Shri Ram shlokas | श्रीराम श्लोक

Sanskrit Shlokas on Lord Rama

Here are some Sanskrit verses (shlokas) on Lord Shri Rama with their Hindi and English meanings. We have selected these from Shri Ram raksha stotra and Shri Ramcharitamanas. Also, eight verses of Ramashtakam written by Shri Veda vyasa have been presented along with their meanings.

We request that you chant, contemplate and share these with your loved ones. Jai Jai Shri Sita Ram!

हम यहाँ श्री राम जी से सम्बंधित कुछ संस्कृत श्लोक हिंदी और अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। हमने इन्हें श्री रामरक्षास्तोत्र एवं श्री रामचरितमानस से लिया है। साथ ही श्री वेदव्यास द्वारा रचित रामाष्टकं के आठ श्लोक उनके अर्थ सहित प्रस्तुत किये गए हैं। 

आप इन्हें पढ़ें, जाप करें, मनन करें एवं अपने प्रिय जनों के साथ साझा करें, यही निवेदन है। जय जय श्री सीताराम!

Some verses selected from Shri Rama raksha stotra | श्री रामरक्षास्तोत्र से चुने हुए कुछ श्लोक

1. आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।।

भावार्थ:- आपत्तियों को हरने वाले तथा सब प्रकार की सम्पत्ति प्रदान करने वाले सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर भगवान् राम को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।

I repeatedly salute Lord Rama, the most handsome in all the worlds, who destroys all obstacles and bestows all kinds of wealth.

2. रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्।

नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति।।  

भावार्थ:- ‘राम’, ‘रामभद्र’, ‘रामचंद्र’ – इन नामों का स्मरण करने से मनुष्य पापों से लिप्त नहीं होता और भोग तथा मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

‘Ram’, ‘Rambhadra’, ‘Ramchandra’ – by remembering these names, one does not indulge in sins and attains enjoyment and salvation.

3. आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्।

अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः।।

भावार्थ:- जो मानो कल्पवृक्ष के बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियों का अन्त करने वाले हैं, जो तीनों लोकों में परम सुन्दर हैं, वे श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं।

The one who is like the garden of Kalpavriksha (a heavenly tree fulfilling all desires) and the one who eliminates all the obstacles, who is the most handsome in all the three worlds, He is our Lord Shri Ram.

4. दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा।

पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्।।

भावार्थ:- जिनकी दायीं और लक्ष्मणजी, बायीं और जानकीजी और सामने हनुमानजी विराजमान हैं, उन रघुनाथजी की मैं वन्दना करता हूँ।

I worship Raghunathji who has Laxman ji on his right, Janaki ji on his left and Hanumanji in front.

5. लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।।

भावार्थ:- जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रणक्रीड़ा में धीर, कमलनयन, रघुवंशनायक, करुणामूर्ति और करुणा के भण्डार हैं, उन श्रीरामचन्द्रजी की मैं शरण लेता हूँ।

I take refuge in Shri Ramchandra ji, who is the most handsome in all the worlds, brave in battle, lotus-eyed, lord of Raghuvamsha clan, and embodiment and storehouse of compassion.

6. भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्।

तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्।।

भावार्थ:- ‘राम-राम’ ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसार-बंधन के बीजों को भून डालने वाला, समस्त सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति कराने वाला तथा यमदूतों को भयभीत करने वाला है।

Chanting ‘Rama-Rama’ roasts the seeds of the entire world (bondage), makes one attain all happiness and wealth and frightens the messengers of Yama (death).

7. राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।।

भावार्थ:- (श्री महादेवजी पार्वतीजी से कहते हैं -) हे सुमुखि! रामनाम विष्णु सहस्रनाम के बराबर है। मैं सर्वदा ‘राम, राम, राम’ इस प्रकार मनोरम रामनाम में ही रमण करता हूँ।

(Lord Mahadev says to Parvati ji -) Hey Sumukhi! The name ‘Rama’ is equivalent to Vishnu Sahasranama (thousand names of Lord Vishnu). I always rejoice in the captivating name of Rama like ‘Rama, Rama, Rama’.

8. रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।

रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।

भावार्थ:- राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधातृस्वरुप, रघुनाथ, प्रभु सीतापति को नमस्कार है।

Salutations to Ram, Rambhadra, Ramchandra, the Creator, Raghunath, Lord Sitapati.

9. श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम

श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम

श्रीराम राम शरणं भव राम राम।।

भावार्थ:- हे रघुनन्दन श्रीराम! हे भरताग्रज भगवान् राम! हे रणधीर प्रभु राम! आप मेरे आश्रय होइए।

O Raghunandan Shri Rama! O Bharatagraj (Bharata’s elder brother) Lord Rama! Hey Brave in the battle Lord Rama! You are my refuge.

10. श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि

 श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि

श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये।।   

भावार्थ:- मैं श्रीरामचन्द्र के चरणों का मन से स्मरण करता हूँ, श्रीरामचन्द्र के चरणों का वाणी से कीर्तन करता हूँ, श्रीरामचन्द्र के चरणों को सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्रीरामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हूँ।

I remember the feet of Shri Ramchandra with my mind, chant about the feet of Shri Ramchandra with my voice, bow my head at the feet of Shri Ramchandra and take shelter at the feet of Shri Ramchandra.

11. माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने।।

भावार्थ:- राम मेरी माता हैं, राम मेरे पिता हैं, राम स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा हैं। दयामय रामचन्द्र ही मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवा और किसीको मैं नहीं जानता।

Ram is my mother, Ram is my father, Ram is my master and Ram is my friend. Merciful Ramchandra is everything to me, I don’t know anyone besides him.

12. चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।

एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्।।

भावार्थ:- श्री रघुनाथ जी के सौ करोड़ (एक अरब) चरित्र हैं। उनके चरित्र (लीला) का एक-एक अक्षर भी मनुष्यों के बड़े-से-बड़े पापों को नष्ट करने वाला है।

There are a biliion of divine acts of Lord Shri Rama. A single letter of His divine acts destroys great sins committed by human beings.

13. पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः।

न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः।।

भावार्थ:- जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकाश में विचरते हैं और जो छद्मवेश से घूमते रहते हैं, वे राम नामों से सुरक्षित व्यक्ति को देख भी नहीं सकते।

The beings who roam in the world beneath, earth or sky and who keep roaming in disguise, cannot even see the person protected by the names of Lord Rama.

14. रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।

स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः।।

भावार्थ:- जो लोग दूर्वादल के समान श्यामवर्ण, कमलनयन पीताम्बरधारी भगवान् राम का उनके दिव्य नामों से स्तवन (स्तुति) करते हैं, वे संसारचक्र में नहीं पड़ते।

Those who praise Lord Rama, who has a grass-like complexion, has lotus eyes and is wearing yellow dress, by his divine names, do not fall into the worldly cycle.

15. रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं

काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं

वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्।।

भावार्थ:- लक्ष्मणजी के पूर्वज, रघुकुल में श्रेष्ठ, सीताजी के स्वामी, अतिसुन्दर, ककुत्स्थ कुलनन्दन, करुणासागर, गुणनिधान, ब्राह्मणभक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथपुत्र, श्याम और शान्तमूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुलतिलक, राघव और रावणारि (रावण के शत्रु) भगवान् राम की मैं वन्दना करता हूँ।

I worship Lord Raghava, who is Lakshmanji’s elder, best among Raghu clan, Sita ji’s husband, very handsome, belonging to Kakutstha clan, ocean of compassion, virtuous, devotee of Brahmin, supremely righteous, king of kings, truthful, Dashratha’s son, dark-complexioned, embodiment of peace, handsome in all the worlds, chief of Raghu clan, and Ravana’s enemy.

Some verses from Shri Ramacharitmanas | श्री रामचरितमानस से चुने हुए कुछ श्लोक

1. नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।

पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।

भावार्थ:- नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्रीसीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथों में अमोघ बाण और सुन्दर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्रीरामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ।

Whose body is soft having a blue lotus-like complexion, who has Shri Sitaji seated on his left side and who has infallible arrows and a beautiful bow in his hands, I salute Lord Shri Ramchandraji of Raghuvansh.

