योगशास्त्र में भगवान् पतंजलि कहते हैं कि ‘भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात्’; अर्थात् सूर्य के ध्यान करने से सारे संसार का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है।
धर्मशास्त्र कहता है कि यदि कोई अशुचित्व (अपवित्रता) प्राप्त हो तो सूर्य को देखो, तुम पवित्र हो जाओगे। बीमारियों से पीड़ित हो तो सूर्य की उपासना करो – ‘आरोग्यं भास्करादिच्छेत्’।
गायत्री मंत्र के सविता देवता कौन हैं?
सविता शब्द सूर्य का पर्यायवाचक है।
भानुर्हंसः सहस्रांशुस्तपनः सविता रविः (अमर. 1/3/38)
भानु, हंस, सहस्रांशु, तपन, सविता, रवि – ये सब सूर्य के अनेक नाम हैं। अतः सविता सूर्य देव हैं।
Contents
ToggleSome Shlokas on Lord Surya | सूर्य भगवान् पर श्लोक
जपाकुसुम सङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥
जो जपापुष्प (अड़हुल के फूल) के समान लाल वर्ण वाले हैं, महर्षि कश्यप के पुत्र हैं, महान तेज से संपन्न हैं, अंधकार के विनाशक तथा सभी पापों को दूर करने वाले हैं, उन सूर्य को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
आर्याणां देवता सूर्यो विश्वचक्षुर्जगत्पतिः।
कर्मणां प्रेरको देवः पूज्यो ध्येयश्च सर्वदा॥
श्रीसूर्य भारतीय धर्मशील जनता के मुख्य देवता हैं। वे विश्वनेत्र और जगत्पति – विश्व-स्वामी हैं। वे शुभ कर्मों के प्रेरक, विश्व में सर्वाधिक तेजस्वी – ज्योतिर्धन हैं। वे नर-नारी,बाल-वृद्ध – सब प्राणियों के सदा पूज्य और ध्येय हैं। उनका पूजन और ध्यान सदा करना चाहिए।
ध्येयः सदा सवितृमण्डलमध्यवर्ती नारायणः सरसिजासनसंनिविष्टः।
केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटी हारी हिरण्यमयवपुर्धृत शङ्खचक्रः ॥
(बृहत्पाराशरस्मृति)
सूर्यमण्डल में भगवान् नारायण के ध्यान करने का विधान है – भगवान् नारायण तपे हुए स्वर्ण-जैसे कान्तिमान शरीर धारण किये हुए हैं। उनके गले में हार एवं सिर पर किरीट विराजमान हैं। उनके कान मकर कुण्डल से सुशोभित हैं। वे कंगन से अलंकृत अपने दोनों हाथों में भक्तभय निवारण के लिए शंख-चक्र धारण किये हुए हैं। वे सूर्यमंडल के कमलासन पर बैठे हैं।
यो देवः सवितास्माकं धियो धर्मादिगोचराः।
प्रेरयेत् तस्य यद् भर्गः तद्वरेण्यमुपास्महे॥
(बृहद्योगियाज्ञवल्क्य)
हमारे कर्मों का फल देने वाले सविता हैं। वे ही धर्मादि-विषयक हमारी बुद्धि-वृत्तियों के प्रेरक हैं। हम उन परमात्मा सविता की श्रेष्ठ ज्योति की उपासना करते हैं।
ॐ विश्वानि देव सवितर्दूरितानि परासुव। यद् भद्रं तन्न आ सुव॥
(ऋक. 5/82/5, शुक्लयजु. 30/3)
समस्त संसार को उत्पन्न करने वाले – सृष्टि-पालन-संहार करने वाले, विश्व में सर्वाधिक देदीप्यमान एवं जगत को शुभ कर्मों में प्रवृत्त करने वाले हे परब्रह्म स्वरूप सविता देव! आप हमारे सम्पूर्ण (आधिभौतिक, आधिदैविक, आध्यात्मिक) दुरितों (बुराईयों-पापों) को हमसे दूर ले जायें, दूर करें। किंतु जो भद्र (भला) है, कल्याण है, श्रेय है, मंगल है, उसे हमारे लिए, विश्व के हम सभी प्राणियों के लिए चारों और से (भलीभांति) ले आयें, दें।
ॐ वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।
तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय॥
(शुक्लयजु. 31/18)
मैं आदित्य-स्वरूप वाले सूर्यमण्डलस्थ महान पुरुष को, जो अंधकार से सर्वथा परे, पूर्ण प्रकाश देने वाले और परमात्मा हैं, उनको जानता/जानती हूँ। उन्हीं को जानकर मनुष्य मृत्यु को लाँघ जाता है। मनुष्य के लिए मोक्ष प्राप्ति का दूसरा कोई अन्य मार्ग नहीं है।
