gajavaktra (having elephant-like face).
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥ 3 ॥
पाँचवाँ लम्बोदर (बड़े पेट वाले), छठा विकट (विकराल), सातवाँ विघ्नराजेन्द्र (विघ्नों का शासन करने वाले राजाधिराज), तथा आठवाँ धूम्रवर्ण (धूसर वर्ण वाले) ।
The fifth is Lambodara (one with a big stomach), the sixth is Vikata (monstrous for enemies), the seventh is Vighnarajendra (the king who rules the obstacles), and the eighth is Dhumravarna (one with gray complexion).
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥ 4 ॥
नवाँ भालचन्द्र (जिसके ललाट पर चन्द्रमा सुशोभित है), दसवाँ विनायक, ग्यारहवाँ गणपति और बारहवाँ गजानन ।
The ninth is Bhalchandra (who has the moon adorned on his forehead), the tenth is Vinayaka, the eleventh is Ganapati and the twelfth is Gajanana.
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥ 5 ॥
इन बारह नामों का जो कोई (प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल) तीनों संध्याओं में पाठ करता है, हे प्रभो! उसे किसी प्रकार के विघ्न का भय नहीं रहता; इस प्रकार का स्मरण सब प्रकार की सिद्धियाँ देने वाला है।
Whoever recites these twelve names in the three sandhya rituals (morning, afternoon and evening), O Lord! He has no fear of any kind of obstacle; this type of remembrance is going to give all kinds of accomplishments.
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥ 6 ॥
इससे विद्याभिलाषी विद्या, धनाभिलाषी धन, पुत्रेच्छु पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्षगति प्राप्त कर लेता है।
With this, one who desires knowledge attains knowledge, one who desires wealth attains wealth, one who desires a son gets son, and one who desires salvation attains salvation.
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥ 7 ॥
इस गणपतिस्तोत्र का जप करे तो छः मास में इच्छित फल प्राप्त हो जाता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है – इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है।
If one chants this Ganapati Stotra, the desired result is achieved in six months and complete accomplishment is achieved in one year – there is no doubt in this.
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥ 8 ॥
जो कोई इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेशजी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त हो जाती है।
Whoever writes this and dedicates it to eight Brahmins, by the grace of Lord Ganesha, he gets all kinds of knowledge.
इति श्रीनारदपुराणे सङ्कटनाशनगणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्।
इस प्रकार नारद पुराण में वर्णित संकटनाशन गणेश स्तोत्रं पूरा होता है।
Thus ends the Sankata-naashana Ganesha Stotram described in Narada Purana.