2. यन्मायावशवर्त्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा

यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।

यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां

वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्।।

भावार्थ:- जिनकी माया के वशीभूत सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्मादि देवता और असुर हैं, जिनकी सत्ता से रस्सी में सर्प के भ्रम की भाँति यह सारा दृश्य-जगत सत्य ही प्रतीत होता है और जिनके केवल चरण ही भवसागर से तरने की इच्छा वालों के लिए एकमात्र नौका हैं, उन समस्त कारणों से पर (सब कारणों के कारण और सबसे श्रेष्ठ) राम कहाने वाले भगवान् हरि की मैं वंदना करता हूँ।

The entire world including Lord Brahma, deities, and demons are under the influence of whose Maya, under whose power this entire visible world appears to be true like the illusion of a snake in a rope, whose feet alone are the only boat for those who wish to swim across the ocean of existence, and who is above all the reasons (the cause of all reasons and the best), I worship that Lord Hari who is called Ram.

3. प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।

मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमङ्गलप्रदा।।

भावार्थ:- रघुकुल को आनंद देने वाले श्रीरामचन्द्रजी के मुखारविन्द की जो शोभा राज्याभिषेक की बात सुनकर न तो प्रसन्नता को प्राप्त हुई और न वनवास के दुःख से मलिन ही हुई, वह मुखकमल की छवि मेरे लिए सदा सुन्दर मंगलों की देने वाली हो।

The beauty of Raghunandan Shri Ramchandraji’s face, which neither got lit up after hearing about the coronation nor got tarnished by the sorrow of exile, may that image of the lotus face always give me beautiful auspicious things.

4. सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुन्दरं

पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्।

राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितम्

सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे।।

भावार्थ:- जिनका शरीर जलयुक्त मेघों के समान सुन्दर एवं आनंदघन है, जो सुन्दर पीतवस्त्र धारण किये हैं, जिनके हाथों में बाण और धनुष हैं, कमर उत्तम तरकस के भार से सुशोभित है, कमल के समान विशाल नेत्र हैं और मस्तक पर जटाजूट धारण किये हैं, उन अत्यन्त शोभायमान श्रीसीताजी और लक्ष्मणजी सहित मार्ग में चलते हुए आनंद देने वाले श्रीरामचन्द्रजी को मैं भजता हूँ।

Whose body is as beautiful and full of bliss as the watery clouds, who is wearing beautiful yellow clothes, who has arrows and bow in his hands, whose waist is adorned with the weight of an excellent quiver, who has big lotus-like eyes and who is wearing Jatajuta (matted hair) on his head, I worship extremely graceful Shri Ramchandraji who gives pleasure while walking on the path along with Shri Sitaji and Lakshmanji.

5. कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ

शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।

मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौ हितौ

सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः।

भावार्थ:- कुन्दपुष्प (श्वेतपुष्प) और नीलकमल के समान सुन्दर गौर एवं श्यामवर्ण, अत्यंत बलवान, विज्ञान के धाम, शोभासम्पन्न, श्रेष्ठ धनुर्धर, वेदों के द्वारा वन्दित, गौ एवं ब्राह्मणों के समूह के प्रिय, माया से मनुष्य रूप धारण किये हुए, श्रेष्ठ धर्म के लिए कवच स्वरुप, सबके हितकारी, श्रीसीताजी की खोज में लगे हुए, पथिक रूप रघुकुल के श्रेष्ठ श्रीरामजी और श्रीलक्ष्मणजी दोनों भाई निश्चय ही हमें भक्तिप्रद हों।

Fair and dark complexioned like Kundapushpa (white flower) and blue lotus, very strong, abode of wisdom, full of beauty, excellent archers, worshipped by the Vedas, beloved of the group of cows and brahmins, taking human form by Maya, armour for the highest righteousness, benefactor of all, engaged in the search of Shri Sitaji, in the form of travellers, the best brothers of Raghu clan, Shri Ramji and Shri Lakshmanji, may they definitely give us devotion.