ॐ उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम्।
देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरूत्तमम्॥
(शुक्लयजु. 20/21)
हे सवितादेव! हम अंधकार से ऊपर उठकर स्वर्गलोक तथा देवताओं में अत्यन्त उत्कृष्ट सूर्यदेव को भलीभाँति देखते हुए उस सर्वोत्तम ज्योतिर्मय परमात्मा को प्राप्त हों।
Suryashtakam | सूर्याष्टकम्
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥1॥
हे आदिदेव भास्कर ! आपको प्रणाम है, आप मुझपर प्रसन्न हों। हे दिवाकर ! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर ! आपको प्रणाम है।
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥2॥
सात घोड़ों वाले रथ पर आरूढ़, हाथ में श्वेत कमल धारण किये हुए, प्रचण्ड तेजस्वी कश्यप कुमार सूर्य को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥3॥
लोहितवर्ण (लाल रंग) के रथ पर आरूढ़, सर्वलोकपितामह, महापापहारी सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥4॥
जो त्रिगुणमय ब्रह्मा, विष्णु और शिव रूप हैं, उन महापापहारी महान वीर सूर्यदेव को मैं नमस्कार करता/करती हूँ।
बृंहितं तेजःपुञ्जं च वायुमाकाशमेव च।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥
जो बढ़े हुए तेज के पुंज हैं और वायु तथा आकाश स्वरूप हैं, उन समस्त लोकों के अधिपति सूर्य को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम्।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥6॥
जो बंधूक (दुपहरिया) के पुष्प समान लाल और हार तथा कुण्डलों विभूषित हैं, उन एक चक्रधारी सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥7॥
महान तेज के प्रकाशक, जगत के कर्ता, महापापहारी सूर्य भगवान् को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥
उन सूर्यदेव को, जो जगत के नायक हैं, ज्ञान, विज्ञान तथा मोक्ष के दाता हैं, साथ ही जो बड़े-बड़े पापों को हर लेते हैं, मैं प्रणाम करता/करती हूँ।
इति श्री शिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम्।
इस प्रकार भगवान शिव द्वारा उच्चारित सूर्याष्टक पूरा होता है।
Shri Suryamandala Stotram | श्री सूर्यमण्डल स्तोत्रम्
नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थितिनाशहेतवे।
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चिनारायणशङ्करात्मने ॥1॥
जो जगत् के एकमात्र नेत्र (प्रकाशक) हैं, संसार की उत्पत्ति, स्थिति और नाश के कारण हैं, उन वेदत्रयी स्वरूप, सत्त्वादि तीनों गुणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामक तीन रूप धारण करनेवाले सूर्य भगवान् को नमस्कार है।
यन्मण्डलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरूपम्।
दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥2॥
जो प्रकाश करने वाला, विशाल, रत्नों के समान प्रभा वाला, तीव्र, अनादिरूप और दारिद्र्य दुःख के नाश का कारण है, वह सूर्यभगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितं विप्रैः स्तुतं भावनमुक्तिकोविदम्।
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥3॥