6. शान्तं शास्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।

रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्।।

भावार्थ:- शान्त, सनातन, अप्रमेय, निष्पाप, मोक्षरूप परम शान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरन्तर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दीखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि, राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वन्दना करता हूँ।

I worship Jagadishwara, also called Rama, who is calm, eternal, inexplicable, sinless, giver of ultimate peace in the form of salvation, constantly served by Brahma, Shambhu and Sheshaji, knowable through Vedanta, omnipresent, greatest among gods, visible in human form through illusion, destroyer of all sins, the mine of compassion, the best among Raghu clan and the head of kings.

7. नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।

भावार्थ:- हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अन्तरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे ह्रदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिये और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिये।

Hey Raghunathji! I tell the truth and then you are everyone’s conscience (you know everything) that I have no other desire in my heart. O Raghukul Shrestha! Give me your complete devotion and free my mind from vices like lust etc.

8. रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्।

मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्।। 

भावार्थ:- कामदेव के शत्रु शिवजी के सेव्य, भव (जन्म-मृत्यु) के भय को हरने वाले, कालरूपी मतवाले हाथी के लिए सिंह के समान, योगियों के स्वामी (योगीश्वर), ज्ञान के द्वारा जानने योग्य, गुणों की निधि, अजेय, निर्गुण, निर्विकार, माया से परे, देवताओं के स्वामी, दुष्टों के वध में तत्पर, ब्राह्मणवृन्द के एकमात्र देवता (रक्षक), जलवाले मेघ के समान सुन्दर श्याम, कमल के-से नेत्र वाले, पृथ्वीपति (राजा) के रूप में परमदेव श्रीरामजी की मैं वन्दना करता हूँ। 

I worship Supreme God Shri Rama who is served by the enemy of Kamadeva, Lord Shiva, who is the destroyer of the fear of birth and death, is like a lion to the intoxicated elephant of Kaal (death), a master of yogis (Yogishwar), knowable through knowledge, a treasure-house of qualities, invincible, beyond the three gunas of Prakriti, without vices, beyond Maya, the Lord of the Gods, ready to kill the wicked, the only protector of the Brahmin community, dark and handsome as a water cloud, having eyes like a lotus, and the Lord (king) of the Earth.

9. केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्।

पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्।।

भावार्थ:- मोर के कण्ठ की आभा के समान (हरिताभ) नीलवर्ण, देवताओं में श्रेष्ठ, ब्राह्मण (भृगुजी) के चरणकमल के चिह्न स्व सुशोभित, शोभा से पूर्ण, पीताम्बरधारी, कमलनेत्र, सदा परम प्रसन्न, हाथों में बाण और धनुष धारण किये हुए, वानर समूह से युक्त, भाई लक्ष्मणजी से सेवित, स्तुति किये जाने योग्य, श्रीजानकीजी के पति, रघुकुल श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्रीरामचन्द्रजी को मैं निरंतर नमस्कार करता हूँ।   

I always offer my salutations to Shri Ramchandraji, who is greenish blue like the aura of a peacock’s throat, is the best among the gods, self-adorned with the lotus feet of Bhriguji, full of beauty, wearing a yellow dress, having lotus eyes, always extremely happy, holding a bow and arrow in his hands, accompanied by a group of monkeys, served by brother Lakshmanji, worthy of praise, husband of Shri Janakiji, the best of the Raghu clan, and riding on the Pushpak plane. 

10. कोसलेन्द्रपदकञ्जमञ्जुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ।

जानकीकरसरोजलालितौ चिन्तकस्य मनभृङ्गसङ्गिनौ।।

भावार्थ:- कोसलपुरी के स्वामी श्रीरामचन्द्रजी के सुन्दर और कोमल दोनों चरणकमल ब्रह्माजी और शिवजी के द्वारा वन्दित हैं, श्रीजानकीजी के करकमलों से दुलराये हुए हैं और चिन्तन करनेवाले के मनरूपी भौंरे के नित्य संगी हैं, अर्थात् चिन्तन करने वालों का मन रुपी भ्रमर सदा उन चरणकमलों में बसा रहता है।

Both the beautiful and soft lotus feet of the Lord of Kosalpuri, Shri Ramchandra ji are worshipped by Brahmaji and Shivji, are caressed by the lotus hands of Shri Janakiji and are the constant companions of the mind-bumblebee of the person who remembers those feet.

Shri Ram Stuti by Sage Atri | श्री राम स्तुति - अत्रि मुनि द्वारा

(स्रोत – श्रीरामचरितमानस, अरण्यकाण्ड)

नमामि भक्तवत्सलं कृपालु शील कोमलं ।

भजामि ते पदांबुजं अकामिनां स्वधामदं ॥ 1 ॥

हे भक्तवत्सल ! हे कृपालु ! हे कोमल स्वभाव वाले ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ । निष्काम पुरुषों को अपना परमधाम  देनेवाले आपके चरणकमलों को मैं भजता हूँ ।

निकाम श्याम सुन्दरं भवांबुनाथ मंदरं ।

प्रफुल्ल कंज लोचनं मदादि दोष मोचनं ॥ 2 ॥

आप नितान्त सुन्दर श्याम, संसार (आवागमन) रुपी समुद्र को मथने के लिए मंदराचल रूप, फूले हुए कमल के समान नेत्रों वाले और मद आदि दोषों से छुड़ाने वाले हैं ।

प्रलंब बाहु विक्रमं प्रभोप्रमेय वैभवं ।

निषंग चाप सायकं धरं त्रिलोक नायकं ॥ 3 ॥

हे प्रभो ! आपकी लंबी भुजाओं का पराक्रम और आपका ऐश्वर्य अप्रमेय (असीम) है। आप तरकस और धनुष-बाण धारण करने वाले तीनों लोकों के स्वामी,

दिनेश वंश मंडनं महेश चाप खंडनं ।

मुनींद्र संत रंजनं सुरारि वृंद भंजनं ॥ 4 ॥

सूर्यवंश के भूषण, महादेवजी के धनुष को तोड़ने वाले, मुनिराजों और संतों को आनंद देने वाले तथा देवताओं के शत्रु असुरों के समूह का नाश करने वाले हैं ।

मनोज वैरि वंदितं अजादि देव सेवितं ।

विशुद्ध बोध विग्रहं समस्त दूषणापहं ॥ 5 ॥

आप कामदेव शत्रु महादेवजी के द्वारा वन्दित, ब्रह्मा आदि देवताओं से सेवित, विशुद्ध ज्ञानमय विग्रह और समस्त दोषों को नष्ट करने वाले हैं ।

नमामि इंदिरा पतिं सुखाकरं सतां गतिं ।

भजे सशक्ति सानुजं शची पति प्रियानुजं ॥ 6 ॥

हे लक्ष्मीपते ! हे सुखों की खान  सत्पुरुषों की एकमात्र गति ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ । हे शचीपति (इंद्र) के प्रिय छोटे भाई (वामनजी) ! स्वरूपा-शक्ति श्रीसीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित आपको मैं भजता हूँ ।

त्वदंघ्रि मूल ये नराः भजंति हीन मत्सराः ।

पतंति नो भवार्णवे वितर्क वीचि संकुले ॥ 7 ॥

जो मनुष्य मत्सर (डाह) रहित होकर आपके चरणकमलों का सेवन करते हैं, वे तर्क-वितर्क (अनेक प्रकार के संदेह) रुपी तरंगों से पूर्ण संसार रुपी समुद्र में नहीं गिरते (आवागमन के चक्कर में नहीं पड़ते) ।

विविक्त वासिनः सदा भजंति मुक्तये मुदा ।

निरस्य इंद्रियादिकं प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥ 8 ॥

जो एकांतवासी पुरुष मुक्ति के लिए, इन्द्रियादि का निग्रह करके (उन्हें विषयों से हटाकर) प्रसन्नतापूर्वक आपको भजते हैं, वे स्वकीय गति (अपने स्वरुप) को प्राप्त होते हैं।