जिनका मण्डल देवगणों द्वारा अच्छी प्रकार पूजित है, ब्राह्मणों द्वारा स्तुत है और भक्तों को मुक्ति देने वाला है, उन देवाधिदेव सूर्य भगवान् को मैं प्रणाम करता/करती हूँ। वह सूर्य भगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यं त्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुनात्मरूपम्।
समस्ततेजोमयदिव्यरूपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥4॥
जो ज्ञानघन, अगम्य, त्रिलोकीपूज्य, त्रिगुण स्वरूप, पूर्ण तेजोमय और दिव्य रूप है, वह सूर्य भगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम्।
यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥5॥
जो सूक्ष्म बुद्धि से जानने योग्य है और सम्पूर्ण मनुष्यों के धर्म की वृद्धि करता है तथा जो सबके पापों के नाश का कारण है, वह सूर्य भगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजुःसामसु संप्रगीतम्।
प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्वः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥6॥
जो रोगों का विनाश करने में समर्थ है, जो ऋक, यजु और साम – इन तीनों वेदों में सम्यक प्रकार से गाया गया है तथा जिसने भूः, भुवः और स्वः – इन तीनों लोकों को प्रकाशित किया है, वह सूर्य भगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।
यद्योगिनो योगजुषां च संघाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥7॥
वेदज्ञाता लोग जिसका वर्णन करते हैं, चारणों और सिद्धों का समूह जिसका गान किया करता है तथा योग का सेवन करने वाले और योगी लोग जिसका गुणगान करते हैं, वह सूर्य भगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं सर्वजनेषु पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके।
यत्कालकल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥8॥
जो समस्त जनों में पूजित है और इस मर्त्यलोक में प्रकाश करता है तथा जो काल और कल्प के क्षय का कारण भी है, वह सूर्य भगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं विश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम्।
यस्मिञ्जगत्संहरतेऽखिलञ्च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥9॥
जो संसार की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा आदि में प्रसिद्ध है, जो संसार की उत्पत्ति, रक्षा और प्रलय करने में समर्थ है और जिसमें समस्त जगत लीन हो जाता है, वह सूर्य भगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्धतत्वम्।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥10॥
जो सर्वान्तर्यामी विष्णु भगवान् का आत्मा तथा विशुद्ध तत्त्व वाला परमधाम है और जो सूक्ष्म बुद्धि वालों के द्वारा योगमार्ग से गमन करने योग्य है, वह सूर्य भगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः।
यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥11॥
वेद के जानने वाले जिसका वर्णन करते हैं, चारण और सिद्ध गण जिसको गाते हैं और वेदज्ञ लोग जिसका स्मरण करते हैं, वह सूर्य भगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं वेदविदोपगीतं यद्योगिनां योगपथानुगम्यम्।
तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥12॥
जिनका मण्डल वेदवेत्ताओं के द्वारा गाया गया है और जो योगियों से योगमार्ग द्वारा अनुगमन करने योग्य हैं, उन सब वेदों के स्वरूप सूर्य भगवान् को प्रणाम करता/करती हूँ और वह सूर्य भगवान् का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।