तमेकमद्भुतं प्रभुं निरीहमीश्वरं विभुं ।

जगद्गुरुं च शाश्वतं तुरीयमेव केवलं ॥ 9 ॥

उन (आप) को जो एक (अद्वितीय), अद्भुत (मायिक जगत से विलक्षण), प्रभु (सर्वसमर्थ), इच्छारहित, ईश्वर (सबके स्वामी), व्यापक, जगद्गुरु, सनातन (नित्य), तुरीय (तीनों गुणों से सर्वथा परे) और केवल (अपने स्वरुप में स्थित) हैं।

भजामि भाव वल्लभं कुयोगिनां सुदुर्लभं ।

स्वभक्त कल्प पादपं समं सुसेव्यमन्वहं ॥ 10 ॥

(तथा) जो भावप्रिय, कुयोगियों (विषयी पुरुषों) के लिए अत्यन्त दुर्लभ, अपने भक्तों के लिए कल्पवृक्ष (उनकी समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले), सम (पक्षपात रहित) और सदा सुखपूर्वक सेवन करने योग्य हैं, मैं निरन्तर भजता हूँ।

अनूप रूप भूपतिं नतोहमुर्विजा पतिं ।

प्रसीद मे नमामि ते पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥ 11 ॥

हे अनुपम सुन्दर ! हे पृथ्वीपति ! हे जानकीनाथ ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मुझपर प्रसन्न होइये, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। मुझे अपने चरणकमलों की  भक्ति दीजिये।

पठन्ति ये स्तवं इदं नरादरेण ते पदं ।

व्रजंति नात्र संशयं त्वदीय भक्ति संयुताः ॥ 12 ॥

जो मनुष्य इस स्तुति को आदरपूर्वक पढ़ते हैं, वे आपकी भक्ति से युक्त होकर आपके परमपद को प्राप्त होते हैं, इसमें संदेह नहीं।

Shri Ram Stuti by Sage Suteekshna | श्री राम स्तुति - सुतीक्ष्ण मुनि द्वारा

( स्रोत – श्रीरामचरितमानस, अरण्यकाण्ड )

श्याम तामरस दाम शरीरं । जटा मुकुट परिधान मुनिचीरं ॥

पाणि चाप शर कटि तूणीरं । नौमि निरंतर श्रीरघुवीरं ॥ 1 ॥

हे नीलकमल की माला के समान श्याम शरीर वाले ! हे जटाओं का मुकुट और मुनियों के (वल्कल) वस्त्र पहने हुए, हाथों में धनुष-बाण लिए तथा कमर में तरकस कसे हुए श्रीरामजी ! मैं आपको निरंतर नमस्कार करता हूँ ।

मोह विपिन घन दहन कृशानुः । संत सरोरुह कानन भानुः ॥

निसिचर करि वरूथ मृगराजः । त्रातु सदा नो भव खग बाजः ॥ 2 ॥

जो मोहरूपी  घने वन को जलाने के लिये अग्नि हैं, संतरूपी कमलों के वन के प्रफुल्लित करने के लिए सूर्य हैं, राक्षस रुपी हाथियों के समूह के पछाड़ने के लिये सिंह हैं और भव (आवागमन) रुपी पक्षी के  मारने के लिये बाजरूप हैं, वे प्रभु सदा हमारी रक्षा करें ।

अरुण नयन राजीव सुवेशं। सीता नयन चकोर निशेशं ॥

हर हृदि मानस बाल मरालं। नौमि राम उर बाहु विशालं ॥ 3 ॥

हे लाल कमल के समान नेत्र और सुन्दर वेषवाले ! सीताजी के नेत्र रुपी चकोर के चन्द्रमा, शिवजी के ह्रदय रुपी मानसरोवर के बालहंस, विशाल ह्रदय और भुजा वाले श्रीरामचन्द्रजी ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