मण्डलात्मकमिदं पुण्यं यः पठेत्सततं नरः।
सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते ॥13॥
जो व्यक्ति परम पवित्र इस सूर्यमण्डलात्मक स्तोत्र का पाठ सर्वदा करता है, वह पापों से मुक्त हो, विशुद्ध चित्त होकर सूर्यलोक में प्रतिष्ठा पाता है।
इति श्रीमदादित्यहृदये मण्डलात्मकं स्तोत्रम् सम्पूर्णम्।
इस प्रकार श्री आदित्यहृदय मण्डलात्मक स्तोत्र पूरा होता है।
Morning Prayer for Lord Surya | श्री सूर्यस्य प्रातः स्मरणम्
प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं रूपं हि मण्डलोमृचोऽथ तनुर्यंजूषि।
सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम् ॥1॥
मैं उन सूर्य भगवान के श्रेष्ठ रूप का प्रातः समय स्मरण करता/करती हूँ, जिनका मण्डल ऋग्वेद, तनु यजुर्वेद और किरणें सामवेद हैं तथा जो ब्राह्मण और शंकर के रूप हैं; जो जगत की उत्पत्ति, रक्षा और नाश के कारण हैं, अलक्ष्य और अचिन्त्य स्वरूप हैं।
प्रातर्नमामि तरणिं तनुवाङ्ग्मनोभिर्ब्रह्मेन्द्रपूर्वक सुरैर्नतमर्चितं च।
वृष्टिप्रमोचनविनिग्रहहेतुभूतं त्रैलोक्यपालनपरं त्रिगुणात्मकं च ॥2॥
मैं प्रातःकाल शरीर, वाणी और मन के द्वारा ब्रह्मा, इंद्र आदि देवताओं से स्तुत और पूजित, वृष्टि के कारण एवं विनिग्रह के हेतु, तीनों लोकों के पालन में तत्पर और सत्त्व आदि त्रिगुण रूप धारण करने वाले तरणि (सूर्य भगवान्) को नमस्कार करता/करती हूँ।
प्रातर्भजामि सवितारमनन्तशक्तिं पापौघशत्रुभयरोगहरं परं च।
तं सर्वलोककलनात्मककालमूर्तिं गोकण्ठबन्धनविमोचनमादिदेवम् ॥3॥
जो पापों के समूह तथा शत्रुजनित भय एवं रोगों का नाश करने वाले हैं, सबसे उत्कृष्ट हैं, सम्पूर्ण लोकों के समय की गणना के निमित्तभूत कालस्वरूप हैं और गौओं के कण्ठबन्धन छुड़ाने वाले हैं, उन अनन्त शक्तिसम्पन्न आदिदेव सविता (सूर्य भगवान्) को मैं प्रातःकाल भजता/भजती हूँ।
श्लोकत्रयमिदं भानोः प्रातःकाले पठेत्तु यः।
स सर्वव्याधिर्निमुक्तः परं सुखमवाप्नुयात् ॥4॥
जो मनुष्य प्रातःकाल सूर्य के स्मरण रूप इन तीनों श्लोकों का पाठ करेगा, वह सब रोगों से मुक्त होकर परम सुख प्राप्त कर लेगा।
Shri Surya Stavaraajah | श्री सूर्यस्तवराजः
(साम्बपुराण – अध्याय 25, श्लोक 1-14)
महर्षि वशिष्ठ उवाच –
स्तुवंस्तत्र ततः साम्बः कृशो धमनि संततः। राजन् नामसहस्रेण सहस्रांशुं दिवाकरम् ॥1॥
खिद्यमानं तु तं दृष्ट्वा सूर्यः कृष्णात्मजं तदा। स्वप्ने तु दर्शनं दत्त्वा पुनर्वचनमब्रवीत् ॥2॥
वशिष्ठजी कहते हैं – राजन् ! एक समय की बात है, भगवान् श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब गलित कुष्ठ से संतप्त एवं दुर्बल होकर सूर्यसहस्रनाम के पाठ द्वारा भगवान् सूर्य की स्तुति कर रहे थे। उनका मन अत्यन्त क्षुब्ध हो गया था। ऐसी स्थिति में उन्हें देखकर भुवनभास्कर ने स्वप्न में दर्शन दिया और बोले।
श्रीसूर्य उवाच –
साम्ब साम्ब महाबाहो शृणु जाम्बवतीसुत। अलं नामसहस्रेण पठंस्त्वेवं स्तवं शुभम् ॥3॥
श्रीसूर्य ने कहा – जाम्बवतीनंदन साम्ब ! सुनो। विशाल भुजा से शोभा पाने वाले साम्ब ! इस सहस्रनाम के पाठ में बड़ा श्रम है, अतः अब इसे तुम छोड़ दो। तुम कल्याणकारक स्तवराज का पाठ करो।
यानि नामानि गुह्यानि पवित्राणि शुभानि च। तानि ते कीर्तयिष्यामि श्रुत्वा तमवधारय ॥4॥
इस स्तवराज में जितने गोपनीय, पवित्र और कल्याणकारक नाम हैं, उन सबका तुम्हारे सामने वर्णन करता हूँ। इसे सुनकर उन्हें ह्रदय में स्थान दो।