संशय सर्प ग्रसन उरगादः। शमन सुकर्कश तर्क विषादः ॥

भव भंजन रंजन सुर यूथः। त्रातु सदा नो कृपा वरूथः ॥ 4 ॥

जो संशय रुपी सर्प को ग्रसने के लिए गरुड़ हैं, अत्यन्त कठोर तर्क से उत्पन्न होने वाले विषाद का नाश करने वाले हैं, आवागमन को मिटाने वाले और देवताओं के समूह को आनंद देने वाले हैं, वे कृपा के समूह श्रीरामजी सदा हमारी रक्षा करें।

निर्गुण सगुण विषम सम रूपं। ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं ॥

अमलमखिलमनवद्यमपारं। नौमि राम भंजन माहि भारं ॥ 5 ॥

हे निर्गुण, सगुण, विषम और सम रूप ! हे ज्ञान, वाणी और इन्द्रियों से अतीत ! हे अनुपम, निर्मल, सम्पूर्ण दोषरहित, अनन्त एवं पृथ्वी का भार उतारने वाले श्रीरामचन्द्रजी ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

भक्त कल्पपादप आरामः। तर्जन क्रोध लोभ मद कामः ॥

अति नागर भव सागर सेतुः।  त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः ॥ 6 ॥

जो भक्तों के लिए कल्पवृक्ष के बगीचे हैं, क्रोध, लोभ, मद और काम को डराने वाले हैं, अत्यन्त ही चतुर और संसार रुपी समुद्र से तरने के लिए सेतुरूप हैं, वे सूर्यकुल की ध्वजा श्रीरामजी सदा मेरी रक्षा करें।

अतुलित भुज प्रताप बल धामः। कली मल विपुल विभंजन नामः ॥

धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः। संतत शं तनोतु मम रामः ॥ 7 ॥

जिनकी भुजाओं का प्रताप अतुलनीय है, जो बल के धाम हैं, जिनका नाम कलियुग के बड़े भारी पापों का नाश करने वाला है, जो धर्म के कवच (रक्षक) हैं और जिनके गुणसमूह आनन्द देने वाले हैं, वे श्रीरामजी निरन्तर मेरे कल्याण का विस्तार करें।

Ramashtakam - रामाष्टकम्

(श्री व्यासविरचितम्)

भजे विशेषसुन्दरं समस्तपापखण्डनम् ।

स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव राममद्वयम् ॥ 1 ॥

(राममद्वयम् = रामम् + अद्वयम्)

जो विशेष रूप से सुन्दर हैं, जो हमारे सारे पापों को नष्ट कर देते हैं, जो अपने भक्तों के चित्त को आनंदित करते हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं सदा भजता/भजती हूँ।

I worship that Rama who is exceptionally charming, who annihilates all sins, who makes the mind of his devotees happy, and who is second to none.

जटाकलापशोभितं समस्तपापनाशकम् ।

स्वभक्तभीतिभञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ 2 ॥

जो जटाओं के समूह से सुशोभित हैं, जो समस्त पापों का विनाश करने वाले हैं, जो अपने भक्तों के भय को दूर कर देते हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।

I worship that Rama who shines with his matted hair, who destroys all sins, who dispels the fear of his devotees, and who is second to none.

निजस्वरूपबोधकं कृपाकरं भवापहम् ।

समं शिवं निरञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ 3 ॥

जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप की अनुभूति कराते हैं, जो कृपालु हैं, जो जीवन के दुखों को नष्ट करते हैं, जो सभी को समान मानते हैं, जो शुभ और माया से मुक्त हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।

I worship that Rama who makes us realize our real self, who is compassionate, who destroys sorrows of life, who considers everyone equal, who is auspicious and pure, and who is second to none.

सहप्रपञ्चकल्पितं ह्यनामरूपवास्तवम् ।

निराकृतिं निरामयं भजे ह राममद्वयम् ॥ 4 ॥

जिनमें संसार अवस्थित है, जो नाम से परे सत्य हैं, जो निराकार हैं तथा जो निष्कलंक हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।

I worship that Rama who shows the world in himself, who is the truth without names, who is formless, who is free from blemishes, and who is second to none.

निष्प्रपञ्चनिर्विकल्पनिर्मलं निरामयम् ।

चिदेकरूपसन्ततं भजे ह राममद्वयम् ॥ 5 ॥

जो संसार से परे हैं, जो भेदबुद्धि नहीं रखते, जो बेदाग और निष्कलंक हैं तथा जो सदा सत्य स्वरुप में स्थित रहते हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।

I worship that Rama who is beyond this world, who does not see differences, who is unsullied and untainted, who always stays as the real form of truth, and who is second to none.

भवाब्धिपोतरूपकं ह्यशेषदेहकल्पितम् ।

गुणाकरं कृपाकरं भजे ह राममद्वयम् ॥ 6 ॥

जो इस भवसागर को पार कराने वाली नौका हैं, जो सारे शरीरों में स्थित हैं और जो गुणों एवं कृपा की खान हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।   

I worship that Rama who is the ship to cross the ocean of worldly life, who shines through all bodies, who is the mine (treasure-house) of virtues and grace, and who is second to none.

महावाक्यबोधकैर्विराजमानवाक्पदैः ।

परब्रह्म व्यापकं भजे ह राममद्वयम् ॥ 7 ॥

जो वेद के महावाक्यों द्वारा वन्दित और प्रकाशित हैं तथा जो सर्वव्यापक परब्रह्म हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।  

I worship that Rama who is praised and irradiated through great Vedic aphorisms, who is Supreme Brahman present everywhere, and who is second to none.

शिवप्रदं सुखप्रदं भवच्छिदं भ्रमापहम् ।

विराजमानदेशिकं भजे ह राममद्वयम् ॥ 8 ॥

जो कल्याण एवं सुख प्रदान करने वाले हैं, जो संसार के बंधनों को काटने वाले हैं, भ्रम/मोह का नाश करते हैं और जो श्रेष्ठ गुरु हैं, उन अद्वितीय श्री राम जी को मैं भजता/भजती हूँ।  

I worship that Rama who grants well-being and happiness, who cuts the bondages of worldly life, who dispels delusion, who is the splendid Guru, and who is second to none.

रामाष्टकं पठति यस्सुखदं सुपुण्यं

     व्यासेन भाषितमिदं शृणुते मनुष्यः।

विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं

     संप्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥

ऋषि व्यास द्वारा रचित आनंद और पुण्य प्रदान करने वाले इस रामाष्टक को जो कोई पढ़ता या सुनता है, उसे ज्ञान, धन, अपार सुख और अनंत यश मिलता है। शरीर छोड़ने के बाद उसे मोक्ष मिल जाता है।

He who reads or hears this octet on Rama providing joy and merits (punya), which sage Vyasa has written, receives knowledge, wealth, ample happiness and limitless fame. He also gets salvation after leaving his body. 

॥ इति श्रीव्यासविरचितं रामाष्टकं संपूर्णम् ॥

इस प्रकार महर्षि व्यास द्वारा रचित रामाष्टकं समाप्त होता है।

Thus ends the Rama Ashtakam composed by Sri Vyasa Maharshi.

Author

  • Deep

    Deep is a Sanskrit learner and teacher. He has done his Engineering graduation from IIT Kanpur. He worked in the Information Technology sector serving Investment banks for ten years. He served as a Counsellor, Life Coach and Teacher, post his corporate career. Deep pursued the study of scriptures in search of the hidden treasures of valuable knowledge shared by the Rishis. In the process, he realized the need to learn Sanskrit. He, therefore, learned Sanskrit through self-study and Certification courses. Presently he spends a good chunk of his time sharing useful Sanskrit resources with all the Sanskrit lovers. You can reach him at deep@iitkalumni.org.

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2 thoughts on “Shri Ram shlokas | श्रीराम श्लोक

  1. खूपच सुंदर..

    प्रभू श्रीरामचंद्र आपल्या सर्व मनोकामना परिपूर्ण करो..
    जय श्रीराम

    नरेश पुजारी

    1. धन्यवाद। आपको भी ढेरों शुभकामनाएं।
      जय जय श्री सीताराम।

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