ॐ विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः। लोकप्रकाशकः श्रीमाँल्लोकचक्षुर्ग्रहेश्वरः॥5॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा। तपनस्तापनाश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः ॥6॥
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः। एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा मम ॥7॥
ॐ विकर्तन, विवस्वान्, मार्तण्ड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान्, लोकचक्षु, ग्रहेश्वर, लोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्ता, तमिस्रहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेवनमस्कृत – इन इक्कीस नामों वाला यह स्तवराज मुझे सदा प्रिय है।
शरीरारोग्यदश्चैव धनवृद्धियशस्करः। स्तवराज इति ख्यातस्रिषु लोकेषु विश्रुतः ॥8॥
इस स्तवराज के प्रभाव से शरीर नीरोग होता है, धन की वृद्धि होती है तथा उपासक यशस्वी बन जाता है। यह तीनों लोकों में सूर्य-स्तवराज नाम से प्रसिद्ध है और इसकी बड़ी ख्याति है।
य एतेन महाबाहो द्वे संध्येऽस्तमनोदये। स्तौति मां प्रणतो भूत्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥9॥
महाबाहो ! जो व्यक्ति प्रातःकाल और सायंकाल दोनों संध्याओं में नम्रतापूर्वक इस स्तवराज को पढ़ कर मेरी स्तुति करता है, उसके सम्पूर्ण संचित पाप समाप्त हो जाते हैं।
कायिकं वाचिकं चापि मानसं यच्च दुष्कृतम्। तत् सर्वमेकजाप्येन प्रणश्यति ममाग्रतः ॥10॥
एष जप्यश्च होमश्च सन्ध्योपासनमेव च। बलिमन्त्रोऽर्ध्यमन्त्रश्च धूपमन्त्रस्तथैव च ॥11॥
यही नहीं, मेरे सामने स्थित होकर सन्ध्योपासन, मंत्र-जप, मंत्रपूर्वक धूप, हवन, अर्ध्य और बलि प्रदान करने वाले के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा इस स्तवराज का पाठ करनेवाले व्यक्ति के शरीर, मन और वाणी के द्वारा जितने पाप बन चुके हैं, वे सभी एक बार के पढ़ने से ही नष्ट हो जाते हैं।
अन्नप्रदाने स्नाने च प्रणिपाते प्रदक्षिणे। पूजितोऽयं महामन्त्रः सर्वव्याधिहरः शुभः ॥12॥
अन्न का दान करने के अवसर पर, स्नानकाल में तथा प्रणाम एवं प्रदक्षिणा के समय प्रत्येक अवसर पर इस पूजनीय महामंत्र का पाठ करना चाहिए। यह कल्याणकारी मंत्र सम्पूर्ण व्याधियों को दूर कर देता है।
एवमुक्त्वा तु भगवान् भास्करो जगदीश्वरः। आमन्त्र्य कृष्णतनयं तत्रैवान्तरधीयत ॥13॥
राजन् ! जगत्प्रभु भगवान् सूर्य ने कृष्णकुमार साम्ब को इस प्रकार कहा; फिर उनकी अनुमति लेकर वहीं अंतर्धान हो गए।
साम्बोऽपि स्तवराजेन स्तुत्वा सप्ताश्ववाहनम्। पूतात्मा नीरुजः श्रीमांस्तस्माद् रोगाद् विमुक्तवान् ॥14॥
तब साम्ब ने भी इस स्तवराज को पढ़कर भगवान् सूर्य की स्तुति की। परिणाम-स्वरूप वे परम पवित्र, नीरोग, अत्यन्त सुशोभित हो उस रोग से छुटकारा पा गए।
॥इति साम्बपुराणे रोगापनयने श्रीसूर्यवक्त्रविनिर्गतः स्तवराजः समाप्तः॥
Aditya Hriday Stotram | आदित्यह्रदय स्तोत्रम्
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्। रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
देवतैश्च समागम्य दृष्तुमभ्यागतो रणम्। उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्। येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्। जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रनाशनम्। चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